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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 20
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    143

    त्वष्टा॑ तु॒रीपो॒ऽअद्भु॑तऽइन्द्रा॒ग्नी पु॑ष्टि॒वर्ध॑ना।द्विप॑दा॒ छन्द॑ऽइन्द्रि॒यमु॒क्षा गौर्न वयो॑ दधुः॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वष्टा॑। तु॒रीपः॑। अद्भु॑तः। इ॒न्द्रा॒ग्नीऽइति इन्द्रा॒ग्नी। पु॒ष्टि॒वर्ध॒नेति॑ पुष्टि॒ऽवर्ध॑ना। द्विप॑देति॒ द्विऽप॑दा। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। उ॒क्षा। गौः। न। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वष्टा तुरीपोऽअद्भुतऽइन्द्राग्नी पुष्टिवर्धना । द्विपदा छन्द इन्द्रियमुक्षा गौर्न वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वष्टा। तुरीपः। अद्भुतः। इन्द्राग्नीऽइति इन्द्राग्नी। पुष्टिवर्धनेति पुष्टिऽवर्धना। द्विपदेति द्विऽपदा। छन्दः। इन्द्रियम्। उक्षा। गौः। न। वयः। दधुः॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! येऽद्भुतस्तुरीपस्त्वष्टा पुष्टिवर्धनेन्द्राग्नी द्विपदा छन्द इन्द्रियमुक्षा गौर्न वयो दधुस्तान् विजानीत॥२०॥

    पदार्थः

    (त्वष्टा) तनूकर्त्ता (तुरीपः) तूर्णमाप्नोति सः (अद्भुतः) आश्चर्यगुणकर्मस्वभावः (इन्द्राग्नी) इन्द्रश्चाग्निश्च तौ वाय्वग्नी (पुष्टिवर्धना) यौ पुष्टिं वर्धयतस्तौ (द्विपदा) द्वौ पादौ यस्यां सा (छन्दः) (इन्द्रियम्) श्रोत्रादिकम् (उक्षा) सेचनसमर्थः (गौः) (न) इव (वयः) जीवनम् (दधुः) धरेयुः॥२०॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा प्रसिद्धोऽग्निर्विद्युज्जाठरो व[वानल एते चत्वारः प्राण इन्द्रियाणि गवादयः पशवश्च सर्वस्य जगतः पुष्टिं कुर्वन्ति, तथैव मनुष्यैर्ब्रह्मचर्यादिना स्वस्य परेषां च बलं वर्द्धनीयम्॥२०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य लोगो! जो (अद्भुतः) आश्चर्य्य गुण-कर्म-स्वभावयुक्त (तुरीपः) शीघ्र प्राप्त होने (त्वष्टा) और सूक्ष्म करने हारे तथा (पुष्टिवर्द्धना) पुष्टि को बढ़ाने हारे (इन्द्राग्नी) पवन और अग्नि दोनों और (द्विपदा) दो पाद वाले (छन्दः) छन्द (इन्द्रियम्) श्रोत्र आदि इन्द्रिय को (उक्षा) सेचन करने में समर्थ (गौः) बैल के (न) समान (वयः) जीवन को (दधुः) धारण करें, उनको जानो॥२०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे प्रसिद्ध अग्नि, बिजुली, पेट में का अग्नि, व[वानल ये चार और प्राण, इन्द्रियां तथा गाय आदि पशु सब जगत् की पुष्टि करते हैं, वैसे ही मनुष्यों को ब्रह्मचर्य आदि से अपना और दूसरों का बल बढ़ाना चाहिए॥२०॥

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    विषय

    आप्री देवों का वर्णन । अग्नि, तनृनपात्, सोम बहिः, द्वार, उषासानक्ता, दैव्य होता, इडा आदि तीन देवियां, त्वष्टा, वनस्पति, वरण इन पदाधिकारों के कर्त्तव्य बल और आवश्यक सदाचार । तपः सामर्थ्य का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( त्वष्टा) शिल्पी, नये यन्त्र आर पदार्थ बनाने वाला, त्वष्टा या विद्युत् ( अद्भुतः) आश्चर्यजनक रूप से (तुरीपः) शीघ्रता से स्थानान्तर में जाने में समर्थ है। इसी प्रकार ( इन्द्राग्नी) सेनापति ग्राम और नगर के नेता दोनों ही (पुष्टिवर्धना) राज्य की पुष्टि को बढ़ाते हैं । (द्विपदा छन्दः) द्विपदा ऋचा के समान दो पैरों से प्रतिष्टित होने वाली मानव सृष्टि और (उक्षा गौः) वीर्य सेचन में समर्थ वृषभ ये सब राष्ट्र में (इन्द्रियम् बय:) ऐश्वर्य और दीर्घ जीवन को (दधुः) धारण करावें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    उक्षा गौ:

    पदार्थ

    १. हममें (इन्द्रियम्) = इन्द्रियों की शक्ति को तथा (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को (दधुः) = धारण करें। कौन ? २. पहले तो (त्वष्टा) = [त्वष्टा तूर्णमश्नुते, त्विषतेर्वा स्याद् दीप्तिकर्मणः, त्वक्षतेर्वा स्यात् करोतिकर्मणः- नि० ८।१४ ] शीघ्रता से कार्यों में व्याप्त होनेवाला, क्रियाशीलता के कारण चमकनेवाला तथा इसी क्रियाशीलता से बुद्धि को तीव्र [सूक्ष्म] करनेवाला, (तुरी:) = जो [तूर्णम् आप्नोति] शीघ्र ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, इसलिए (अद्भुतः) = आश्चर्यजनक व महान् होता है। यह व्यक्ति अपने उदाहरण से हममें भी शक्ति व उत्कृष्ट जीवन को स्थापित करे। ३. (पुष्टिवर्धना) = मेरे शरीर व आत्मा की पुष्टि के बढ़ानेवाले (इन्द्राग्नी) = इन्द्र व अग्निदेव मुझे सशक्त व उत्कृष्ट जीवनवाला बनाएँ। 'इन्द्र' बल का प्रतीक होकर मुझे शारीरिक दृष्टिकोण से उन्नत करता है तो 'अग्नि' प्रकाश व दोषदहन का प्रतीक होकर मुझे अध्यात्म- उन्नति प्राप्त कराता है। मैं अपने जीवन में इन्द्र व अग्नि दोनों तत्त्वों को बढ़ानेवाला बनूँ। ४. (द्विपदा छन्दः) = [द्वे पद्यते ज्ञानं कर्म च] ज्ञान व कर्म दोनों को प्राप्त करने की कामना मुझे उत्कृष्ट जीवनवाला करे। हमारा जीवन यदि पक्षिरूप है तो ज्ञान और कर्म उसके दो पंख हैं। दोनों पंखों के ठीक होने पर ही हम ऊँचा उठ सकेंगे। ५. (न) = इन तीन के अतिरिक्त (उक्षा गौः) = सब सुखों का सिञ्चन करनेवाली ज्ञानरश्मियाँ [नकारश्चार्थे] हममें शक्ति व अविच्छिन्न कर्मतन्तुवाले जीवन को धारण करें। संसार में सब कष्टों का मूल अविद्या है-विद्या ही सब सुखों का सिञ्चन करनेवाली है।

    भावार्थ

    भावार्थ - १. क्रियाशीलता से दीप्त व महापुरुष २. बल व प्रकाश के तत्त्व ३. ज्ञान व कर्म दोनों के अपनाने की प्रबल कामना तथा ४. सुखों का सिञ्चक ज्ञान हमें सशक्त व उत्कृष्ट जीवनवाला बनाएँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे अग्नी, विद्युत, जठराग्नी व वडवानल हे चार आणि प्राण, इंद्रिये व गाय इत्यादी पशू सर्व जगाचे पोषण करतात तसे माणसांनीही ब्रह्मचर्य इत्यादींनी आपले व इतरांचे बल वाढविले पाहिजे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    हे मनुष्यांनो, (अद्भुतः) आश्चर्य युक्त गुण, कर्म आणि स्वभाव असलेले (तुरीपः) शीघ्र प्राप्त होणारे (वा त्वरित लाभ देणारे) तसेच (त्वष्टा) (वस्तूंना) सूक्ष्म रूप देणारे व (पुष्टिवर्द्धना) पुष्टिकारक (इन्द्राग्नी) पवन आणि अग्नी, हे दोन पदार्थ (जीवन धारण करतात, जीवनाचे कारण असतात. वायू आणि अग्नीचे गुण, कार्य व लाभ वेगळे अद्भूत आहेत. ते वस्तूना सूक्ष्म करतात आणि शक्ती-पोषण देतात, तसे हे मनुष्यानो, तुम्हीही काही अद्भुत करा) याशिवाय पवन व अग्नी (द्विपदा) (दोन पाद वा चरण असलेल्या) (छन्दः) छंदाला, (इन्द्रियम्‌) कर्ण आदी इंद्रियांना व (उक्षा) (गौः) (न) सेचन (वा गर्भाधानकरण्यास समर्थ) बैलाप्रमाणे (वयः) जीवन (दधुः) धारण करतात (पवन व अग्नी इंद्रियांना जीवन देतात आणि द्विपाद छंदातील मंत्राद्वारे जीवन शक्ती देतात) त्याप्रमाणे हे मनुष्यांनो, तुम्हीही प्राणशक्ती (वा जीवनाविषयी उत्साह जागृत) करा ॥20॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. (गौः, न) ज्याप्रमाणे भौतिक अग्नी (आग) विद्युत, जाठराग्नी आणि वडवानल (समुद्रातील आग) हे चार अग्नी आणि प्राण, इंद्रिये, व गौ आदी पशू सर्व जगाला पुष्टी वा जीवनशक्ती देतात, त्याप्रमाणे सर्व लोकांनी ब्रह्मचर्यादीद्वारे आपली आणि इतरांची शक्ती वाढविली पाहिजे ॥20॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people, wonderful, speedy, subtle, invigorating air and fire, human beings who stand on two feet like the metre having two quarters, and like a vigorous bull give life and physical strength, know ye them.

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    Meaning

    Nature’s speedy and wonderful power of catalysis and formation, pranic energy, vital heat and light, givers of vigour and growth, the two-pada verses, like the virile bull and the generous cow, bear the secrets of life as well as the mind and senses.

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    Translation

    May Tvastr (i. e. divine sculptor or architect), quick-coming and wonderful, and Indragni (the cloud and the fire), furtherers of nourishment, the Dvipada metre and the virile. bull bestow long life and vigour (on the aspirant). (1)

    Notes

    Turipaḥ, तूर्णं आपन्न: अद्भुत:, wonderful. Puştivardhana, पुष्टिवर्धनौ, furtherers of nourishment. Ukṣā, सेक्ता, a breeding bull; virile bull.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে (অদ্ভুতঃ) আশ্চর্য্য গুণ-কর্ম-স্বভাবযুক্ত (তুরীপঃ) শীঘ্র প্রাপ্ত হইবার (ত্বষ্টা) এবং সূক্ষ্ম করিবার তথা (পুষ্টিবর্দ্ধনা) পুষ্টিকে বৃদ্ধি করিবার (ইন্দ্রাগ্নী) পবন ও অগ্নি উভয়ে এবং (দ্বিপদা) দুই পাদযুক্ত (ছন্দঃ) ছন্দ (ইন্দ্রিয়ম্) শ্রোত্রাদি ইন্দ্রিয়কে (উক্ষা) সেচন করিতে সমর্থ (গৌঃ) বৃষভের (ন) সমান (বয়ঃ) জীবনকে (দধুঃ) ধারণ করিবে, তাহাকে জান ॥ ২০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যেমন প্রসিদ্ধ অগ্নি, বিদ্যুৎ, জঠরাগ্নি, বড়বানল এই চারি প্রাণ, ইন্দ্রিয়গুলি তথা গাভি আদি পশু সব জগতের পুষ্টি করে সেই রূপই মনুষ্যদিগকে ব্রহ্মচর্য্য আদি দ্বারা স্বীয় এবং অন্যের বল বৃদ্ধি করা উচিত ॥ ২০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ত্বষ্টা॑ তু॒রীপো॒ऽঅদ্ভু॑তऽইন্দ্রা॒গ্নী পু॑ষ্টি॒বর্ধ॑না ।
    দ্বিপ॑দা॒ ছন্দ॑ऽইন্দ্রি॒য়মু॒ক্ষা গৌর্ন বয়ো॑ দধুঃ ॥ ২০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ত্বষ্টেত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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