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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 18
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    140

    दैव्या॒ होता॑रा भि॒षजेन्द्रे॑ण स॒युजा॑ यु॒जा।जग॑ती॒ छन्द॑ऽइन्द्रि॒यम॑न॒ड्वान् गौर्वयो॑ दधुः॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दैव्या॑। होता॑रा। भि॒षजा॑। इन्द्रे॑ण स॒युजेति॑ स॒ऽयुजा॑। यु॒जा। जग॑ती। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। अ॒न॒ड्वान्। गौः। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दैव्या होतारा भिषजेन्द्रेण सयुजा युजा । जगती छन्दऽइन्द्रियमनड्वान्गौर्वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दैव्या। होतारा। भिषजा। इन्द्रेण सयुजेति सऽयुजा। युजा। जगती। छन्दः। इन्द्रियम्। अनड्वान्। गौः। वयः। दधुः॥१८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 18
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ भिषग्वदितरैराचरितव्यमित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथेन्द्रेण सयुजा युजा दैव्या होतारा भिषजाऽनड्वान् गौर्जगती छन्दश्च वय इन्द्रियं दधुस्तथैतद्भवन्तो दधीरन्॥१८॥

    पदार्थः

    (दैव्या) देवेषु विद्वत्सु कुशलौ (होतारा) दातारौ (भिषजा) सद्वैद्यौ (इन्द्रेण) ऐश्वर्य्येण (सयुजा) यौ समानं युङ्क्तस्तौ (युजा) समाहितौ (जगती) (छन्दः) (इन्द्रियम्) धनम् (अनड्वान्) वृषभः (गौः) (वयः) कमनीयम् (दधुः) दध्युः॥१८॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वैद्यैः स्वेषां परेषां च रोगान्निवार्य्य स्वेऽन्ये चैश्वर्य्यवन्तः क्रियन्ते तथा सर्वैर्मनुष्यैर्वर्तितव्यम्॥१८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब अगले मन्त्र में वैद्य के तुल्य अन्यों को आचरण करना चाहिए, इस विषय को कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य लोगो! जैसे (इन्द्रेण) ऐश्वर्य से (सयुजा) ओषधि आदि का तुल्य योग करनेहारे (युजा) सावधान चित्त हुए (दैव्या) विद्वानों में निपुण (होतारा) विद्यादि के देने वाले (भिषजा) उत्तम दो वैद्य लोग (अनड्वान्) बैल (गौः) गाय और (जगती छन्दः) जगती छन्द (वयः) सुन्दर (इन्द्रियम्) धन को (दधुः) धारण करें, वैसे इस को तुम लोग धारण करो॥१८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वैद्यों से अपने और दूसरों के रोग मिटाके अपने आप और दूसरे ऐश्वर्यवान् किये जाते हैं, वैसे सब मनुष्यों को वर्त्तना चाहिए॥१८॥

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    विषय

    आप्री देवों का वर्णन । अग्नि, तनृनपात्, सोम बहिः, द्वार, उषासानक्ता, दैव्य होता, इडा आदि तीन देवियां, त्वष्टा, वनस्पति, वरण इन पदाधिकारों के कर्त्तव्य बल और आवश्यक सदाचार । तपः सामर्थ्य का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( दैव्या) देवों, शरीरस्थ प्राणों में व्यापक (होतारौ ) सबकों अपने भीतर ग्रहण करने वाले, (भिषजा) वैद्यों के समान शरीर के समस्त रोग विकारों को दूर करने वाले, (इन्द्रेण सयुजौ ) इन्द्र आत्मा के साथ सदा संयुक्त और (युजा) सदा स्वयं साथ रहने वाले प्राण अपान और उन्हीं के समान (दैव्या होतारा) देवों, विद्वानों में हितकारी ( भिषजाः ) शरीर और मन एवं समाज शरीर के दोषों को भी सद्वैद्य के समान दूर करने वाले (इन्द्रेण) राजा के साथ (सयुजौ) सहयोग रखने वाले, (युजा ) सदा परस्पर संयुक्त और (जगती छन्दः) ४८ अक्षर के जगती छन्द के समान, ४८ वर्ष के अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालक विद्वान् पति और (अनड्- वान् गौः) शकट को उठाने वाले बैल के समान राष्ट्र के शकट को उठाने वाला वीर बलवान् पुरुष, ये सभी ( इन्द्रियम् ) बल, ऐश्वर्य और ( वयः ), दीर्घ आयु और ज्ञान को (दधुः) धारण करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    अनड्वान् गौः

    पदार्थ

    १. 'स्वस्त्यात्रेय' के जीवन में (इन्द्रियम्) = शक्ति को तथा (वयः) - उत्कृष्ट जीवन को (दधुः) = धारण करते हैं। कौन ? २. प्रथम (दैव्या होतारा) = [ प्राणापानौ वै दैव्या होतारा - ऐ० २।४] प्राणापान जो (भिषजा) = सब व्याधियों के चिकित्सक हैं और वस्तुतः व्याधियों को आने ही न देनेवाले हैं। ३. दूसरे स्थान में इन्द्रेण (सयुजा) - आत्मा के साथ मिलकर कार्य करनेवाले (युजा) = [परस्परेण युक्तौ] परस्पर जुड़े-से हुए ये मन और बुद्धि हमारे जीवनों को उत्कृष्ट बनानेवाले हैं। इनका उत्कर्ष ही जीवन का उत्कर्ष है। ४. (जगती छन्द:) = लोकहित की प्रबल भावना भी हमें भोगमय जीवन से ऊपर उठाने में बड़ी सहायक होती है । ५. वह (गौ:) = ज्ञान की रश्मि भी हमें उत्कर्ष की ओर ले जाती है जो (अनड्वान्) = इस जीवन शकट का वहन करती है। ज्ञान की रश्मि जीवन की गाड़ी को उसी प्रकार सुन्दरता से ले चलती है जैसे बैल भार की गाड़ी को खैंच ले चलता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - १. प्राणापान जो दैव्य देव की ओर ले जानेवाले हैं तथा होतारा-सदा दानपूर्वक अदन करनेवाले हैं, सब इन्द्रियों को शक्ति देते हुए अपना कार्य करने में लगे रहते हैं । २. जीवात्मा के सदा के साथी मन व बुद्धि ३. लोकहित की प्रबल भावना ४.जीवन की गाड़ी को उत्तमता से वहन करनेवाली ज्ञानरश्मियाँ हमें सशक्त व सुन्दर जीवनवाला बनाएँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वैद्य स्वतःचे व इतरांचे रोग नाहीसे करून स्वतःला व इतरांना ऐश्वर्यवान करतो तसे सर्व माणसांनी वागावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात म्हटले आहे की वैद्याप्रमाणेच सर्व लोकांनी आचरण केले पाहिजे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, ज्याप्रमाणे (भिषजा) दोन उत्तम वैद्य (इन्द्रेण) आपल्याजवळील धनादीद्वारे (सयुजा) हितकर औषधीचा योग (युजा) मोठ्या सावधपणे निर्माण करतात (योग्य औषधी तयार करतात) (दैव्या) वैद्यकविद्येत प्रवीण आणि (होतारा) आयुर्वेद आदी विद्या प्रदान करणारे ते वैद्य (अनड्वान्‌) बैल (गौः) गौ, (जगती छन्दः) जगती छंद (त्या छंदातील मंत्रांत सांगितलेल्या विचाराप्रमाणे (वयः) सुंदर (इन्द्रियम्‌) धन (दधुः) धारण करतात, त्याप्रमाणे हे मनुष्यानो, तुम्हीही त्या उपायांनी धन धारण करा. (पशु-पालन, वैद्यकविद्या आदी वेदोपदेशाद्वारे संपत्ती अर्जित करा) ॥18॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे वैद्य आपले आसपासच्या सर्वच लोकांच्या रोगांचे निवारण करून स्वतः ऐश्वर्यवान होतात आणि इतरांनाही तसे करतात, तद्वत सर्व माणसांनी वागले पाहिजे. ॥18॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people, just as good physicians the correct dispensers of medicine with skill, with mind awakened, shrewd amongst the learned, bestowers of knowledge, ox and cow, and Jagati metre give us good wealth, so should ye all acquire the same.

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    Meaning

    Two divine personalities dedicated to yajna, the physicians, men of focussed mind working together (like fire and wind in the sky), jagati verses, the bull and the cow, these hold and bear the life and the desired wealth of life for us.

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    Translation

    May the two Daivya-hotara (two divine invokers), the two physicians and Indra (the resplendent), closely connected with each other, the Jagati metre and the cartdrawing bullock bestow long life and vigour (on the aspirant). (1)

    Notes

    Daivyā hotārā, divine invokers or priests; the two Asvins. Or, Agni and Väyu. Indreņa sayujā yujā, accordant with Indra, and accordant with each other. Anadvän, a bullock capable of drawing a cart.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ ভিষগ্বদিতরৈরাচরিতব্যমিত্যুপদিশ্যতে ॥
    এখন পরবর্ত্তী মন্ত্রে বৈদ্যতুল্য অন্যান্যদেরকে আচরণ করা উচিত, এই বিষয়কে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন (ইন্দ্রেন) ঐশ্বর্য্য দ্বারা (সয়ুজা) ওষধি আদির তুল্য যোগকারী (য়ুজা) সমাহিত চিত্ত (দৈব্যা) বিদ্বান্দিগের মধ্যে নিপুণ (হোতারা) বিদ্যাদি প্রদাতা (ভিষজা) উত্তম দুই বৈদ্যগণ (অনড্বান) বৃষ (গৌঃ) গাভি এবং (জগতী ছন্দঃ) জগতী ছন্দ (বয়ঃ) সুন্দর (ইন্দ্রিয়ম্) ধনকে (দধুঃ) ধারণ করিবে, সেইৱূপ ইহাকে তোমরা ধারণ কর ॥ ১৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন বৈদ্য দ্বারা নিজের ও অপরের রোগ নিবারণ করিয়া স্বয়ং এবং অন্যান্যদেরকে ঐশ্বর্য্যবান করা হয়, সেইরূপ সকল মনুষ্যকে ব্যবহার করা উচিত ॥ ১৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    দৈব্যা॒ হোতা॑রা ভি॒ষজেন্দ্রে॑ণ স॒য়ুজা॑ য়ু॒জা ।
    জগ॑তী॒ ছন্দ॑ऽইন্দ্রি॒য়ম॑ন॒ড্বান্ গৌর্বয়ো॑ দধুঃ ॥ ১৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    দৈব্যেত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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