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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 17
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    63

    उ॒षे य॒ह्वी सु॒पेश॑सा॒ विश्वे॑ दे॒वाऽअम॑र्त्याः।त्रि॒ष्टुप् छन्द॑ऽइ॒हेन्द्रि॒यं प॑ष्ठ॒वाड् गौर्वयो॑ दधुः॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒षेऽइत्यु॒षे। य॒ह्वीऽइति॑ य॒ह्वी। सु॒पेश॒सेति॑ सु॒ऽपेश॑सा। विश्वे॑। दे॒वाः। अम॑र्त्याः। त्रि॒ष्टुप्। त्रि॒स्तुबिति॑ त्रि॒ऽस्तुप्। छन्दः॑। इ॒ह। इ॒न्द्रि॒यम्। प॒ष्ठ॒वाडिति॑ पष्ठ॒ऽवाट्। गौः। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषे यह्वी सुपेशसा विश्वे देवा अमर्त्याः । त्रिष्टुप्छन्दऽइहेन्द्रियम्पष्ठवाड्गौर्वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उषेऽइत्युषे। यह्वीऽइति यह्वी। सुपेशसेति सुऽपेशसा। विश्वे। देवाः। अमर्त्याः। त्रिष्टुप्। त्रिस्तुबिति त्रिऽस्तुप्। छन्दः। इह। इन्द्रियम्। पष्ठवाडिति पष्ठऽवाट्। गौः। वयः। दधुः॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथेह सुपेशसोषे यह्वी अमर्त्या विश्वे देवास्त्रिष्टुप् छन्दः पष्ठवाड्गौर्वय इन्द्रियं दधुस्तथा यूयमप्याचरत॥१७॥

    पदार्थः

    (उषे) दहनकर्त्र्याविव स्त्रियौ (यह्वी) महती महत्यौ (सुपेशसा) सुष्ठु पेशो रूपं ययोस्तावध्यापिकोपदेशिके। विभक्तेरात्वम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) देदीप्यमानाः पृथिव्यादयः (अमर्त्याः) तत्त्वस्वरूपेण नित्याः (त्रिष्टुप्) (छन्दः) (इह) अस्मिन् संसारे (इन्द्रियम्) धनम् (पष्ठवाट्) यः पष्ठेन पृष्ठेन वहति सः। इदं पृषोदरादिना सिद्धम् (गौः) वृषभः (वयः) प्रजननम् (दधुः) दध्युः॥१७॥

    भावार्थः

    यथा पृथिव्यादयः पदार्थाः परोपकारिणः सन्ति, तथाऽत्र मनुष्यैर्भवितव्यम्॥१७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे (इह) इस जगत् में (सुपेशसा) सुन्दर रूपयुक्त पढ़ाने और उपदेश करने हारी (यह्वी) बड़ी (उषे) दहन करने वाली प्रभात वेला के समान दो स्त्री (अमर्त्याः) तत्त्वस्वरूप से नित्य (विश्वे) सब (देवाः) देदीप्यमान पृथ्वी आदि लोक (त्रिष्टुप् छन्दः) त्रिष्टुप् छन्द और (पष्ठवाट्) पीठ से उठाने वाला (गौः) बैल (वयः) उत्पत्ति और (इन्द्रियम्) धन को धारण करते हैं, वैसे (दधुः) तुम लोग भी आचरण करो॥१७॥

    भावार्थ

    जैसे पृथ्वी आदि पदार्थ परोपकारी हैं, वैसे इस जगत् में मनुष्यों को होना चाहिए॥१७॥

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    विषय

    आप्री देवों का वर्णन । अग्नि, तनृनपात्, सोम बहिः, द्वार, उषासानक्ता, दैव्य होता, इडा आदि तीन देवियां, त्वष्टा, वनस्पति, वरण इन पदाधिकारों के कर्त्तव्य बल और आवश्यक सदाचार । तपः सामर्थ्य का वर्णन ।

    भावार्थ

    (यह्वी) बड़ी, पूजनीय, (सुपेशसा) उत्तम रूप वाली, (उषे) -दो उषाएं और सायं प्रातः की सन्धि वेलाओं के समान उत्तम ज्ञान प्रकाश वाली, पाप, अज्ञान का दहन करने में समर्थ, उपदेशिका और अध्यापिका, धर्मसभा और विद्वत्-सभा और (विश्वे देवाः) समस्त ज्ञानी और विजयी पुरुष, (अमर्त्याः) दिव्य पदार्थ पृथिवी सूर्य के समान स्थिर रहने वाले, अनश्वर, सुरक्षित एवं नित्य हैं । वे और (त्रिष्टुप् छन्दः) ४४ अक्षरों वाले त्रिष्टुप् के समान ४४ वर्षों तक के अक्षत ब्रह्मचर्यवान् पुरुष और (पष्ठबाड् गौः) पृष्ठ से भार उठाने वाले बैल के समान राष्ट्र का कार्यभार अपने ऊपर लेने वाले पुरुष ये सब (इह) इस राष्ट्र में (इन्द्रियम् ) बल, वीर्य, ऐश्वर्यं और (वय) दीर्घ जीवन, अन्न और ज्ञान को ( दधुः ) स्वयं धारण करें और धारण करावे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदनुष्टुप् गान्धारः ।।

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    विषय

    पष्ठवाड् गौः

    पदार्थ

    १. (यह्वी) = [महत्यौ] महिमा से सम्पन्न (सुपेशसा) = उत्तम रूपवाली (उषे) = [द्विवचनाद् दिनं रात्रिं च - म०] दोनों सन्ध्याकाल [twilights] (इह) = इस मानव-जीवन में (इन्द्रियम्) = इन्द्रियों की शक्ति को तथा (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को (दधुः) = धारण करें। दोनों सन्ध्याकाल हमें 'सूर्य व चन्द्र' के मेल का ध्यान कराते हैं और बोध देते हैं कि तुम्हारा मस्तिष्क सूर्य के समान हो तो तुम्हारा हृदय चन्द्रमा के समान हो । सूर्य के समान देदीप्यमान ज्ञान तथा चन्द्र के समान आह्लादमय मन दानों ही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं तथा ये दोनों जीवन को अत्यन्त सुन्दर रूप प्राप्त कराते हैं। २. (विश्वेदेवाः) = सब दिव्य गुण जो (अमर्त्याः) = मनुष्य को मृत्यु के मार्ग से बचाते हैं, ये भी 'इन्द्रिय और वयः' के धारण करानेवाले हैं। ३. (त्रिष्टुप् छन्दः) = 'काम, क्रोध व लोभ' तीनों को रोकने की प्रबल इच्छा हमारे जीवन को उत्कृष्ट बनाती है। इनके अतिरिक्त ४. (गौ:) = ज्ञानरश्मि जो (पष्ठवाट्) = [ पष्ठं भारं वहति - उ० ] कार्यभार को धारण करती है। ज्ञान जो क्रिया को उत्तमता से करनेवाला होता है, वह मानव-जीवन को सशक्त व उत्तम बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ-जीवन को सूर्य व चन्द्र के समान बनाने का उपदेश देनेवाला उषःकाल २. विषयों के पीछे न मरने देनेवाले दिव्य गुण ३. 'काम, क्रोध व लोभ' को रोकने की प्रबल कामना तथा ४. कार्यभार को सुचारुरूपेण वहन करनेवाला ज्ञान हमारे जीवनों को सशक्त व उत्कृष्ट बनाएँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या जगात पृथ्वी वगैरे पदार्थ जसे परोपकारी आहेत, तसेच माणसांनी वागावे.

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    विषय

    पुनश्च, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, ज्या प्रमाणे (इह) या जगात (सुपेशसा) सुंदर रूपवती आणि उपदेश करणाऱ्या (यह्वी) महान्‌ (उषे) उषःकालाप्रमाणे उष्णता प्रदान करणाऱ्या विदुषी दोन स्त्रिया (धन आदी धारण करतात) तसेच (अमर्त्याः) तत्त्वरूपाने (प्रकृति) रूपाने जे) (विश्वे) सर्व (देवाः) देदीप्यमान पृथ्वी आदी लोक आहेत (त्रिष्टुप्‌ छन्दः) त्रिष्टुप्‌ छंद आणि (पष्ठवाट्) पाठीवर ओझे वाहणारे (गौः) बैल आहेत, ते (वयः) उत्पत्ती करतात, (संततीवृद्धी) द्वारा निसर्गचक्र सुरू ठेवतात) आणि (इन्द्रियम्‌) त्याद्वारे धनसंपत्ती धारण करतात (जगात, त्रिष्टुप्‌ छंद ज्ञान वाढवितो, बैल ओझे वाहतो आणि संतती-चक्र आरंभ ठेवतो व धरती धन-संपदा धारण करते) तद्वत, हे मनुष्यांनो, तुम्ही पण (दधुः) आचरण करा (वैदिक उपदेश आणि पशुपालनाद्वारे समृद्धी वाढवा) ॥17॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जसे पृथ्वी आदी पदार्थ परोपकार करतात, त्याप्रमाणे या जगात सर्व मनुष्यांनीही केले पेहिजे. ॥17॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people, just as in this world, the female teacher and preacher of lovely form, like two dawns of great brilliance, all the immortal bright forces of nature, the Trishtup metre and the bull that carries burden on its back, give us wealth and life, so should ye all acquire them.

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    Meaning

    In this world here, the early dawn and the evening twilight with the grandeur and peace of their beauty, the immortal powers of divinity in life and nature, trishtup verses, the ox that patiently carries the burdens on his back, these bear and sustain the life and senses for us all.

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    Translation

    May the two Usas (i. e. dawns), beautiful in appearance and immortal Visvedevah (all Nature's bounties), the Tristup metre and a bull, capable of carrying burden bestow long life and vigour (on the aspirant). (1)

    Notes

    Yahvi, महत्यौ, great. Paşthavat, a bullock capable of carrying load.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন (ইহ) এই জগতে (সুপেশসা) সুন্দর রূপযুক্ত অধ্যাপিকা ও উপদেশিকা (য়হ্বী) মহতী (উষে) দহন কর্ত্রী প্রভাতবেলার সমান দুই নারী (অমর্ত্যাঃ) তত্ত্বস্বরূপে নিত্য (বিশ্বে) সকল (দেবাঃ) দেদীপ্যমান পৃথিবী আদি লোক (ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ) ত্রিষ্টুপ্ ছন্দ এবং (পষ্ঠবাট্) যে পৃষ্ঠ দ্বারা বহন করে, সে (গৌঃ) বৃষ (বয়ঃ) উৎপত্তি ও (ইন্দ্রিয়ম্) ধনকে ধারণ করে সেইরূপ (দধুঃ) তোমরাও আচরণ কর ॥ ১৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যেমন পৃথিবী আদি পদার্থ পরোপকারী, সেইরূপ এই জগতে মনুষ্যদিগের হওয়া উচিত ॥ ১৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    উ॒ষে য়॒হ্বী সু॒পেশ॑সা॒ বিশ্বে॑ দে॒বাऽঅম॑র্ত্যাঃ ।
    ত্রি॒ষ্টুপ্ ছন্দ॑ऽই॒হেন্দ্রি॒য়ং প॑ষ্ঠ॒বাড্ গৌর্বয়ো॑ দধুঃ ॥ ১৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    উষ ইত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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