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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निवरुणौ देवते छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    116

    त्वं नो॑ऽअग्ने॒ वरु॑णस्य वि॒द्वान् दे॒वस्य॒ हेडो॒ऽअव॑ यासिसीष्ठाः। यजि॑ष्ठो॒ वह्नि॑तमः॒ शोशु॑चानो॒ विश्वा॒ द्वेषा॑सि॒ प्र मु॑मुग्ध्य॒स्मत्॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। वरु॑णस्य। वि॒द्वान्। दे॒वस्य॑। हेडः॑। अव॑। या॒सि॒सी॒ष्ठाः॒। यजि॑ष्ठः। वह्नि॑तम इति वह्नि॑ऽतमः। शोशु॑चानः। विश्वा॑। द्वेषा॑सि। प्र। मु॒मु॒ग्धि॒। अ॒स्मत्॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वन्नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान्देवस्य हेडोऽअवयासिसीष्ठाः । यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषाँसि प्रमुमुग्ध्यस्मत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। नः। अग्ने। वरुणस्य। विद्वान्। देवस्य। हेडः। अव। यासिसीष्ठाः। यजिष्ठः। वह्नितम इति वह्निऽतमः। शोशुचानः। विश्वा। द्वेषासि। प्र। मुमुग्धि। अस्मत्॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विद्वांस्त्वं वरुणस्य देवस्य यो हेडस्तमव यासिसीष्ठा मा कुर्या। हे अग्ने! त्वं यो नोऽज्ञमाकं हेडो भवेत्तं मा स्वीकुर्या॥ हे शिक्षक! त्वमस्मद्विश्वा द्वेषांसि प्रमुमुग्धि॥३॥

    पदार्थः

    (त्वम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) पावकवत्प्रकाशमान (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य (विद्वान्) विद्यायुक्तः (देवस्य) विदुषः (हेडः) अनादरः (अव) निषेधे (यासिसीष्ठाः) यायाः प्राप्नुयाः (यजिष्ठः) अतिशयेन यष्टा (वह्नितमः) अतिशयेन वोढा (शोशुचानः) शुद्धः शोधयन् सन् (विश्वा) सर्वाणि (द्वेषांसि) द्वेषादियुक्तानि कर्माणि (प्र) (मुमुग्धि) प्रमोचय (अस्मत्) अस्माकं सकाशात्॥३॥

    भावार्थः

    कोऽपि मनुष्यो विदुषामनादरं कोऽपि विद्वान् विद्यार्थिनामसत्कारं च न कुर्यात्, सर्वे मिलित्वेर्ष्याक्रोधादिदोषांस्त्यक्त्वा सर्वेषां सखायो भवेयुः॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) के तुल्य प्रकाशमान (यजिष्ठः) अतीत यजन करने (वह्नितमः) अत्यन्त प्राप्ति कराने और (शोशुचानः) शुद्ध करने हारे (विद्वान्) विद्यायुक्त जन! (त्वम्) तू (वरुणस्य) श्रेष्ठ (देवस्य) विद्वान् का जो (हेडः) अनादर उस को (अव) मत (यासिसीष्ठाः) करे। हे तेजस्वि! तू जो (नः) हमारा अनादर हो उस को अङ्गीकार मत कर। हे शिक्षा करने हारे! तू (अस्मत्) हम से (विश्वा) सब (द्वेषांसि) द्वेष आदि युक्त कर्मों को (प्र, मुमुग्धि) छुड़ा दे॥३॥

    भावार्थ

    कोई भी मनुष्य विद्वानों का अनादर और कोई भी विद्वान् विद्यार्थियों का असत्कार न करे, सब मिल के ईर्ष्या, क्रोध आदि दोषों को छोड़ के सब के मित्र होवें॥३॥

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    विषय

    प्रजा के परस्पर कलहों का करना, राजा का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्रणी नेतः ! ज्ञानवन् ! विद्वन् (त्वम् ) तू (नः) हमारे बीच में (विद्वान् ) विद्यावान् है । अतः तू (वरुणस्य देवस्य ) समस्त शत्रुओं के नाशक एवं सर्वश्रेष्ठ, देव, विजयशील राजा के द्वारा (हेड :) प्राप्त अनादर एवं उसके प्रति हमसे हुए अनादर या अवज्ञा के भाव को या उसके कोप को (अब यासिसीष्ठाः) दूर कर । तू ही (यजिष्ठः) सबसे अधिक पूजा करने योग्य, ( वाह्नितमः) कार्यभार को वहन करने में सर्वोतम, नेता और (शोशुचानः) अग्नि के समान शुद्ध और अन्यों को शुद्ध करने हारा, ज्ञानदीप्ति से प्रकाशमान है । तू ( अस्मत् ) हमसे ( विश्वा द्वेषांसि ) समस्त प्रकार के द्वेषभावों को ( प्र मुमुग्धि) दूर कर ।

    टिप्पणी

    टिप्पणी ३ – 'हेळो' ० इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः । अग्निर्वरुणश्च देवते । विराट् त्रिष्टुप् धैवतः ॥

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    विषय

    द्वेष- दूरीकरण

    पदार्थ

    १. हे अग्ने अग्नि के समान ज्ञान के प्रकाश से चमकनेवाले वरुणस्य (विद्वान्) = सब बुराइयों का निवारण करनेवाले, हमारे जीवनों को श्रेष्ठ बनानेवाले विद्वन्! प्रभु को जाननेवाला (त्वम्) = तू (नः) = हमसे देवस्य दिव्य गुणों के पुञ्ज, सब-कुछ देनेवाले प्रभु के (हेड:) क्रोध को (अवयासिसीष्ठाः) = दूर नष्ट कर (दसु उपक्षये) । हमारे ज्ञान देनेवाले आचार्य [क] 'अग्नि' हों-अग्नि के समान ज्ञान से प्रकाशित हों तथा [ख] उस प्रभु के जाननेवाले हों, जिस प्रभु का ज्ञान ही हमारे जीवनों को उत्तम बनाता है। ये विद्वान् ज्ञान-प्रदान द्वारा हमारे जीवनों में इस प्रकार परिवर्तन पैदा करें कि हम कभी भी 'वरुण' प्रभु के क्रोध के पात्र न हों। २. हे विद्वन्! आप (यजिष्ठ:) = अधिक-से-अधिक यज्ञ करनेवाले, देवों का आदर करनेवाले हो । (वह्नितमः) = ऊँचे-से-ऊँचे ज्ञान का वहन करनेवाले हो । (शोशुचानः) = इसी कारण अपने जीवन को अत्यन्त पवित्र बनानेवाले हो। ३. आप हमें उपदेश देकर (अस्मत्) = हमसे विश्वा द्वेषांसि सब द्वेष की भावनाओं को प्रमुमुग्धि छुड़ा दीजिए ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम पारस्परिक कलह व ईर्ष्या-द्वेष को दूर करें। परस्पर प्रेम से वर्ते तभी हम प्रभु की कृपा के पात्र होंगे।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    कोणत्याही माणसाने विद्वानांचा अनादर करू नये व कोणत्याही विद्वानाने विद्यार्थ्यांचा उपमर्द करू नये. सर्वांनी मिळून ईर्ष्या, क्रोध इत्यादी दोषांना सोडून सर्वांचे मित्र बनावे.

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    विषय

    पुन्हा त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (उपासक म्हणतात) (अग्ने) अग्नी प्रमाणे तेजस्वी वा कीर्तीमान आणि (यजिष्ठः) प्रभूत व सदा यज्ञ करणारे तसेच (वह्नितमः) आम्हांस (ज्ञान, उपदेश आदींची) यथेच्छ प्राप्ती करून देणारे हे (विद्वन्‌) विद्यावान महोदय, (त्वम्‌) आपण (वरूणस्य) श्रेष्ठ (देवस्य) (आपल्याहून विद्वान असलेल्या) (वरूणस्य) श्रेष्ठ (देवस्य) विद्वानाचा कधी (हेडः) अनादर (अव) (यासिसीष्ठाः) करूं नका. (आपल्या अल्पविद्येच्या गर्वामुळे आपण कधी त्या श्रेष्ठ विद्वानाचा कदाचित अपमान कराल, तसे करूं नका) तसेच हे तेजस्वी विद्वान महोदय आपण (नः) आमच्याकडून (चुकून) जर आपला अनादर झाला, तर त्याच्या स्वीकार करू नका (त्याची उपेक्षा करा) आम्हा (विद्यार्थ्यांना वा उपासकांना) ज्ञान देणाऱ्या हे विद्वान्‌, आपण (अस्मत्‌) आमच्याकडून (विश्वा) सर्व (द्वेषांसि) द्वेषयुक्त कर्मांना (वा विचारांना) (प्र, मुमुग्धि) दूर करा (आमच्या हृदयात असलेल्या द्वेषबुद्धीपासून आम्हांस मुक्त करा, ही प्रार्थना) ॥3॥

    भावार्थ

    भावार्थ - कोणीही विद्वानांचा अनादर करूं नये. तसेच कोणा विद्वानानेदेखील कोणा विद्यार्थ्याचा अनादर करूं नये. सर्वांनी संगठित राहून एकमेकाशी द्वेष, क्रोध, ईर्ष्या आदी दोषपूर्ण आचरण करूं नये ॥3॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O Omniscient God, Thou art the Master of all branches of knowledge, put far away from us disrespect to a learned person. Extremely venerable, Effulgent and Purifier, remove Thou far from us all feelings of hatred.

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    Meaning

    Agni, sagely man of light, brilliant scholar and teacher, most dedicated to yajna, surest guide to light and life, purest purifier, save us from frivolity and offence to Varuna, lord supreme of the world, and help us keep away from all hate and anger.

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    Translation

    O all-wise fire divine, avert from us the wrath of cosmic waters. You are the best invoker, and the most diligent bearer of oblations, the most resplendent; may you liberate us from all animosities. (1)

    Notes

    Agne,हे पूजनीय, O adorable Lord. Also, O fire divine; Or, O leader of people. Heḍaḥ, क्रोधं, anger; wrath. Avayāsisīṣṭhāḥ,अवगमय निवर्तय ,put away; remove. Vidvän, one who knows everything in its right perspective. Yajişthaḥ, most worshipped; greatest performer of sacri fices; most bounteous donor. Vahnitamaḥ, best of the carriers, i. e. bringer of joys. Sośucānah, देदीप्यमानः, शोधयन् वा, radiant; or purifier. Dveṣāmsi, दौर्भाग्यानि, misfortunes; or, enmities. Pra mumugdhi, प्रमुञ्च, दूरीकुरु, remove far away.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অগ্নে) অগ্নিতুল্য প্রকাশমান (য়জিষ্ঠঃ) অতীব যজন করিবার (বহ্নিতমঃ) অত্যন্ত প্রাপ্তি করাইবার এবং (শোশুচানঃ) শুদ্ধ করিবার (বিদ্বান্) বিদ্যাযুক্ত ব্যক্তি! (ত্বম্) তুমি (বরুণস্য) শ্রেষ্ঠ (দেবস্য) বিদ্বানের যে (হেডঃ) অনাদর উহা (অব) না (য়াসিসীষ্ঠাঃ) করিও । হে তেজস্বী ! তুমি যাহা দ্বারা (নঃ) আমাদের অনাদর হয় তাহাকে অঙ্গীকার করিবে না । হে শিক্ষা প্রদাতা । তুমি (অস্মৎ) আমাদের হইতে (বিশ্বা) সকল (দ্বেষাংসি) দ্বেষাদি যুক্ত কর্মসকলকে (প্র, মুমুগ্ধি) ত্যাগ করাও ॥ ৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- কোনও মনুষ্য বিদ্বান্দিগের অনাদর এবং কোনও বিদ্বান্ বিদ্যার্থীদিগের অসৎকার করিবে না, সকলে মিলিয়া ঈর্ষা, ক্রোধাদি দোষ পরিত্যাগ করিয়া সকলের মিত্র হউক ॥ ৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ত্বং নো॑ऽঅগ্নে॒ বর॑ুণস্য বি॒দ্বান্ দে॒বস্য॒ হেডো॒ऽঅব॑ য়াসিসীষ্ঠাঃ ।
    য়জি॑ষ্ঠো॒ বহ্নি॑তমঃ॒ শোশু॑চানো॒ বিশ্বা॒ দ্বেষা॑ᳬंসি॒ প্র মু॑মুগ্ধ্য॒স্মৎ ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ত্বমিত্যস্য বামদেব ঋষিঃ । অগ্নিবরুণৌ দেবতে । স্বরাট্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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