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यजुर्वेद अध्याय - 8

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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 28
    ऋषिः - अत्रिर्ऋषिः देवता - दम्पती देवते छन्दः - भूरिक् साम्नी उष्णिक्,प्राजापत्या अनुष्टुप्, स्वरः - ऋषभः, गान्धारः
    115

    एज॑तु॒ दश॑मास्यो॒ गर्भो॑ ज॒रायु॑णा स॒ह। यथा॒यं वा॒युरेज॑ति॒ यथा॑ समु॒द्रऽएज॑ति। ए॒वायं दश॑मास्यो॒ऽअस्र॑ज्ज॒रायु॑णा स॒ह॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एज॑तु। दश॑मास्य॒ इति॒ दश॑ऽमास्यः। गर्भः॑। ज॒रायु॑णा। स॒ह। यथा॑। अ॒यम्। वा॒युः। एज॑ति। यथा॑। स॒मु॒द्रः। एज॑ति। ए॒व। अ॒यम्। दश॑मास्य॒ इति॒ दश॑ऽमास्यः। अस्र॑त्। ज॒रायु॑णा। स॒ह ॥२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एजतु दशमास्यो गर्भा जरायुणा सह । यथायँवायुरेजति यथा समुद्र एजति । एवायन्दशमास्यो ऽअस्रज्जरायुणा सह ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एजतु। दशमास्य इति दशऽमास्यः। गर्भः। जरायुणा। सह। यथा। अयम्। वायुः। एजति। यथा। समुद्रः। एजति। एव। अयम्। दशमास्य इति दशऽमास्यः। अस्रत्। जरायुणा। सह॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 28
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ गार्हस्थ्यधर्म्मे गर्भव्यवस्थामाह॥

    अन्वयः

    हे दम्पती! यथायं वायुरेजति, यथा समुद्र एजति, तथा जरायुणा सह दशामास्यो गर्भ एजतु, क्रमेण वर्द्धमानोऽयं जरायुणा सह दशमास्य एवास्रत् स्रंसताम्॥२८॥

    पदार्थः

    (एजतु) चलतु (दशमास्यः) दशसु मासेषु भवः (गर्भः) ग्रियते सिच्यते गृह्यते वा स गर्भः, गर्भो गृभेर्गृणात्यर्थे, गिरत्यनर्थानिति वा। यदा हि स्त्रीगुणान् गृह्णाति गुणाश्चास्या गृह्यन्ते [अथ गर्भो भवति᳕। (निरु॰१०।२३) (जरायुणा) आवरणेन (सह) (यथा) (अयम्) (वायुः) (एजति) कम्पते (यथा) (समुद्रः) उदधिः (एजति) वर्द्धते (एव) अवधारणार्थे (अयम्) वर्त्तमानः (दशमास्यः) (अस्रत्) स्रंसतोऽधः स्रवतु, लोडर्थे लङ् (जरायुणा) (सह)। अयं मन्त्रः (शत॰ ४। ५। २। ४-९) व्याख्यातः॥२८॥

    भावार्थः

    ब्रह्मचर्य्येण शरीरपुष्टिमनःसन्तुष्टिविद्यावृद्धिसम्पन्नौ कृतविवाहौ दम्पती यत्नेन गर्भरक्षणं कुर्य्याताम्, यतः स दशमास्यो दशमासात् पूर्वं न स्खलेत्। यो हि दशमासादूर्ध्वं जायते, स प्रायशो बलबुद्धियुक्तो भवति, तस्मात् पूर्वमुत्पद्यते नायं तादृग्भवति॥२८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब गृहस्थ धर्म्म में गर्भ की व्यवस्था अगले मन्त्र में कही है॥

    पदार्थ

    हे स्त्री-पुरुष! जैसे (वायुः) पवन (एजति) कम्पता है, वा जैसे (समुद्रः) समुद्र (एजति) अपनी लहरी से उछलता है, वैसे तुम्हारा (अयम्) यह (दशमास्यः) पूर्ण दश महीने का गर्भ (एजतु) क्रम-क्रम से बढ़े और ऐसे बढ़ाता हुआ (अयम्) यह (दशमास्यः) दश महीने में परिपूर्ण होकर ही (अस्रत्) उत्पन्न होवे॥२८॥

    भावार्थ

    ब्रह्मचर्यधर्म्म से शरीर की पुष्टि, मन की सन्तुष्टि और विद्या की वृद्धि को प्राप्त होकर और विवाह किये हुए जो स्त्री-पुरुष हों, वे यत्न के साथ गर्भ को रक्खें कि जिससे वह दश महीने के पहिले गिर न जाये, क्योंकि जो गर्भ दश महीने से अधिक दिनों का होता है, वह प्रायः बल और बुद्धि वाला होता है और जो इससे पहिले होता है, वह वैसा नहीं होता है॥२८॥

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    विषय

    दशमास्य एजन

    पदार्थ

    १. अब गर्भस्थ बालक बाहर आता है। उसके लिए कहते हैं कि— यह ( दशमास्यः ) = दस मासों में होनेवाला ( गर्भः ) = [ गर्भे, स्त्रीगुणान् गृह्णाति गुणाश्चास्या गृह्यन्ते अथ गर्भो भवति—नि० १०।२३ ] माता-पिता के गुणों को ग्रहण करनेवाला यह गर्भ, अर्थात् गर्भस्थ बालक ( जरायुणा सह ) = आवरण के साथ ( एजतु ) = कम्पमय हो, कुछ गतिवाला हो। 

    २. ( यथा ) = जैसे ( अयम् वायुः ) = यह वायु ( एजति ) = चलता है ( यथा ) = जैसे ( समुद्रः ) = समुद्र ( एजति ) = कम्पित होता है ( एव ) = इसी प्रकार ( अयम् दशमास्यः ) = यह दसवें मास में होनेवाला ( जरायुणा सह ) = जरायु के साथ ( अस्रत् ) = अधः स्रवतु—नीचे स्रुत हो, अर्थात् गर्भ से बाहर आये।

    भावार्थ

    भावार्थ — जैसे वायु व समुद्र की स्वाभाविक गति व कम्पन है, इसी प्रकार दशमास्य गर्भ में भी कम्पन हो और वह मातृगर्भ से बाहर आये।

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    विषय

    राजा की गर्भ से उपमा।

    भावार्थ

    मं० २६ में राजा को गर्भ से उपमा दी है। उसी का पुनः निर्वाह करते हैं । ( दशमास्यः गर्भः ) दश मास का गर्भ जिस प्रकार ( जरायुण ) जेर के साथ शनैः २ बाहर आता है और माता को प्रसवकाल में पीड़ा देता है । उसी प्रकार दश मास के परिपक्क गर्भ के समान अच्युत, दृढ़ ( गर्भः ) राष्ट्र को पूर्ण प्रकार से ग्रहण करने में समर्थ राजा ( जरायुणा ) अपने जरायु अर्थात् चारों ओर से घेरनेवाले, अपनी स्तुति करनेवाले, अपने सपक्षी दल के साथ ( एजतु ) चले । और ( यथा ) जिस प्रकार ( अयं वायुः ) यह वायु बड़े वेग से समस्त वृक्ष आदि को कंपाता हुआ (एजति ) चलता है और ( यथा समुद्रः एजति ) जिस प्रकार समुद्र गर्जता हुआ तरङ्गों द्वारा कांपता है ( एवा ) उसी प्रकार ( अयम् ) यह दशमास्यः ) दशों दिशाओं में मास अर्थात् चन्द्रमा के समान आह्लादक दशमास्य गर्भ के बालक के समान स्वयं उत्पन्न होनेहारा और प्रजाओं को प्रसन्न करने हारा राजा ( जरायुणा सह ) अपने स्तुति करनेहारे दल के साथ (असत्) बाहर आता है, स्पष्टरूप में प्रकट होता है ॥ शत० ४ । ५ ॥ २ । ४, ५ ॥ 
    `` जरायु' - शणा जरायु ॥ श० ६ । ६ । २ । १५ ॥ यत्र वा प्रजा- पतिरजायत गर्भो भूत्वा एतस्मात् यज्ञात् । तस्य यन्नेदिष्ठमुल्वमासीत् ते शरणः ॥ श० ३।२।१।११।। 
    गर्भपत्र में --- दस मास का गर्भ जरायु के साथ चले । जिस वेग से वायु और समुद्र चलता है उस प्रकार विना बाधा के जरायु सहित गर्भ बाहर आवे | इस मन्त्र को महीधर आदि ने गर्भणी गाय के गर्भ कर्तन मैं लगाया है, सो असंगत है । 

    टिप्पणी

    १ एजत दशमास्य  २ यथायंवायुरेजति ३ एवायंदशमास्योऽअराज्जरायुणा ।  २८ - दम्पती देवते ।द० । 
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गर्भो देवता । व्यवसाना महापंक्तिः । अथवा ( १ ) साम्न्यासुरी उष्णिक् । ऋषभः  ( २ ) प्राजापत्यानुष्टुप् । गांधारः ॥ 

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ब्रह्मचर्याने ज्यांचे शरीर पुष्ट झालेले असून, मन संतुष्ट झालेले आहे व विद्या प्राप्त झालेली आहे, अशा स्त्री-पुरुषांनी विवाह करावा. त्यांनी प्रयत्नपूर्वक गर्भ वाढवावा. दहा महिन्यांच्या आधी गर्भपात होता कामा नये. कारण जो गर्भ दहा महिन्यांपेक्षा जास्त दिवसांचा असतो. तो नेहमी बलवान व बुद्धिमान असतो. जो तत्पूर्वी जन्मतो तो तसा नसतो.

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    विषय

    पुढील मंत्रात गृहस्थधर्मात गर्भाच्या पालन-पोषणाविषयी कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे पति-पत्नी, (मी पुरोहित, विद्वान ला घरातील ज्येष्ठ पुरुष तुम्हास आशीर्वाद देत आहे की) ज्याप्रमाणे हा (वायु:) वायू (एजति) कापतो (लाटांच्यारुपाने उंच उच जातो) त्याप्रमाणे (अयम्) मातेच्या पोटातील हा गर्भ (दशमास्य:) दहा महिन्यापर्यंत (एजतु) क्रमाक्रमाने वाढो आणि अशाप्रकारे वाढत वाढत (अयम्) हा गर्भ (दशमास्य:) दहा महिन्यात परिपूर्ण होऊनच (अग्रत्) उत्पन्न होवो ॥28॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे स्त्री-पुरुष ब्रह्मचर्याद्वारे शरीराची पुष्टी करून, संतुष्टमन आणि विद्यावान होऊन विवाह करतात, त्यांनी गर्भातील यत्नाने रक्षण-पालन करावे की ज्यामुळे दहा महिन्यांपूर्वी गर्भपात होऊ नये. जो गर्भ दहा महिन्यापेक्षा अधिक काळापर्यंत (दहा महिने दहा दिवस) आईच्या पोटात असतो, तो गर्भ (शिशु व बालक) बळ आणि बुद्धीने पूर्ण असतो. गर्भ जर यापेक्षा कमी काळ मातृउदरात राहिला, तर तो बळ-बुद्धीच्या दृष्टीने कमी ठरतो. ॥28॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Let, still unborn, the ten-month old child move with the secundines. Just as the wind moves, as the ocean moves uninterruptedly, so may this ten-month child come forth together with the secundines.

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    Meaning

    May the foetus of the tenth month stir with its membrane-cover just as this wind moves, just as the sea moves. And may this foetus of the tenth month be born (safe and alive) with the membrane cover.

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    Translation

    As this wind moves and as the flood of ocean moves, so may the embryo in its tenth month move from its place along with the placenta. In this way, this embryo of the tenth month may move out along with the placenta. (1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ গার্হস্থ্যধর্ম্মে গর্ভব্যবস্থামাহ ॥
    এখন গৃহস্থ ধর্ম্মে গর্ভের ব্যবস্থা পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে স্ত্রী পুরুষ ! যেমন (বায়ুঃ) পবন (এজতি) কম্পন করে বা যেমন (সমুদ্রঃ) সমুদ্র (এজতি) তরঙ্গায়িত হয়, সেইরূপ তোমার (অয়ম্) এই (দশমাস্যঃ) পূর্ণ দশমাসের গর্ভ (এজতু) ক্রমপূর্বক বৃদ্ধি পাউক এবং এইরূপ বৃদ্ধি পাইয়া (অয়ম্) ইহা (দশমাস্যঃ) দশ মাসে পরিপূর্ণ হইয়াই (অস্রৎ) উৎপন্ন হউক ॥ ২৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- ব্রহ্মচর্য্য ধর্ম্ম দ্বারা শরীরের পুষ্টি, মনের সন্তুষ্টি এবং বিদ্যার বৃদ্ধি প্রাপ্ত হইয়া এবং বিবাহিত যে স্ত্রী-পুরুষ হইবে তাহারা যত্ন সহ গর্ভকে ধারণ করিবে যাহাতে উহা দশ মাসের পূর্বে পতিত না হয় কেননা যে গর্ভ দশ মাসের বেশী দিনের হয় উহা প্রায় বল ও বুদ্ধি যুক্ত হয় এবং যাহা ইহার পূর্বে হয় উহা সেইরূপ হয় না ॥ ২৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    এজ॑তু॒ দশ॑মাস্যো॒ গর্ভো॑ জ॒রায়ু॑ণা স॒হ । য়থা॒য়ং বা॒য়ুরেজ॑তি॒ য়থা॑ সমু॒দ্রऽএজ॑তি । এ॒বায়ং দশ॑মাস্যো॒ऽঅস্র॑জ্জ॒রায়ু॑ণা স॒হ ॥ ২৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    এজত্বিত্যস্যাত্রির্ঋষিঃ । দম্পতী দেবতে । এজত্বিত্যস্য এবায়মিত্যস্যাপি চ ভুরিগাসুরী ভুরিগক্সাম্নী বা উষ্ণিক্ ছন্দঃ । ঋষভঃ স্বরঃ । য়থায়মিত্যস্য প্রাজাপত্যানুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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