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यजुर्वेद अध्याय - 8

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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 43
    ऋषिः - कुसुरुविन्दुर्ऋषिः देवता - पत्नी देवता छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    893

    इडे॒ रन्ते॒ हव्ये॒ काम्ये॒ चन्द्रे॒ ज्योतेऽदि॑ते॒ सर॑स्वति॒ महि॒ विश्रु॑ति। ए॒ता ते॑ऽअघ्न्ये॒ नामा॑नि दे॒वेभ्यो॑ मा सु॒कृतं॑ ब्रूतात्॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इडे॑। रन्ते॑। हव्ये॑। काम्ये॑। चन्द्रे॑। ज्योते॑। अदि॑ते। सर॑स्वति। महि॑। विश्रु॒तीति॒ विऽश्रु॑ति। ए॒ता। ते॒। अ॒घ्न्ये॒। नामा॑नि। दे॒वेभ्यः॑। मा॒। सु॒कृत॒मिति॒ सु॒ऽकृ॑तम्। ब्रू॒ता॒त् ॥४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडे रन्ते हव्ये काम्ये चन्द्रे ज्योते दिते सरस्वति महि विश्रुति । एता ते अघ्न्ये नामानि देवेभ्यो मा सुकृतम्ब्रूतात् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इडे। रन्ते। हव्ये। काम्ये। चन्द्रे। ज्योते। अदिते। सरस्वति। महि। विश्रुतीति विऽश्रुति। एता। ते। अघ्न्ये। नामानि। देवेभ्यः। मा। सुकृतमिति सुऽकृतम्। ब्रूतात्॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 43
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    पुनः प्रकारान्तरेण तदेवाह॥

    अन्वयः

    हे अघ्न्येऽदिते ज्योते इडे हव्ये काम्ये रन्ते चन्द्रे विश्रुति महि सरस्वति पत्नि! त एता नामानि सन्ति, त्वं देवेभ्यो मा सुकृतं ब्रूतात्॥४३॥

    पदार्थः

    (इडे) स्तोतुमर्हे (रन्ते) रमणीये (हव्ये) स्वीकर्तुमर्हे (काम्ये) कमनीये (चन्द्रे) आह्लादकारके (ज्योते) सुशीलेन द्योतमाने (अदिते) आत्मस्वरूपेणाविनाशिनि (सरस्वति) प्रशंस्त सरो विज्ञानं विद्यते यस्यास्तत्सम्बुद्धौ (महि) पूज्यतमे (विश्रुति) विविधाः श्रुतयः श्रवणानि तद्वति (एता) एतानि (ते) तव (अघ्न्ये) हन्तुं तिरस्कर्तुमयोग्ये (नामानि) गौणिक्य आख्याः (देवेभ्यः) दिव्यगुणेभ्यो दिव्यगुणयुक्तपतिभ्यः (मा) माम् (सुकृतम्) सुष्ठु कर्त्तव्यं कर्म (ब्रूतात्) ब्रूहि। अयं मन्त्रः (शत॰ ४। ५। ८। १०) व्याख्यातः॥४३॥

    भावार्थः

    या विद्वद्भ्यः शिक्षां प्राप्तवती विदुषी स्त्री सा यथोक्तया शिक्षया शिक्षेत्। यतस्सर्वा अधर्म्ममार्गे न प्रवर्त्तेरन्, परस्परं विद्यावृद्धिं स्वतनयान् कन्याश्च शिक्षिताः कुर्य्युः॥४३॥

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    विषयः

    पुनः प्रकारान्तरेण तदेवाह ॥

    सपदार्थान्वयः

    हे अघ्न्ये! हन्तुं=तिरस्कर्तुमयोग्ये अदिते ! आत्मस्वरूपेणाविनाशिनि ज्योते ! सुशीलेन द्योतमाने इडे ! स्तोतुमर्हेहव्ये ! स्वीकर्तुमर्हे काम्ये ! कमनीये रन्ते रमणीये चन्द्रे ! आह्लादकारके विश्रुति ! विविधाः श्रुतय:=श्रवणानि तद्वति महि ! पूज्यतमे सरस्वति ! प्रशस्तं सर:=विज्ञानं विद्यते यस्यास्तत्--सम्बुद्धौ, पत्नि ! ते तव एता एतानि नामानि गौणिक्य-आख्या: सन्ति, त्वं देवेभ्यः दिव्यगुणेभ्यो दिव्यगुणयुक्तपतिभ्यः मा मां सुकृतं सुष्ठु कर्त्तव्यं कर्म ब्रूतात् ब्रूहि ॥ ८ । ४३ ॥ [हे.....सरस्वति पत्नि !......त्वं देवेभ्यो मां सुकृतं बूतात्]

    पदार्थः

    (इडे) स्तोतुमर्हे(रन्ते) रमणीये (हव्ये) स्वीकर्तुमर्हे(काम्ये) कमनीये (चन्द्रे)आह्लादकारके (ज्योते) सुशीलेन द्योतमाने (अदिते) आत्मस्वरूपेणाविनाशिनि(सरस्वति) प्रशस्तं सरो=विज्ञानं विद्यते यस्यास्तत्सम्बुद्धौ(महि) पूज्यतमे (विश्रुति) विविधाः श्रुतयः=श्रवणानि तद्वति (एता) एतानि (ते) तव (अध्न्ये)हन्तुं=तिरस्कर्तुमयोग्ये (नामानि) गौणिक्य आख्या: (देवेभ्यः) दिव्यगुणेभ्यो दिव्यगुणयुक्तपतिभ्यः (मा) माम् (सुकृतम्) सुष्ठु कर्त्तव्यं कर्म (ब्रूतात्) ब्रूहि ॥ अयं मन्त्रः शत० ४।५। ८ । १० व्याख्यातः ॥ ४३ ॥

    भावार्थः

    या विद्वद्भ्यः शिक्षां प्राप्तवती विदुषी स्त्री सा यथोक्तया शिक्षया शिक्षेत्, यतस्सर्वा अधर्ममार्गे न प्रवर्त्तेरन् । परस्परं विद्यावृद्धिं स्वतनयान् कन्याश्च शिक्षिता: कुर्य्युः ॥८ । ४३॥

    भावार्थ पदार्थः

    देवेभ्यः=विद्वद्भ्यः ॥

    विशेषः

    कुसुरुविन्दुः। पत्नी=स्पष्टम्। आर्षीपंक्तिः । पञ्चमः ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर भी प्रकारान्तर से उसी विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे (अघ्न्ये) ताड़ना न देने योग्य (अदिते) आत्मा से विनाश को प्राप्त न होने वाली (ज्योते) श्रेष्ठ शील से प्रकाशमान (इडे) प्रशंसनीय गुणयुक्त (हव्ये) स्वीकार करने योग्य (काम्ये) मनोहर स्वरूप (रन्ते) रमण करने योग्य (चन्द्रे) अत्यन्त आनन्द देने वाली (विश्रुति) अनेक अच्छी बातें और वेद जानने वाली (महि) अत्यन्त प्रशंसा करने योग्य (सरस्वति) प्रशंसित विज्ञान वाली पत्नी! उक्त गुण प्रकाश करने वाले (ते) तेरे (एता) ये (नामानि) नाम हैं, तू (देवेभ्यः) उत्तम गुणों के लिये (मा) मुझ को (सुकृतम्) उत्तम उपदेश (ब्रतात्) किया कर॥४३॥

    भावार्थ

    जो विद्वानों से शिक्षा पाई हुई स्त्री हो, वह अपने-अपने पति और अन्य सब स्त्रियों को यथायोग्य उत्तम कर्म्म सिखलावें, जिससे किसी तरह वे अधर्म्म की ओर न डिगें। वे दोनों स्त्री-पुरुष विद्या की वृद्धि और बालकों तथा कन्याओं को शिक्षा किया करें॥४३॥

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    विषय

    अघ्न्या

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र में मुख्य भावना प्रभु के सम्पर्क में आने की है। प्रभु के सम्पर्क में आनेवाला यह व्यक्ति प्रभु की वेदवाणी का अध्ययन करता है और कहता है कि हे ( अघ्न्ये ) = [ अ हन् य ] कभी नष्ट न करने योग्य, अर्थात् बिना विच्छेद के निरन्तर पढ़ने योग्य वेदवाणि! तू ( देवेभ्यः ) = विद्वानों के द्वारा ( मा ) = मेरे लिए ( सुकृतम् ) = पुण्य का ( ब्रूतात् ) = उपदेश कर, अर्थात् विद्वान् आचार्यों से हम इस वेद का उपदेश सुनें और अपने कर्त्तव्यों को जानें। 

    २. हे वेदवाणि! तू ( इडे ) = उपासनीय है [ ईड स्तुतौ = स्तोतुमर्हे—द० ईड्यते—म० ] अथवा ( इडा ) = इ-ला = A law = तू जीवन का एक कानून [ काण्ड ] है। प्रभु ने मनुष्य को यह शरीर देते हुए यह वेदवाणी रूप जीवन का नियम भी दे दिया कि तूने इसके अनुसार अपना जीवन चलाना है। 

    ३. ( रन्ते ) = यह वेदवाणी रमणीय है [ रमयति इति ] इस वेदवाणी में अत्यन्त सुन्दरता से कर्त्तव्यों व ज्ञानों का उपदेश दिया गया है। 

    ४. ( हव्ये ) = यह हव्या है, उच्चारण के योग्य है। इसका नियम से पाठ करना भी पुण्य के लिए है। आचार्य के शब्दों में पाठ करनेवाले भी श्रेष्ठ हैं, अर्थज्ञ तो श्रेष्ठतर हैं और क्रिया में लानेवाले श्रेष्ठतम। ५. ( काम्ये ) = यह चाहने योग्य है। अथवा ‘आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, द्रविण, ब्रह्मवर्चस् व मोक्ष’ आदि सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है।

    ६. इन सब कामनाओं को पूर्ण करने के कारण ही ( चन्द्रे ) = आह्लादित करनेवाली है। 

    ७. ( ज्योते ) = दीप्तिमय है, सब ज्ञानों का प्रकाश करनेवाली है। 

    ८. ( अदिते ) = ज्ञान के प्रकाश के द्वारा ही यह हमें न खण्डित करनेवाली है। हमारे शरीर, मन व बुद्धियों को उत्तम बनानेवाली है। 

    ९. ( सरस्वति ) = यह ज्ञान के जलवाली है। 

    १०. ( महि ) = हमारे जीवनों को महनीय बनानेवाली है। 

    ११. ( विश्रुति ) = यह विविध ज्ञानों के श्रवणवाली है। इसमें सब विद्याओं का श्रवण होता है। 

    १२. इस प्रकार हे ( अघ्न्ये ) = अहन्तव्य, सदा पठन के योग्य वेदवाणि! ( एता ते नामानि ) = ये उल्लिखित तेरे नाम हैं। तू विद्वानों के द्वारा हमें पुण्यों का उपदेश कर।

    भावार्थ

    भावार्थ — वेदवाणी को ‘अघ्न्या’ जानकर हम उसका नित्य स्वाध्याय करें और अपने कर्त्तव्यों को जानकर पुण्य का आचरण करें। यह आचरण ही हमें ‘कुसुरु’ = प्रभु से मेलवाला व ‘विन्दु’  = मोक्षलाभ करनेवाला बनाएगा।

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    विषय

    शत्रुमर्दक इन्द्र का वर्णन, विश्वकर्मा इन्द्र का वर्णन।

    भावार्थ

    हे ( इडे ) स्तुति योग्य अन्नदात्रि ! हे ( रन्ते ) रमण करने योग्य रमणीय ! हे ( हव्ये ) स्वीकार करने योग्य ! हे दान करने योग्य ! हे ( काम्ये ) कामना करने योग्य कमनीय ! कान्तिमति ! हे ( ज्योते ज्योतिष्मति प्रकाशस्वरूप ! हे ( चन्द्रे ) चन्द्र के समान आह्लादकारिणी ! धनैश्वरूपे ! हे (अदिते ) अविनाशिनि ! अखण्डचरित्रे ! हे (महि ) पूजनीय ! हे महति ! हे ( विश्रुति) विविध गुणों से प्रसिद्ध, विविध विद्याओं में कुशल ( मा ) मुझे अपने पति पालक को ( देवेभ्यः ) अन्य विद्या आदि देनेवाले एवं विजयी पुरुषों के समक्ष ( सुकृतम् ) उत्तम कर्म करनेवाला पुण्याचारवान् ( ब्रूतात् ) बतला, प्रसिद्ध कर | है ( अघ्न्ध ) कभी दण्ड न देने योग्य !न कभी न मारने योग्य ! न कभी विनाश करने योग्य ! ( एता ) इडा, रन्ता, हव्या, चन्द्रा, ज्योता, अदिति, सरस्वती, मही, विश्रुती ये सब (ते) तेरे ही ( नामानि ) नाम, तेरे ही स्वरूप हैं ॥ 
    शत० ४। ५।८। १० ।। 
    गौ, स्त्री और पृथिवी तीनों पर समानरूप से यह मन्त्र लगता है । इसके अध्यात्म में ब्रह्मशक्ति, आत्मा का चितिशक्ति और वेदवाणी का भी इस मन्त्र में वर्णन है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिदेवते पूर्वोक्ते । आर्षी पंक्तिः । पञ्चमः ॥ 

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    विषय

    प्रकारान्तर से गृहस्थ के कर्म में पत्नी विषयक फिर उपदेश किया है ।।

    भाषार्थ

    हे (अघ्न्ये) हनन=तिरस्कार के अयोग्य, (अदिते) आत्म-स्वरूप से अविनाशिनी, (ज्योते) सुशीलता से प्रकाशमान, (इडे) स्तुति के योग्य (हव्ये) स्वीकार करने योग्य, (काम्ये) कामना के योग्य, (रन्ते) रमण करने के योग्य, (चन्द्रे) आह्लादित करने वाली, (विश्रुति) विविध श्रवणों से युक्त अर्थात् सुप्रसिद्ध (महि) पूज्यतम (सरस्वति) प्रशंसनीय सर=विज्ञान वाली, पत्नी ! (ते) तेरे (एता) ये (नामानि) गौणिक नाम हैं, अतः तू (देवेभ्यः) दिव्य गुण वाले विद्वानों से शिक्षा को प्राप्त हुई (मा) मुझे (सुकृतम्) उत्तम कर्त्तव्य कर्म का (ब्रूतात्) उपदेश कर ॥ ८ । ४३ ।।

    भावार्थ

    जो विद्वान् पुरुषों से शिक्षा को प्राप्त हुई विदुषी स्त्री हो वह यथोक्त शिक्षा से सबको शिक्षित करे, जिससे सब स्त्रियाँ अधर्म मार्ग में प्रवृत्त न हों, स्त्री-पुरुष परस्पर विद्या की वृद्धि करें, अपने पुत्रों और कन्याओं को शिक्षित करें ॥ ८ । ४३ ।।

    प्रमाणार्थ

    इस मन्त्र की व्याख्या शत० (४ । ५ । ८ । १०) में की गई है ।। ८ । ४३ ।।

    भाष्यसार

    गृहस्थ कर्म में पत्नी-विषयक उपदेश--तिरस्कार के अयोग्य होने से पत्नी का नाम 'अघ्न्या' है। आत्म-स्वरूप से अविनाशी होने से 'अदिति', सुशीलता से प्रकाशित होने से 'ज्योता', स्तुति के योग्य होने से 'इडा', कामना करने के योग्य होने से 'काम्या', रमण करने योग्य होने से 'रन्ता', चित्त के लिये आह्लादकारी होने से 'चन्द्रा', बहुश्रुत होने से 'विश्रुति', पूज्यतम होने से 'मही', प्रशस्त विज्ञान वाली होने से पत्नी का नाम 'सरस्वती' है। पति अपनी पत्नी से कहता है कि हे पत्नि ! तेरे ये गौणिक नाम हैं। तूने दिव्य गुणों वाले विद्वानों से शिक्षा को प्राप्त किया है। इसलिये यथोक्त शिक्षा से मुझे शिक्षित कर। सब स्त्रियों को शिक्षित कर, जिससे वे अधर्म मार्ग में प्रवृत्त न हों। हम दोनों परस्पर विद्या की वृद्धि करके अपने पुत्रों और कन्याओं को शिक्षित करें ॥ ८ । ४३ ।।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    कोणत्याही प्रकारच्या अधर्माकडे वळू नये असे उत्तम कर्म विद्वान स्त्रियांनी पती व इतर स्त्रियांना शिकवावे. स्त्री व पुरुष यांनी विद्येची वृद्धी करून मुले व मुली यांना शिक्षण द्यावे.

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    विषय

    पुनश्च किंचित वेगळ्या रीतीने तोच विषय पुढील मंत्रात प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (पति आपल्या पत्नीच्या गुणांची प्रशंसा करीत म्हणत आहे) हे प्रिय पत्नी, तू (अघ्न्वे) ताडन न करावे, अशी आहेस (आदिते) आत्म्याच्या रुपाने तू अविनाशी आहेस (ज्योते) शीलवती असल्यामुळे कीर्तीमान आहेस (इठे) प्रशंसनीय गुणांनी परिपूर्ण आहेस (हव्ये) स्वीकार करण्यास योग्य आणि (काम्ये) मनोहारिणी आहेस (रन्ते) रमण करण्यास योग्य आणि (चन्द्रे) आनंददायिनी आहेस. (विश्रुति) उत्तम विचार आणि वेद जाणणारी आहेस, (महि) अत्यंत प्रशंसनीय असून (सरस्वति) प्रशंसनीय विज्ञानवती आहेस. अशा प्रकारची तू हे प्रिय पत्नी, तुझ्या सद्गुणांच्या प्रकाश करणारी ही (वर उल्लेखलेली) सर्व विशेषणें (ते) तुझी (एला) ही (नामानि) नामें आहेत. तू (देवभ्य:) उत्तम गुणांच्या प्राप्तीकरिता (मा) मला (सकृतम्) उत्तम उपदेश (आणि आचरण-रीती) (ब्रूतात्) सांगत जा ॥43॥

    भावार्थ

    भावार्थ - विद्वज्जनांपासून उत्तम विद्या, शिक्षण व संस्कार घेतलेल्या स्त्रीने आपल्या पतीला आणि अन्य सर्व स्त्रियांना यथोचित उत्तम कर्मे शिकवावीत की ज्यामुळे कोणीही अधर्म-कृत्याकडे जाणार नाही. पति-पत्नी, दोघांनी विद्येची वृद्धीची वृद्धी करीत आपल्या बालकांना व कन्यांना उत्तम शिक्षण द्यावे. ॥43॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Praiseworthy, delightful, worshipful, lovable, pleasure giving, well known for good behaviour, Inviolable, full of knowledge, Adorable, Knower of the Vedas, worthy of respect. These are thy names O 1 wife. Teach me the good lesson of acquiring noble qualities.

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    Meaning

    Blessed woman, mistress of the home: Voice of the divine worthy of praise, love abiding in the heart, libation for the gods and fragrance of yajna, love and desire incarnate, beauty of the moon, brilliance of virtue, unbreakable and boundless, inexhaustible stream of knowledge and generosity, forbearance of mother earth, celebrity of the world: these are your names, dear wife, inviolable, which describe woman’s nature and character. Speak to me of the good things I ought to do.

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    Translation

    О aghnya (never deserving violence), ida (praiseworthy), ranta(delightful), havya(worshipful), kamya(worth desiring), саndга (pleasing), jyoti (shining), aditi (indivisible), Ѕагаѕwati (full of knowledge), mahi (magnanimous), and visruti (renowned), these are your names. Tell the enlightened ones that I am for righteous actions. (1)

    Notes

    Aghnyà, one that never deserves violence, a cow, which should never be killed. A wife, who should never be beaten, insulted or humiliated (Daya. ). Aditi, indivisible; also, अदीना, not poor. Mahi, O great one. Ma sukrtam brütat, tell them of me as а righteous person.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ প্রকারান্তরেণ তদেবাহ ॥
    পুনরপি প্রকারান্তর সহ সেই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অঘ্ন্যে) তাড়নার অযোগ্য (আদিতে) আত্মাস্বরূপে অবিনাশিনী, (জ্যোতে) শ্রেষ্ঠ শীল দ্বারা প্রকাশমান, (ইডে) প্রশংসনীয় গুণযুক্ত (হব্যে) স্বীকার করিবার যোগ্য (কাম্যে) মনোহর স্বরূপ (রন্তে) রমণ করিবার যোগ্য, (চন্দ্রে) অত্যন্ত আনন্দদাত্রী (বিশ্রুতি) বহু ভাল কথা এবং বেদ জ্ঞানবতী (মহি) অত্যন্ত প্রশংসা করিবার যোগ্যা (সরস্বতী) প্রশংসিত বিজ্ঞানবতী পত্নী ! উক্ত গুণ প্রকাশকারী (তে) তোমার (এতা) এই সব (নামানি) নাম, তুমি (দেবেভ্যঃ) উত্তম গুণের জন্য (মা) আমাকে (সুকৃতম্) উত্তম উপদেশ (ব্রূতাৎ) করিতে থাক ॥ ৪৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে বিদ্বানদিগের দ্বারা শিক্ষিতা স্ত্রী নিজ পতি এবং অন্য সব স্ত্রীদিগকে যথাযোগ্য উত্তম কর্ম শেখায় যাহাতে কোনভাবে তাহারা অধর্ম্মের দিকে প্রবৃত্ত না হয় । সেই উভয় স্ত্রী-পুরুষ বিদ্যার বৃদ্ধি এবং বালক ও কন্যাদিগকে শিক্ষা দিতে থাকিবে ॥ ৪৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ইডে॒ রন্তে॒ হব্যে॒ কাম্যে॒ চন্দ্রে॒ জ্যোতেऽদি॑তে॒ সর॑স্বতি॒ মহি॒ বিশ্রু॑তি । এ॒তা তে॑ऽঅঘ্ন্যে॒ নামা॑নি দে॒বেভ্যো॑ মা সু॒কৃতং॑ ব্রূতাৎ ॥ ৪৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ইডে রন্ত ইত্যস্য কুসুরুবিন্দুর্ঋষিঃ । পত্নী দেবতা । আর্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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