Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 26
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - आर्च्यनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स रु॒द्रो व॑सु॒वनि॑र्वसु॒देये॑ नमोवा॒के व॑षट्का॒रोऽनु॒ संहि॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । रु॒द्र: । व॒सु॒ऽवनि॑: । व॒सु॒ऽदेये॑ । न॒म॒:ऽवा॒के । व॒ष॒ट्ऽका॒र: । अनु॑ । सम्ऽहि॑त: ॥६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स रुद्रो वसुवनिर्वसुदेये नमोवाके वषट्कारोऽनु संहितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । रुद्र: । वसुऽवनि: । वसुऽदेये । नम:ऽवाके । वषट्ऽकार: । अनु । सम्ऽहित: ॥६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 26

    पदार्थ -
    (सः) वह (रुद्रः) ज्ञानदाता, (वसुवनिः) श्रेष्ठों का उपकारी [परमेश्वर] (वसुदेये) श्रेष्ठों करके देने योग्य (नमोवाके) नमस्कार वचन में (वषट्कारः) दान करनेवाला (अनु) निरन्तर (संहितः) स्थापित है ॥२६॥

    भावार्थ - वह परमात्मा वेद द्वारा ज्ञान देकर श्रेष्ठों का मान करता है और उपासकों को सदा सुख देता है ॥२६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top