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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 51
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - विराड्गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    अम्भो॑ अरु॒णं र॑ज॒तं रजः॒ सह॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अम्भ॑: । अ॒रु॒णम् । र॒ज॒तम् । रज॑: । सह॑: । इति॑ । त्वा॒ । उप॑ । आ॒स्म॒हे॒ । व॒यम् ॥८.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अम्भो अरुणं रजतं रजः सह इति त्वोपास्महे वयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अम्भ: । अरुणम् । रजतम् । रज: । सह: । इति । त्वा । उप । आस्महे । वयम् ॥८.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 51

    पदार्थ -
    [हे परमेश्वर !] तू (अम्भः) व्यापक, (अरुणम्) ज्ञानस्वरूप, (रजतम्) प्रीति का हेतु आनन्दस्वरूप, (रजः) ज्योतिःस्वरूप और (सहः) सहनशील [ब्रह्म] है, (इति) इस प्रकार से (वयम्) हम (त्वा उप आस्महे) तेरी उपासना करते हैं ॥५१॥

    भावार्थ - विद्वान् लोग सर्वव्यापक सर्वज्ञ आदि परमेश्वर की उपासना बार-बार आदरपूर्वक कर के पुरुषार्थ करें ॥५१॥

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