अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 34
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
स वै दि॒ग्भ्योजा॑यत॒ तस्मा॒द्दिशोजायन्त ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वै । दि॒क्ऽभ्य: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । दिश॑: । अ॒जा॒य॒न्त॒ ॥७.६॥
स्वर रहित मन्त्र
स वै दिग्भ्योजायत तस्माद्दिशोजायन्त ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वै । दिक्ऽभ्य: । अजायत । तस्मात् । दिश: । अजायन्त ॥७.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 34
विषय - परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ -
(सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (दिग्भ्यः) [कार्यरूप] दिशाओं से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (दिशः) दिशाएँ (अजायत) उत्पन्न हुई हैं ॥३४॥
भावार्थ - मन्त्र २९ के समान ॥३४॥
टिप्पणी -
३४−(दिग्भ्यः) कार्यरूपाभ्यो दिशाभ्यः (दिशः) दिशाः (अजायन्त) उदपद्यन्त। अन्यद् गतम् ॥