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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 52
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    उ॒रुः पृ॒थुः सु॒भूर्भुव॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒रु: । पृ॒थु: । सु॒ऽभू: । भुव॑: । इति॑ । त्वा॒ । उप॑ । आ॒स्म॒हे॒ । व॒यम् ॥९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरुः पृथुः सुभूर्भुव इति त्वोपास्महे वयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उरु: । पृथु: । सुऽभू: । भुव: । इति । त्वा । उप । आस्महे । वयम् ॥९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 52

    पदार्थ -
    [हे परमेश्वर] तू (उरुः) विशाल (पृथुः) विस्तृत, (सूभूः) अच्छे प्रकार वर्तमान [ईश्वर] और (भुवः) व्यापक वा शुद्ध ब्रह्म है, (इति) इस प्रकार से (वयम्) हम (त्वा उप आस्महे) तेरी उपासना करते हैं ॥५२॥

    भावार्थ - परमात्मा सब में विशाल सर्वशक्तिमान् आदि गुण युक्त है, ऐसा जान कर मनुष्य उसकी उपासना करें और संसार में कीर्ति बढ़ावें ॥५२॥मन्त्र ५२ और ५३ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका उपासनाविषय पृष्ठ १६१, १६२ में व्याख्यात हैं ॥

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