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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 50
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    अम्भो॒ अमो॒ महः॒ सह॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अम्भ॑: । अम॑: । मह॑: । सह॑: । इति॑ । त्वा॒ । उप॑ । आ॒स्म॒हे॒ । व॒यम् ॥८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अम्भो अमो महः सह इति त्वोपास्महे वयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अम्भ: । अम: । मह: । सह: । इति । त्वा । उप । आस्महे । वयम् ॥८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 50

    पदार्थ -
    [हे परमात्मन् !] तू (अम्भः) व्यापक, (अमः) ज्ञानस्वरूप, (महः) पूज्य और (सहः) सहनस्वभाव [ब्रह्म] है, (इति) इस प्रकार से (वयम्) हम (त्वा उप आस्महे) तेरी उपासना करते हैं ॥५०॥

    भावार्थ - मनुष्य शुद्ध अन्तःकरण से परमात्मा की उपासना करके उन्नति करें ॥५०॥इस मन्त्र से लेकर मन्त्र ५३ तक बम्बई गवर्नमेन्ट बुक डिपो और अजमेर वैदिक यन्त्रालय के पुस्तकों में मन्त्र के पीछे आवृत्ति का चिह्न देकर मन्त्र ४८ और ४९ की आवृत्ति मानी है, परन्तु अन्य पुस्तकों में आवृत्ति का चिह्न नहीं हैं ॥

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