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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 28
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    तस्या॒मू सर्वा॒ नक्ष॑त्रा॒ वशे॑ च॒न्द्रम॑सा स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्य॑ । अ॒म् । सर्वा॑ । नक्ष॑त्रा । वशे॑ । च॒न्द्रम॑सा । स॒ह ॥६.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्यामू सर्वा नक्षत्रा वशे चन्द्रमसा सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्य । अम् । सर्वा । नक्षत्रा । वशे । चन्द्रमसा । सह ॥६.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 28

    पदार्थ -
    (तस्य) उस [परमात्मा] के (वशे) वश में (अमू) वे (सर्वा) सब (नक्षत्रा) नक्षत्र [चलनेवाले तारा गण] (चन्द्रमसा सह) चन्द्रमा के साथ [वर्तमान हैं] ॥२८॥

    भावार्थ - उस परमात्मा के आकर्षण धारण नियम में यह सब तारागण आदि ठहरे रहकर घूमते हैं ॥२८॥

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