अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 39
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - आसुरी गायत्री
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
स वै य॒ज्ञाद॑जायत॒ तस्मा॑द्य॒ज्ञोजा॑यत ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वै । य॒ज्ञात् । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । य॒ज्ञ: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.११॥
स्वर रहित मन्त्र
स वै यज्ञादजायत तस्माद्यज्ञोजायत ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वै । यज्ञात् । अजायत । तस्मात् । यज्ञ: । अजायत ॥७.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 39
विषय - परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ -
(सः) वह [परमात्मा] (वै) अवश्य (यज्ञात्) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [परमात्मा] से (यज्ञः) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३९॥
भावार्थ - परमात्मा ने परमाणुओं के संयोग-वियोग से सृष्टि रचकर अपनी महिमा दिखायी है ॥३९॥
टिप्पणी -
३९−(यज्ञात्) यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु-नङ्। परमाणूनां संयोगवियोगव्यवहारात् (यज्ञः) संयोगवियोगव्यवहारः। अन्यद् गतम् ॥