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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    प॒श्चात्प्राञ्च॒ आ त॑न्वन्ति॒ यदु॒देति॒ वि भा॑सति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒श्चात् । प्राञ्च॑: । आ । त॒न्व॒न्ति॒ । यत् । उ॒त्ऽएति॑ । वि । भा॒स॒ति॒ ॥४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पश्चात्प्राञ्च आ तन्वन्ति यदुदेति वि भासति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पश्चात् । प्राञ्च: । आ । तन्वन्ति । यत् । उत्ऽएति । वि । भासति ॥४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    वे [सब लोक] [परमात्मा के] (पश्चात्) पीछे (प्राञ्चः) आगे बढ़ते हुए (आ) सब ओर से (तन्वन्ति) फैलते हैं, (यत्) जब वह (उदेति) उदय होता है और (वि भासति) विविध प्रकार चमकता है ॥७॥

    भावार्थ - विवेकी योगी जन अनुभव करते हैं कि यह सब लोक परमात्मा के ही धारण-आकर्षण नियमों में चलते हैं ॥७॥

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