यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 28
मधु॒ नक्त॑मु॒तोषसो॒ मधु॑म॒त् पार्थि॑व॒ꣳ रजः॑। मधु॒ द्यौर॑स्तु नः पि॒ता॥२८॥
स्वर सहित पद पाठमधु॑। नक्त॑म्। उ॒त। उ॒षसः॑। मधु॑म॒दिति॒ मधु॑ऽमत्। पार्थि॑वम्। रजः॑। मधु॑। द्यौः॑। अ॒स्तु॒। नः॒। पि॒ता ॥२८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवँ रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥
स्वर रहित पद पाठ
मधु। नक्तम्। उत। उषसः। मधुमदिति मधुऽमत्। पार्थिवम्। रजः। मधु। द्यौः। अस्तु। नः। पिता॥२८॥
विषय - वायु जल, औषधि, दिन, रात्रि, भूमि, सूर्य, वृक्ष, गौ आदि समृद्धि के मधुर होने की प्रार्थना ।
भावार्थ -
( नक्तम् ) रात्रि ( नः ) हमारे लिये ( मधु ) मधुरता ( उत्त ) और ( उषसः ) प्रभात समय भी हमें मधुर हो । ( पार्थिवं रजः ) । पृथिवी लोक अथवा पृथिवी की धूलि भी ( मधुमत् ) हमें मधुर मधु के समान सुखप्रद हो । ( नः ) हमारे पिता के समान पालक ( द्यौः ) प्रकाश- मान सूर्य या आकाश, अन्तरिक्ष भी ( नः मधु अस्तु ) हमें मधुर हो । शत० ७ । ५ । १ । ३ । ४ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋष्यादि पूर्ववत् ॥
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