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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 52
    ऋषिः - उशना ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    त्वं य॑विष्ठ दा॒शुषो॒ नॄः पा॑हि शृणु॒धी गिरः॑। रक्षा॑ तो॒कमु॒त त्मना॑॥५२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम्। य॒वि॒ष्ठ॒। दा॒शुषः॑। नॄन्। पा॒हि॒। शृ॒णु॒धि। गिरः॑। रक्ष॑। तो॒कम्। उ॒त। त्मना॑ ॥५२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वँयविष्ठ दाशुषो नऋृँ पाहि शृणुधी गिरः । रक्षा तोकमुत त्मना ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। यविष्ठ। दाशुषः। नॄन्। पाहि। शृणुधि। गिरः। रक्ष। तोकम्। उत। त्मना॥५२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 52
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    भावार्थ -
    हे ( यविष्ठ ) अति अधिक बलवान् पुरुष ! राजन् ! तू ( दाशुषः नृन् ) दानशील और कर आदि देने वाले प्रजा जनों को ( पाहि ) पालन कर । और प्रेम से ( गिरः ) उनकी कही वाणियों को ( शृणुधि ) श्रवण कर । ( उत ) और ( त्मना ) स्वयं ही उनकी ( तोकम् ) पुत्र के समान ( रक्ष ) रक्षा कर ॥ शत० ७ । ५ । २ । ३१ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अग्निर्देवता । निचृद् गायत्री । षड्जः ॥

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