Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 42
    ऋषिः - विरूप ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    0

    वात॑स्य जू॒तिं वरु॑णस्य॒ नाभि॒मश्वं॑ जज्ञा॒नꣳ स॑रि॒रस्य॒ मध्ये॑। शिशुं॑ न॒दीना॒ हरि॒मद्रि॑बुध्न॒मग्ने॒ मा हि॑ꣳसीः पर॒मे व्यो॑मन्॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वात॑स्य। जू॒तिम्। वरु॑णस्य। नाभि॑म्। अश्व॑म्। ज॒ज्ञा॒नम्। स॒रि॒रस्य॑। मध्ये॑। शिशु॑म्। न॒दीना॑म्। हरि॑म्। अद्रि॑बुध्न॒मित्यद्रि॑बुध्नम्। अग्ने॑। मा। हि॒ꣳसीः॒। प॒र॒मे। व्यो॑म॒न्निति॒ विऽओ॑मन् ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वातस्य जूतिँवरुणस्य नाभिमश्वञ्जज्ञानँ सरिरस्य मध्ये । शिशुन्नदीनाँ हरिमद्रिबुध्नमग्ने मा हिँसीः परमे व्योमन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वातस्य। जूतिम्। वरुणस्य। नाभिम्। अश्वम्। जज्ञानम्। सरिरस्य। मध्ये। शिशुम्। नदीनाम्। हरिम्। अद्रिबुध्नमित्यद्रिबुध्नम्। अग्ने। मा। हिꣳसीः। परमे। व्योमन्निति विऽओमन्॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 42
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    हे ( अग्ने ) अग्नि के समान तेजस्विन्! राजन् ! विद्वन् ! ( वातस्य जूतिम् ) वायु के वेग को जिस प्रकार कोई विनाश नहीं करता इसी प्रकार वायु के वेग के समान इसे भी ( परमे व्योमन् ) परम आकाश या परम रक्षाकार्यधिकार, राजत्व पद में स्थित ( वरुणस्य नाभिम् ) जलमय समुद्र के बांधने वाले (हरिम् ) आकर्षण वेग के समान ज्ञानमय, दूसरों को पापों से वारण करने वाले आचार्य, ( नाभिम् ) बांधने वाले, उसके आश्रय और ( सरिरस्य ) जल के ( मध्ये ) बीच में उत्पन्न सूर्य के समान प्रजाजनों के बीच या सेना सागर के बीच में ( जज्ञानं ) पैदा होने वाले, ( नदीनां ) नदियों के समान अति समृद्ध, नित्य दुग्ध पिलानेवाली माताओं के बीच ( शिशुम् ) बालक के समान अति गुप्त रूप से व्यापक ( अद्रिबुघ्नम् ) मेघ के आश्रयभूत वायु, अवकाश के समान अति व्यापक, ( हरिम् ) हरणशील यन्त्रों, रथों और राष्ट्रों के सञ्चालन में समर्थ अश्व और विद्वान् को (मा हिंसी ) मत विनाश कर ॥ शत ७।५।२।१८ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अग्निर्देवता निचृत् त्रिष्टुप । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top