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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 19
    ऋषिः - त्रिशिरा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
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    विश्व॑स्मै प्रा॒णाया॑पा॒नाय॑ व्या॒नायो॑दा॒नाय॑ प्रति॒ष्ठायै॑ च॒रित्रा॑य। अ॒ग्निष्ट्वा॒भिपा॑तु म॒ह्या स्व॒स्त्या छ॒र्दिषा॒ शन्त॑मेन॒ तया॑ दे॒वत॑याङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वा सी॑द॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्व॑स्मै। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नायेत्य॑पऽआ॒नाय॑। व्या॒नायेति॑ विऽआ॒नाय॑। उ॒दा॒नायेत्यु॑त्ऽआ॒नाय॑। प्र॒ति॒ष्ठायै॑। प्र॒ति॒स्थाया॒ इति॑ प्रति॒ऽस्थायै॑। च॒रित्रा॑य। अ॒ग्निः। त्वा॒। अ॒भि। पा॒तु॒। म॒ह्या। स्व॒स्त्या। छ॒र्दिषा॑। शन्त॑मे॒नेति॒ शम्ऽत॑मेन। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। सी॒द॒ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानायोदानाय प्रतिष्ठायै चरित्राय । अग्निष्ट्वाभि पातु मह्या स्वस्त्या छर्दिषा शन्तमेन तया देवतयाङ्गिरस्वद्धरुवा सीद ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वस्मै। प्राणाय। अपानायेत्यपऽआनाय। व्यानायेति विऽआनाय। उदानायेत्युत्ऽआनाय। प्रतिष्ठायै। प्रतिस्थाया इति प्रतिऽस्थायै। चरित्राय। अग्निः। त्वा। अभि। पातु। मह्या। स्वस्त्या। छर्दिषा। शन्तमेनेति शम्ऽतमेन। तया। देवतया। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। सीद॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 19
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    भावार्थ -
    ( विश्वस्मै= विश्वस्य ) समस्त जंगम संसार के ( प्राणाय ) प्राण रक्षा, जीवन वृद्धि के लिये, ( अपानाय ) अपान के लिये या दुःख निवारण के लिये, ( व्यानाय ) व्यान या विविध व्यवहारों के लिये, ( उदानाय ) उदान के लिये और उत्तम बल-प्राप्ति के लिये ( प्रतिष्ठायै ) प्रतिष्ठा और ( चरित्राय ) सच्चरित्रता की रक्षा के लिये ( वा ) तेरी ( अग्निः ) ज्ञानवान् अग्रणी नायक राजा और यति भी ( मह्या ) बड़ी ( स्वस्त्या ) सुख सामग्री से और ( शंतमया ) अतिशान्तिदायक, कल्याण- कारिणी ( छर्दिषा ) गृहादि समृद्धि से ( अभियातु ) सब प्रकार से रक्षा करे, पालन करे। तू भी ( तथा देवतया ) उस देवस्वरूप पति, पालक या राजा के संग (अंगिरस्वत्) अग्नि के समान तेजस्विनी होकर (ध्रुवा) स्थिर, दृढ होकर ( सीद ) विराजमान हो, प्रतिष्ठा को प्राप्त हो ॥ शत० ७ । ४ । २ । ८ ।।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अग्निदेवता । भुरिगति जगती । निषादः ॥

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