यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 29
ऋषिः - गोतम ऋषिः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
1
मधु॑मान्नो॒ वन॒स्पति॒र्मधु॑माँ२ऽ अस्तु॒ सूर्य्यः॑। माध्वी॒र्गावो॑ भवन्तु नः॥२९॥
स्वर सहित पद पाठमधु॑मा॒निति॒ मधु॑ऽमान्। नः॒। वन॒स्पतिः॑। मधु॑मा॒निति॒ मधु॑ऽमान्। अ॒स्तु॒। सूर्य्यः॑। माध्वीः॑। गावः॑। भ॒व॒न्तु॒। नः॒ ॥२९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥
स्वर रहित पद पाठ
मधुमानिति मधुऽमान्। नः। वनस्पतिः। मधुमानिति मधुऽमान्। अस्तु। सूर्य्यः। माध्वीः। गावः। भवन्तु। नः॥२९॥
विषय - वायु जल, औषधि, दिन, रात्रि, भूमि, सूर्य, वृक्ष, गौ आदि समृद्धि के मधुर होने की प्रार्थना ।
भावार्थ -
( वनस्पतिः )पीपल, वट, आम्र आदि वृक्ष (नः) हमारे लिये ( मधुमान् ) मधु के समान मधुर गुण वाले आनन्दप्रद, रोग- नाशक हों । ( सूर्यः मधुमान् अस्तु ) सूर्य हमें मधु के समान मधुर गुण वाला, पुष्टिकर अन्नप्रद हो (नः गावः) किरणें, गौवें और पृथिवियें (माध्वीः भवन्तु) मधुर सुख, अन्न, रस बहाने वाली हों ॥ शत० ७।५।१।३।४॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋष्यादि पूर्ववत् ॥
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