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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 24
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    अयु॑क्त स॒प्त शु॒न्ध्युवः॒ सूरो॒ रथ॑स्य न॒प्त्यः। ताभि॑र्याति॒ स्वयु॑क्तिभिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अयु॑क्त । स॒प्त । शु॒न्ध्युव॑: । सूर॑: । रथ॑स्य । न॒प्त्य᳡: । ताभि॑: । या॒ति॒ । स्वयु॑क्तिऽभि: ॥२.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नप्त्यः। ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयुक्त । सप्त । शुन्ध्युव: । सूर: । रथस्य । नप्त्य: । ताभि: । याति । स्वयुक्तिऽभि: ॥२.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 24

    भावार्थ -
    (सूरः) सूर्य के समान सर्व प्रेरक ज्ञान-वान् आत्मा (रथस्य) रमण साधन इस देहरूप ‘रथ’ के (नप्त्यः) साथ सम्बद्ध (सप्त) सात (शुन्ध्युवः) अति वेग युक्त, शुद्ध प्राणों को (अयुक्त) अपने अधीन योग मार्ग में नियुक्त या समाहित करता है, और (ताभिः) उन प्राणों से ही (स्वयुक्तिभिः) अपने योग के आठों उपायों से (याति) परम पद तक प्राप्त करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्म रोहितादित्यो देवता। १, १२-१५, ३९-४१ अनुष्टुभः, २३, ८, ४३ जगत्यः, १० आस्तारपंक्तिः, ११ बृहतीगर्भा, १६, २४ आर्षी गायत्री, २५ ककुम्मती आस्तार पंक्तिः, २६ पुरोद्व्यति जागता भुरिक् जगती, २७ विराड़ जगती, २९ बार्हतगर्भाऽनुष्टुप, ३० पञ्चपदा उष्णिग्गर्भाऽति जगती, ३४ आर्षी पंक्तिः, ३७ पञ्चपदा विराड़गर्भा जगती, ४४, ४५ जगत्यौ [ ४४ चतुष्पदा पुरः शाक्वरा भुरिक् ४५ अति जागतगर्भा ]। षट्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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