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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 45
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - प्रजा देवता छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    सु॒गव्यं॑ नो वा॒जी स्वश्व्यं॑ पु॒ꣳसः पु॒त्राँ२ऽउ॒त वि॑श्वा॒पुष॑ꣳ र॒यिम्।अ॒ना॒गा॒स्त्वं नो॒ऽअदि॑तिः कृणोतु क्ष॒त्रं नो॒ऽअश्वो॑ वनता ह॒विष्मा॑न्॥४५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒गव्य॒मिति॑ सु॒ऽगव्य॑म्। नः॒। वा॒जी। स्वश्व्य॒मिति॑ सु॒ऽअश्व्य॑म्। पुं॒सः। पु॒त्रान्। उ॒त। वि॒श्वा॒पुष॑म्। वि॒श्वु॒पुष॒मिति॑ विश्व॒ऽपुष॑म्। र॒यिम्। अ॒ना॒गा॒स्त्वमित्य॑नागः॒ऽत्वम्। नः॒। अदि॑तिः। कृ॒णो॒तु॒। क्ष॒त्रम्। नः॒। अश्वः॑। व॒न॒ता॒म्। ह॒विष्मा॑न् ॥४५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुगव्यन्नो वाजी स्वश्व्यम्पुँसः पुत्राँऽउत विश्वापुषँ रयिम्ऽअनागास्त्वन्नोऽअदितिः कृणोतु क्षत्रन्नोऽअश्वो वनताँ हविष्मान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुगव्यमिति सुऽगव्यम्। नः। वाजी। स्वश्व्यमिति सुऽअश्व्यम्। पुंसः। पुत्रान्। उत। विश्वापुषम्। विश्वुपुषमिति विश्वऽपुषम्। रयिम्। अनागास्त्वमित्यनागःऽत्वम्। नः। अदितिः। कृणोतु। क्षत्रम्। नः। अश्वः। वनताम्। हविष्मान्॥४५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 45
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - (हे विद्वान), (नः) आमचा (आम्हा सामान्यजनांचा) (वाजी) घोडा (सुगव्यम्) आमच्या गायींसाठी सुखकर आहे (गायी व इतर पाळीव पशूंना त्रास देत नाहीं) तसेच हा घोडा (स्वश्‍वयम्) चांगल्या घोड्या पेक्षा अधिक काम करणारा वा उपयोगी आहे. (आपणाप्रमाणे) जो कोणी विद्वान (पुंसः) आणि पुरूषत्वामुळे पुरूषार्थी, उद्यमी मनुष्य (पुत्रान्) पुत्र (उत्) आणि (विश्‍वायूषम्) संपूर्ण पुष्टिकारक (रयिम्) धनसंपत्ती प्राप्त करतो (तो आमच्या राज्यासाठी हितकारी होतो) तसेच जशी ही (अदितिः) कारणरूपेण अविनाशी भूमी (नः) आमच्यासाठी (अनागास्त्वम्) या राज्याला (अनागास्त्त्वम्) दोष वा अपराधापासून मुक्त करा) जसा तो (अश्‍वः) व्याप्तशील (सर्वत्र गमनशील) प्राणी घोडा (नः) आमच्या कल्याणाकरिता (क्षत्रम्) आमच्या या राज्यात (वनताम्) असावा, तसे हे विद्वान, आपणही आमच्या राज्यात स्थायी व्हा. ॥45॥

    भावार्थ - missing

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