ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 12
ऋषिः - सिकता निवावारी
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
अग्रे॒ सिन्धू॑नां॒ पव॑मानो अर्ष॒त्यग्रे॑ वा॒चो अ॑ग्रि॒यो गोषु॑ गच्छति । अग्रे॒ वाज॑स्य भजते महाध॒नं स्वा॑यु॒धः सो॒तृभि॑: पूयते॒ वृषा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअग्रे॑ । सिन्धू॑नाम् । पव॑मानः । अ॒र्ष॒ति॒ । अग्रे॑ । वा॒चः । अ॒ग्रि॒यः । गोषु॑ । ग॒च्छ॒ति॒ । अग्रे॑ । वाज॑स्य । भ॒ज॒ते॒ । म॒हा॒ऽध॒नम् । सु॒ऽआ॒यु॒धः । सो॒तृऽभिः॑ । पू॒य॒ते॒ । वृषा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्रे सिन्धूनां पवमानो अर्षत्यग्रे वाचो अग्रियो गोषु गच्छति । अग्रे वाजस्य भजते महाधनं स्वायुधः सोतृभि: पूयते वृषा ॥
स्वर रहित पद पाठअग्रे । सिन्धूनाम् । पवमानः । अर्षति । अग्रे । वाचः । अग्रियः । गोषु । गच्छति । अग्रे । वाजस्य । भजते । महाऽधनम् । सुऽआयुधः । सोतृऽभिः । पूयते । वृषा ॥ ९.८६.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 12
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
यः परमात्मा (वाचः, अग्रियः) वेदवाणीनां प्रधानकारणमस्ति। अन्यच्च (गोषु) स्वसत्तया लोकलोकान्तरेषु (गच्छति) प्राप्नोति। (सिन्धूनां) प्रकृतेः वाष्परूपावस्थया (अग्रे) प्रथमं (पवमानः) पवित्रयन् (अर्षति) सर्वत्र प्राप्नोति। एवम्भूतस्य परमात्मन उपासकः (वाजस्य, अग्रे) धनाद्यैश्वर्य्यैः प्रथमं (महाधनं) महाधनं परमात्मानं (भजते) सेवते। एवम्भूतमुपासकम् (स्वायुधः) अनन्तशक्तिसम्पन्नः (सोतृभिः) स्वसंस्कारशक्तिभिः (वृषा) बलस्वरूपः परमात्मा (पूयते) पवित्रयति ॥१२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
जो परमात्मा (वाचोऽग्रियः) वेदरूपी वाणियों का मुख्य कारण है और (गोषु) अपनी सत्ता से लोक-लोकान्तरों में (गच्छति) प्राप्त है, (सिन्धूनां) प्रकृति की वाष्परूप अवस्था से (अग्रे) पहले (पवमानः) पवित्र करता हुआ (अर्षति) सर्वत्र प्राप्त है। ऐसे परमात्मा को उपासक (वाजस्याग्रे) धनादि ऐश्वर्यों से पहले (महाधनं) महाधनरूप उक्त परमात्मा को (भजते) सेवन करता है। ऐसे उपासक को (स्वायुधः) अनन्त प्रकार की शक्तिवाला (सोतृभिः) अपनी संस्कृत करनेवाली शक्तियों के द्वारा (वृषा) बलस्वरूप परमात्मा (पूयते) पवित्र करता है ॥१२॥
भावार्थ
परमात्मा शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध इन पञ्चतन्मात्राओं के आदिकारण अहंकार और महत्तत्त्व तथा प्रकृति से भी पहले विराजमान था। उसी ने इस शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्धादि गुणयुक्त संसार का निर्माण किया है। जिन विचित्र शक्तियों से परमात्मा इन सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्त्वों का निर्माता है, उनसे हमारे हृदय को शुद्ध करे ॥१२॥
विषय
आत्मा का शूरवत् अभिषेक।
भावार्थ
वह (सिन्धूनाम् अग्रे) देह में बहने बाली रक्त धाराओं के भी पूर्व, उनमें (पवमानः) व्यापक होता हुआ, (अर्षति) विराजता है, वह (वाचः अग्रे) वाणी-शक्ति के भी पूर्व, और (गोषु) इन्द्रियों में भी (अग्रियः) सर्वश्रेष्ठ होकर (गच्छति) गमन करता है। वह (वाजस्य अग्रे) सांग्रामिक बल के आगे २ नायक के तुल्य होकर (महाधनं भजते) बड़ा भारी ऐश्वर्यप्रद संग्राम करता है, वह (स्वायुधः) उत्तम वा अपने ही हथियारों से सम्पन्न सैनिक के समान (वृषा) बलवान् होकर (सोतृभिः) उपासकों द्वारा (पूयते) अभिषेक किया जाता है। आत्मा स्वयं अपने प्राण आदि रूप साधनों वाला है और उसके उपासक इन्द्रियादि सोता हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥
विषय
अग्रे अर्षति
पदार्थ
(पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाला यह सोम (सिन्धूनाम्) = [स्यन्द्] निरन्तर क्रियाशील पुरुषों के जीवन में (अग्रे अर्षति) = आगे गतिवाला होता है। शरीर में आगे गतिवाला होता हुआ यह अन्तः मस्तिष्क रूप द्युलोक में ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है। (वाचः) = [वच् व्यक्तायां वाचि] प्रभु के नामों का [गुणों का] उच्चारण करनेवाले के जीवन में यह सोम (अग्रे) = आगे बढ़ता है। (अग्रियः) = यह शरीर में आगे बढ़नेवाला सोम (गोषु गच्छति) = ज्ञान की वाणियों में गतिवाला होता है, अर्थात् हमारे ज्ञान को बढ़ानेवाला होता है। (अग्रे) = आगे बढ़ता हुआ यह सोम (वाजस्य) = शक्ति के (महाधनम्) = उत्कृष्ट धन को (भजते) = प्राप्त करता है, हमें यह सोम उत्कृष्ट शक्तिवाला बनाता है । (स्वायुधः) = [सु+आयुध] यह सोम 'इन्द्रिय-मन व बुद्धि' रूप सब आयुधों को, जीवन संग्राम के शस्त्रों को उत्तम बनाता है। इसीलिये (सोतृभिः) = सोम का उत्पादन करनेवाले इन पुरुषों से यह (पूयते) = पवित्र किया जाता है। (वृषा) = यह सब अंगों में सुरक्षित हुआ हुआ सोम सब अंगों को शक्तिशाली बनाता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, prime spirit of the world in existence, pure and purifying, moves as the first cause of flowing waters, first cause of the flow of thought and speech, and it moves as the prime cause of the motions of stars and planets. First, before the start of evolution, it takes on the great warlike dynamics of the creative evolutionary flow of existence. The same omnipotent generous power, mighty of arms, is adorned and exalted in yajna by celebrants on the vedi designed by the lord and structured by his Shakti, Prakrti.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध या पंचतंमात्राचे आदिकरण, अहंकार व महत्तत्व व प्रकृतीच्या आधी विराजमान होता. त्यानेच हे शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध इत्यादी गुणयुक्त जग निर्माण केलेले आहे. ज्या नाना प्रकारच्या शक्तींनी परमात्मा या सूक्ष्माहून सूक्ष्म तत्त्वांचा निर्माता आहे त्याच्याकडून आमचे हृदय शुद्ध व्हावे. ॥१२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal