ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 28
ऋषिः - पृश्नयोऽजाः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पादनिचृज्ज्गती
स्वरः - निषादः
तवे॒माः प्र॒जा दि॒व्यस्य॒ रेत॑स॒स्त्वं विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य राजसि । अथे॒दं विश्वं॑ पवमान ते॒ वशे॒ त्वमि॑न्दो प्रथ॒मो धा॑म॒धा अ॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठतव॑ । इ॒माः । प्र॒ऽजाः । दि॒व्यस्य॑ । रेत॑सः । त्वम् । विश्व॑स्य । भुव॑नस्य । रा॒ज॒सि॒ । अथ॑ । इ॒दम् । विश्व॑म् । प॒व॒मा॒न॒ । ते॒ । वशे॑ । त्वम् । इ॒न्दो॒ इति॑ । प्र॒थ॒मः । धा॒म॒ऽधाः । अ॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तवेमाः प्रजा दिव्यस्य रेतसस्त्वं विश्वस्य भुवनस्य राजसि । अथेदं विश्वं पवमान ते वशे त्वमिन्दो प्रथमो धामधा असि ॥
स्वर रहित पद पाठतव । इमाः । प्रऽजाः । दिव्यस्य । रेतसः । त्वम् । विश्वस्य । भुवनस्य । राजसि । अथ । इदम् । विश्वम् । पवमान । ते । वशे । त्वम् । इन्दो इति । प्रथमः । धामऽधाः । असि ॥ ९.८६.२८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 28
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(तव, दिव्यस्य, रेतसः) ते दिव्यसामर्थ्यात् (इमाः, प्रजाः) एते जना उत्पद्यन्ते स्म। (त्वं) पूर्वोक्तः (विश्वस्य, भुवनस्य) सम्पूर्णसृष्टेः (राजसि) राजा भूत्वा विराजसे। (पवमान) हे सर्वपावक परमात्मन् ! (इदं, विश्वं) इदं सर्वं जगत् (ते, वशे) तवाधीनम्। (अथ) अपि च (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (त्वं, प्रथमं) त्वमेव प्रथमं (धामधाः, असि) निवासस्थानमसि ॥२८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(तव, दिव्यस्य, रेतसः) तुम्हारे दिव्य सामर्थ्य से (इमाः प्रजाः) ये सब प्रजा उत्पन्न हुई हैं। (त्वं) तुम (विश्वस्य भुवनस्य) सम्पूर्ण सृष्टि के (राजसि) राजा होकर विराजमान हो। (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (इदं विश्वं) ये सम्पूर्ण संसार (ते वशे) तुम्हारे वश में है (अथ) और (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (त्वं प्रथमं) तुम ही पहले (धामधाः) सबके निवासस्थान (असि) हो ॥२८॥
भावार्थ
परमात्मा सबका अधिकरण है, इसलिये सब भूतों का निवासस्थान वही है ॥२८॥
विषय
जगत् का राजा महान् प्रभु।
भावार्थ
हे (पवमान) सबके पावन ! प्रेरक, व्यापक प्रभो ! (दिव्यस्य रेतसः) दिव्य, तेजोमय सर्वोत्पादक वीर्य वा बल से उत्पन्न (तव इमाः प्रजाः) ये समस्त तेरी प्रजाएं हैं। (त्वं विश्वस्य भुवनस्य राजसि) तू समस्त जगत् का राजा के समान स्वामी, सब जगत् को प्रकाशित करने हारा है। (अथ) और (इदं विश्वं ते वशे) यह समस्त विश्व तेरे ही वश में है। हे (इन्दो त्वम् प्रथमः) तेजस्विन् ! तू ही सर्वश्रेष्ठ (धाम-धाः) तेजों, धारण सामर्थ्यों और लोकों को धारण और पोषण , करनेहारा (असि) है।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥
विषय
'प्रथमः धामधा: '
पदार्थ
हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम ! (तव) = तेरे (दिव्यस्य रेतसः) = दिव्य रेतस् [शक्तिकण] के द्वारा ही (इमाः) = ये (प्रजाः) = प्रजायें उत्पन्न होती हैं। (त्वम्) = तू ही (विश्वस्य भुवनस्य) = सम्पूर्ण भुवन का (राजसि) = दीप्त करनेवाला है, सब प्राणियों को दीप्त करनेवाला यह सोम ही है । यही अंग-प्रत्यंग को शक्ति प्राप्त कराके उसे दीप्त करता है। हे सोम ! (अथ) = अब (इदं विश्वं) = यह सम्पूर्ण विश्व (ते वशे) = तेरे ही वश में है, वस्तुतः सोम के अधीन ही सब उन्नतियाँ हैं । हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम (त्वं प्रथमः) = तू ही हमारे जीवनों में सर्वप्रथम स्थान में स्थित है, (धामधाः असि) = तू ही सब तेजों का आधान करनेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम ही सब को जन्म देता है, सब को दीप्त करता है, सर्वप्रथम स्थान में स्थित हुआ हुआ सब तेजों का हमारे में स्थापन करता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
These people, these birds and beasts, all these worlds of existence, are yours, born of your divine creative power, the original divine seed. You shine and rule over this entire world of existence. And O Spirit pure and purifying and omnipresent, this entire universe is under your control. Indu, O light of life and life of the world, you are the only, first, original and eternal cause, foundation and sustainer of the world order.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सर्वांचा आधार आहे. त्यामुळे सर्व भूतांचे निवासस्थान तोच आहे. ॥२८॥
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