Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 86 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 41
    ऋषिः - अत्रिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    स भ॒न्दना॒ उदि॑यर्ति प्र॒जाव॑तीर्वि॒श्वायु॒र्विश्वा॑: सु॒भरा॒ अह॑र्दिवि । ब्रह्म॑ प्र॒जाव॑द्र॒यिमश्व॑पस्त्यं पी॒त इ॑न्द॒विन्द्र॑म॒स्मभ्यं॑ याचतात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । भ॒न्दनाः॑ । उत् । इ॒य॒र्ति॒ । प्र॒जाऽव॑तीः । वि॒श्वऽआ॑युः । विश्वाः॑ । सु॒ऽभराः॑ । अहः॑ऽदिवि । ब्रह्म॑ । प्र॒जाऽव॑त् । र॒यिम् । अश्व॑ऽपस्त्यम् । पी॒तः । इ॒न्दो॒ इति॑ । इन्द्र॑म् । अ॒स्मभ्य॑म् । या॒च॒ता॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स भन्दना उदियर्ति प्रजावतीर्विश्वायुर्विश्वा: सुभरा अहर्दिवि । ब्रह्म प्रजावद्रयिमश्वपस्त्यं पीत इन्दविन्द्रमस्मभ्यं याचतात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । भन्दनाः । उत् । इयर्ति । प्रजाऽवतीः । विश्वऽआयुः । विश्वाः । सुऽभराः । अहःऽदिवि । ब्रह्म । प्रजाऽवत् । रयिम् । अश्वऽपस्त्यम् । पीतः । इन्दो इति । इन्द्रम् । अस्मभ्यम् । याचतात् ॥ ९.८६.४१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 41
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सः) पूर्वोक्तः कर्म्मयोगी (भन्दनाः) वन्दनां (उत्, इयर्ति) करोति। या वन्दना (अहर्दिवि) सन्ततं (प्रजावतीः) शुभप्रजादायिका तथा (विश्वायुः) अखिलायुर्दायिका। अपरञ्च (विश्वाः) सर्वप्रकारायाः (सुभराः) पूर्तेः कारिका चास्ति। (ब्रह्म) वेदः (प्रजावत्) यः सदुपदेशैः शुभप्रजाः अपि च (रयिं) धनं (अश्वपस्त्यं)   अन्यगतिशीलपदार्थांश्च ददाति। (पीतः) सतततृप्तस्त्वं (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूपपरमात्मन् ! (इन्द्रं) कर्म्मयोगिनं तथा (अस्मभ्यं) मह्यं उक्तैश्वर्य्यं (याचतात्) देहि  ॥४१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सः) पूर्वोक्त कर्मयोगी (भन्दनाः) वन्दना (उदियर्ति) करता है, जो वन्दना (अहदिर्वि) सर्वदा (प्रजावतीः) शुभप्रजा को देनेवाली है तथा (विश्वायुः) सम्पूर्ण आयु को देनेवाली है और (विश्वाः) सब प्रकार की (सुभराः) पूर्तियों की करनेवाली है। (ब्रह्म) वेद (प्रजावत्) जो सदुपदेश द्वारा शुभप्रजाओं को देनेवाला है और (रयिं) धन और (अश्वपस्त्यं) अन्य गतिशील पदार्थों को देनेवाला है। (पीतः) नित्यतृप्त (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप (इन्द्रं) कर्मयोगी को तथा (अस्मभ्यं) हमारे लिये उक्त ऐश्वर्य (याचतात्) दें ॥४१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में ऐश्वर्य्य की प्रार्थना करते हुए वेदों के सदुपदेशरूपी महत्त्व का वर्णन किया है ॥४१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    आचार्य और प्रभु के शिष्य और जीवों के प्रति दया का वर्त्ताव।

    भावार्थ

    (सः) वह आप (विश्वायुः) सब मनुष्यों के स्वामी, सब के जीवन के समान प्रिय, सब को प्राप्त होने वाले हो। आप (अहर्दिवि) दिन रात (सु-भराः) सुख प्राप्त कराने वाली, (प्रजावतीः) उत्तम प्रजाओं से युक्त, एवं उत्तम फल के देने वाली, (भन्दनाः) कल्याणकारिणी, सुखप्रद वाणियों को (उत् इयर्त्ति) उत्तम रीति से प्रकट करते हैं। हे (इन्दो) तेजस्विन् ! उत्तम उपासक आप (इन्द्रम्) उस प्रभु परमेश्वर के प्रति (अस्मभ्यम्) हमारे कल्याण के लिये (प्रजावत्) उत्तम सन्तान, प्रजादि से युक्त, (ब्रह्म) बड़ा भारी (अश्व-पस्त्यम्) अश्व और गृहों से युक्त (रयिम्) धनैश्वर्य की (याचतात्) याचना कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ब्रह्म प्रजावत्, रयिम् अश्वपस्त्यम्

    पदार्थ

    (सः) = वह (विश्वायुः) = पूर्ण जीवन को प्राप्त करानेवाला सोम (अहर्दिवि) = दिन-रात (विश्वा:) = सब (सुभरा:) = उत्तम भरण की साधन भूत (प्रजावती:) = प्रकृष्ट विकासवाली (भन्दना) = स्तुतियों को (उदियर्ति) = उत्कर्षेण प्रेरित करता है । सोमरक्षण से हमारी वृत्ति प्रभुस्तवन की होती है। यह प्रभुस्तवन हमारे पूर्ण जीवन का कारण होता है, अंग-प्रत्यंग का उत्तम पोषण करनेवाला होता है और सब शक्तियों को विकसित करता है । हे (इन्दो) = सोम ! (पीतः) = शरीर के अन्दर पिया हुआ तू (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु से (ब्रह्म) = उस ज्ञान की (याचतात्) = याचना कर जो (प्रजावत्) = हमारे प्रकृष्ट विकास का कारण बने, तथा (रयिम्) = हमारे लिये धन की याचना कर जो (अश्वपस्त्यम्) = उत्तम अश्वों से युक्त गृहवाला हो । यहाँ 'गृह' यह शरीर है, 'अश्व' इन्द्रियाँ हैं धन वही ठीक है जो इस शरीर व इन्द्रियों को ठीक बनाये रखे।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम जीवन को स्तुतिमय बनाता है। यह ज्ञान व धन की प्राप्ति का साधन बनता है ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    It raises sun rays and moves our thanks and adorations which bring up noble progeny, all health and long age and abundant fulfilment of universal value day and night. Indu, Spirit of light and joy of life, sung and celebrated, give us the knowledge of divinity, wealth of noble progeny, a home full of comfort and achievement, and power and excellence of the world.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात ऐश्वर्याची प्रार्थना करत वेदाचे सदुपदेशरूपी महत्त्व सांगितलेले आहे. ॥४१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top