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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 86 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 33
    ऋषिः - त्रयऋषिगणाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    राजा॒ सिन्धू॑नां पवते॒ पति॑र्दि॒व ऋ॒तस्य॑ याति प॒थिभि॒: कनि॑क्रदत् । स॒हस्र॑धार॒: परि॑ षिच्यते॒ हरि॑: पुना॒नो वाचं॑ ज॒नय॒न्नुपा॑वसुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    राजा॑ । सिन्धू॑नाम् । प॒व॒ते॒ । पतिः॑ । दि॒वः । ऋ॒तस्य॑ । या॒ति॒ । प॒थिऽभिः॑ । कनि॑क्रदत् । स॒हस्र॑ऽधारः । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । हरिः॑ । पु॒ना॒नः । वाच॑म् । ज॒नय॑न् । उप॑ऽवसुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    राजा सिन्धूनां पवते पतिर्दिव ऋतस्य याति पथिभि: कनिक्रदत् । सहस्रधार: परि षिच्यते हरि: पुनानो वाचं जनयन्नुपावसुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    राजा । सिन्धूनाम् । पवते । पतिः । दिवः । ऋतस्य । याति । पथिऽभिः । कनिक्रदत् । सहस्रऽधारः । परि । सिच्यते । हरिः । पुनानः । वाचम् । जनयन् । उपऽवसुः ॥ ९.८६.३३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 33
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (हरिः) परमात्मा (पुनानः) सर्वं पवित्रयन् (वाचं, जनयन्) वेदवाणीमुत्पादयन् किम्भूतः (उपावसुः) सर्वधनानामाधारः (परि, सिच्यते) विद्वद्भिरुपास्यते (सहस्रधारः) सोऽनन्तशक्तिमान् अस्ति। अन्यच्च (सिन्धूनां, राजा) स्यन्दनशीलनिखिलपदार्थानां राजास्ति। अपि च (दिवः, पतिः) द्युलोकस्य पतिः (ऋतस्य, पथिभिः) सत्यमार्गैः (कनिक्रदत्) शब्दायमानः परमात्मा (याति) निजभक्तान् गच्छति तथा (पवते) तान् पवित्रयति ॥३३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (हरिः) परमात्मा (पुनानः) सबको पवित्र करता हुआ (वाचं जनयन्) वेदरूपी वाणी को उत्पन्न करता हुआ (उपावसुः) सब धनों का आधार (परि सिच्यते) विद्वानों द्वारा उपासना किया जाता है। (सहस्रधारः) वह अनन्त शक्तिमान् है (सिन्धूनां राजा) और स्यन्दनशील सब पदार्थों का राजा है और (दिवः) द्युलोक का (पतिः) पति है। (ऋतस्य पथिभिः) सच्चाई की रास्तों से (कनिक्रदत्) वह शब्दायमान ब्रह्म (याति) अपने भक्तों की गति करता है तथा (पवते) उनको पवित्र करता है ॥३३॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपनी वेदरूपी वाणी को उत्पन्न करके सदा उपदेश करता है। परमात्मानुयायी पुरुषों को चाहिये कि उसकी आज्ञानुसार अपना जीवन बनायें ॥३३॥

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    विषय

    विद्वान् का मेघ के सदृश प्रशस्त मार्ग।

    भावार्थ

    (सिन्धूनां राजा) वेग से जाने वाले अश्वों के स्वामी, सेनापति वा महारथी के तुल्य वह (सिन्धूनां राजा) कुमार्ग में जाने वाले शिष्य जनों व इन्द्रियों का स्वामी, (दिवः पतिः) ज्ञान, प्रकाश और सदिच्छा का पालक होकर (ऋतस्य पथिभिः) सत्य ज्ञान और न्याय के मार्ग से (कनिक्रदत्) उपदेश करता हुआ गमन करता है। वह (सहस्रधारः हरिः) सहस्रों धाराओं वाले मेघ के तुल्य, सहस्रों वाणियों का आश्रय, अज्ञानहारी, मनोहर और (उप-वसुः) समीप रहते वसु, ब्रह्मचारियों से सेवित होकर (वाचं जनयन्) ज्ञान वाणी का उपदेश करता हुआ (पुनानः) उनको पवित्र करता हुआ स्वयं भी (परि सिच्यते) पवित्र हो जाता है। वह ज्ञान में और भी निष्णात होता जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥

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    विषय

    राजा सिन्धूनां - उपावसुः

    पदार्थ

    यह सोम (सिन्धूनाम्) = ज्ञान प्रवाहों का (राजा) = स्वामी होता है। (दिवः) = मस्तिष्करूप द्युलोक का (पतिः) = रक्षक होता हुआ (पवते) = हमें प्राप्त होता है। (कनिक्रदत्) = प्रभु के नामों का उच्चारण करता हुआ (ऋतस्य) = यज्ञ के (पथिभिः) = मार्गों से (याति) = गतिवाला होता है । सोमरक्षक के जीवन में प्रभु स्मरण पूर्वक यज्ञ चलाते हैं, यह सदा प्रभुस्मरण पूर्वक उत्तम कर्मों में लगा रहता है (सहस्त्रधारः) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला (हरिः) = यह दुःखों का हरण करनेवाला सोम (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ (वाचं जनयन्) = [वेद ज्ञान] वाणी को हमारे अन्दर उत्पन्न करता हुआ (उपावसुः) = उपासना के द्वारा सब वसुओं को प्राप्त करानेवाला होता है । सोमरक्षक प्रभु का उपासक बनता है और सब धनों को प्राप्त करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे जीवनों में 'ज्ञान + ऋ + उपासना व वसुओं' को प्राप्त करानेवाला है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ruler and controller of the cosmic streams of evolution, lord of the light of heaven, moves and flows on loud and bold by the paths of cosmic law in a thousand streams and showers of new life. The creative spirit dispelling want and darkness, pure and purifying, goes on close by sustainers of life, creating new forms and names of existence, and is celebrated as divine creator, controller and director of the evolution of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर आपल्या वेदरूपी वाणीला उत्पन्न करून सदैव उपदेश करतो. परमेश्वराच्या अनुयायी पुरुषांनी त्याच्या आज्ञेनुसार आपले जीवन बनवावे. ॥३३॥

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