ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 13
ऋषिः - सिकता निवावारी
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
अ॒यं म॒तवा॑ञ्छकु॒नो यथा॑ हि॒तोऽव्ये॑ ससार॒ पव॑मान ऊ॒र्मिणा॑ । तव॒ क्रत्वा॒ रोद॑सी अन्त॒रा क॑वे॒ शुचि॑र्धि॒या प॑वते॒ सोम॑ इन्द्र ते ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । म॒तऽवा॑न् । श॒कु॒नः । यथा॑ । हि॒तः । अव्ये॑ । स॒सा॒र॒ । पव॑मानः । ऊ॒र्मिणा॑ । तव॑ । क्रत्वा॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । अ॒न्त॒रा । क॒वे॒ । शुचिः॑ । धि॒या । प॒व॒ते॒ सोम॑ इन्द्र ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं मतवाञ्छकुनो यथा हितोऽव्ये ससार पवमान ऊर्मिणा । तव क्रत्वा रोदसी अन्तरा कवे शुचिर्धिया पवते सोम इन्द्र ते ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । मतऽवान् । शकुनः । यथा । हितः । अव्ये । ससार । पवमानः । ऊर्मिणा । तव । क्रत्वा । रोदसी इति । अन्तरा । कवे । शुचिः । धिया । पवते सोम इन्द्र ते ॥ ९.८६.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्र) हे कर्म्मयोगिन् ! (ते) तुभ्यं (शुचिः) शुद्धस्वरूपः (सोमः) परमात्मा (पवते) पवित्रतां ददाति। (कवे) हे व्याख्यातः ! (तव, क्रत्वा, धिया) तव सुन्दरकर्म्मभिः (रोदसी, अन्तरा) अस्मिन् ब्रह्माण्डे तुभ्यं शुभफलं ददाति। अपरञ्च (अयं, मतवान्) अयं सर्वज्ञः परमात्मा (शकुनः, यथा) विद्युदिव (हितः) हितकरो भूत्वा (अव्ये) रक्षायुक्तपदार्थे (ससार) प्रविष्टो भवति। एवं (पवमानः) पवित्रयन् परमात्मा (ऊर्मिणा) स्वप्रेम्णः वेगरूपशक्तिभिः सर्वं पवित्रयति ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्र) हे कर्म्मयोगिन् ! (ते) तुम्हारे लिये (शुचिः) शुद्धस्वरूप (सोमः) परमात्मा (पवते) पवित्रता देनेवाला है। (कवे) हे व्याख्यातः ! (तव क्रत्वा धिया) तुम्हारे सुन्दर कर्म्मों के द्वारा (रोदसी अन्तरा) इस ब्रह्माण्ड में तुम्हें शुभफल देता है और (अयं, मतवान्) यह सर्वज्ञ परमात्मा (शकुनो यथा) जिस प्रकार विद्युत् (हितः) हितकर होकर (अव्ये) रक्षायुक्त पदार्थ में (ससार) प्रविष्ट हो जाता है, एवं (पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला परमात्मा (ऊर्मिणा) अपने प्रेम की वेगरूप शक्तियों से सबको पवित्र करता है ॥१३॥
भावार्थ
परमात्मा कर्म्मों के द्वारा शुभफलों का प्रदाता है, इसलिये मनुष्यों को चाहिये कि वे उत्तम कर्म्म करें, ताकि उन्हें कर्म्मानुसार उत्तम फल मिले ॥१३॥
विषय
आत्मा की पक्षी के तुल्य संसार-गति का वर्णन।
भावार्थ
(अयं) यह (यथा शकुनः) एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर जाने वाले पक्षी के तुल्य एक देह से दूसरे देह में जाने वाला जीव (मतवान्) ज्ञानवान् होकर (पवमानः) गति करता हुआ (ऊर्मिणा) उत्तम ज्ञानोपदेश से, (अव्ये) परम रक्षास्थान, स्नेहमय, ज्ञानमय, प्रभु के शासन में (हितः) स्थिर होकर संसार में गति करता है। हे (कवे) क्रान्तदर्शिन् ! हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् ! (अयं सोमः) यह उत्पन्न होने वाला जीवगण (रोदसी अन्तरा) इहलोक, परलोक दोनों के बीच में (तव क्रत्वा शुचिः) तेरे ज्ञान, कर्मोपदेश से शुद्ध पवित्र होकर (धिया) बुद्धिपूर्वक (पवते) विचरण करता है। इसी प्रकार सोम, शिष्य इन्द्र, आचार्य से शिक्षित, होकर माता पिता के पास जाता, स्त्री पुरुषों में भी शुद्ध होकर विचरता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥
विषय
'मतवान् शकुनः ' सोमः
पदार्थ
(अर्यः) = यह सोम (यथा हितः) = जैसे-जैसे शरीर में स्थापित होता है, उसी प्रकार (मतवान्) = ज्ञानवाला है तथा (शकुनः) = शक्तिशाली बनानेवाला है । यह (पवमानः) = पवित्र करनेवाला सोम (अव्ये) = [अव्+य] रक्षकों में श्रेष्ठ पुरुष में, सोम का रक्षण करनेवालों में उत्तम पुरुष में (ऊर्मिणा) = प्रकाश की किरणों के साथ (ससार) = गतिवाला होता है [ऊर्मि] । हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (कवे) = आनन्द तत्त्व को समझनेवाले पुरुष ! (तव ऋत्वा) = तेरे दृढ संकल्प से, अर्थात् जब तू सोमरक्षण का दृढ़ निश्चय करता है, तो यह (ते) = तेरा (शुचिः सोमः) = पवित्र सोम (रोदसी अन्तरा) = द्यावापृथिवी, मस्तिष्क व शरीर के अन्दर (धियाऽपवते) = अन्नादि के साथ प्राप्त होता है। मस्तिष्क व शरीर को उत्तम बनाता हुआ यह तुझे ही सम्पन्न करता है ।
भावार्थ
भावार्थ - जितना-जितना सोम का रक्षण होता है, उतना ही यह हमें ज्ञान व शक्ति से सम्पन्न करता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
This omniscient Soma, spirit of light and divine joy, like a bird of good omen just in front, flows pure and purifying for you with waves of joy in this protected world. O poetic soul of humanity, Indra, it vibrates over earth and the firmament for you and feels happy and exalted by your thought and action in service and adoration of divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा कर्मांद्वारे शुभ फलांचा प्रदाता आहे त्यासाठी माणसांनी उत्तम कर्म करावे. म्हणजे त्यांना कर्मानुसार उत्तम फळ मिळेल. ॥१३॥
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