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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 43
    ऋषिः - वैखानस ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - निचृदगायत्री स्वरः - षड्जः
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    उ॒भाभ्यां॑ देव सवितः प॒वित्रे॑ण स॒वेन॑ च। मां पु॑नीहि वि॒श्वतः॑॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒भाभ्या॑म्। दे॒व॒। स॒वि॒त॒रिति॑ सवितः। प॒वित्रे॑ण। स॒वेन॑। च॒। माम्। पु॒नी॒हि॒। वि॒श्वतः॑ ॥४३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उभाभ्यान्देव सवितः पवित्रेण सवेन च । माम्पुनीहि विश्वतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उभाभ्याम्। देव। सवितरिति सवितः। पवित्रेण। सवेन। च। माम्। पुनीहि। विश्वतः॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 43
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (দেব) সুখ প্রদানকারী (সবিতঃ) সত্যকর্মের প্রেরক জগদীশ্বর আপনি (পবিত্রেণ) পবিত্র আচরণ (চ) এবং (সবেন) সকলৈশ্বর্য্য তথা (উভাভ্যাম্) বিদ্যা ও পুরুষার্থ দ্বারা (বিশ্বতঃ) সব দিক দিয়া (মাম্) আমাকে (পুনীহি) পবিত্র করুন ॥ ৪৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যে ঈশ্বর সকল মনুষ্যকে শুদ্ধি ও ধর্মকে গ্রহণ করায় তাহারই আশ্রয় গ্রহণ করিয়া অধর্মাচরণ হইতে সর্বদা ভয় করিতে থাক ॥ ৪৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - উ॒ভাভ্যাং॑ দেব সবিতঃ প॒বিত্রে॑ণ স॒বেন॑ চ ।
    মাং পু॑নীহি বি॒শ্বতঃ॑ ॥ ৪৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - উভাভ্যামিত্যস্য বৈখানস ঋষিঃ । সবিতা দেবতা । নিচৃদ্গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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