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यजुर्वेद अध्याय - 12
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यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 89
ऋषिः - भिषगृषिः
देवता - वैद्या देवताः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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याः फ॒लिनी॒र्याऽअ॑फ॒लाऽअ॑पु॒ष्पा याश्च॑ पु॒ष्पिणीः॑। बृह॒स्पति॑प्रसूता॒स्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वꣳह॑सः॥८९॥
स्वर सहित पद पाठयाः। फ॒लिनीः॑। याः। अ॒फ॒लाः अ॒पु॒ष्पाः। याः। च॒। पु॒ष्पिणीः॑। बृह॒स्पति॑प्रसूता॒ इति॒ बृह॒स्पति॑ऽप्रसूताः। ताः। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु। अꣳह॑सः ॥८९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
याः पलिनीर्याऽअपलाऽअपुष्पा याश्च पुष्पिणीः । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वँहसः ॥
स्वर रहित पद पाठ
याः। फलिनीः। याः। अफलाः अपुष्पाः। याः। च। पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूता इति बृहस्पतिऽप्रसूताः। ताः। नः। मुञ्चन्तु। अꣳहसः॥८९॥
विषय - बृहस्पति - प्रसूत चार ओषधियाँ
पदार्थ -
१. ओषधियों के भिन्न-भिन्न रूपों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि [क] (याः) = जो ओषधियाँ (फलिनीः) = फलवाली हैं, अर्थात् जिनपर फल आता है। [ख] (याः) = जो (अफला:) = फलरहित हैं, जिनपर फल नहीं आता। [ग] (अपुष्पाः) = जो फूलवाली नहीं है, जिनमें बिना ही फूल के सीधा फल आ जाता है। [घ] (याः च) = और जो (पुष्पिणीः) = फूलोंवाली हैं, फूल के द्वारा फल को पैदा करती हैं। २. (बृहस्पतिप्रसूताः) = [ बृहतां पतिः तेन प्रसूताः] बड़े-बड़े लोकों के स्वामी परमेश्वर से उत्पादित (ताः) = वे ओषधियाँ (नः) = हमें (अहंसः) = पाप से उत्पन्न रोग व रोगजन्य दुःख से (मुञ्चन्तु) = छुड़ाएँ । ३. 'बृहस्पतिप्रसूता:' की भावना एक और भी है । (बृहस्पति - ब्रह्मणस्पतिः) = सब ज्ञानों का पति है, विद्वान् है, यह इस (बृहती) = आयुष्यवर्धन करनेवाली [बृहि वृद्धौ] आयुर्वेदविद्या का भी पति है। आयुर्वेद में निष्णात इस बृहस्पति (प्रसूत) = प्रेरित = प्रयोग में लायी गई ये ओषधियाँ हमें पापजन्य रोगों और रोगजन्य दुःखों से बचाएँ। [यह पिछला अर्थ श्री जयदेवजी ने अपने भाष्य में दिया है।] ४. एवं, ओषधियाँ स्थूलतया चार भागों में विभक्त हैं 'फलिनी, अफला, पुष्पिणी और अपुष्पा' ये सब सुयोग्य वैद्य ये प्रयुक्त होकर रोगी को रोगमुक्त करती हैं।
भावार्थ - भावार्थ- मन्त्रोक्त चतुर्विध ओषधियाँ विद्वान् वैद्य से विनियुक्त होकर व्याधि-विनाश करनेवाली हों।
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