Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 6/ मन्त्र 23
    सूक्त - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त

    यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्। स मा॒यं म॒णिराग॑मत्स॒ह गोभि॑रजा॒विभि॒रन्ने॑न प्र॒जया॑ स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । अब॑ध्नात् । बृह॒स्पति॑: । दे॒वेभ्य॑: । असु॑रऽक्षितिम् । स: । मा॒ । अ॒यम् । म॒णि: । आ । अ॒ग॒म॒त् । स॒ह । गोभि॑: । अ॒जा॒विऽभि॑: । अन्ने॑न । प्र॒ऽजया॑ । स॒ह ॥६.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्। स मायं मणिरागमत्सह गोभिरजाविभिरन्नेन प्रजया सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । अबध्नात् । बृहस्पति: । देवेभ्य: । असुरऽक्षितिम् । स: । मा । अयम् । मणि: । आ । अगमत् । सह । गोभि: । अजाविऽभि: । अन्नेन । प्रऽजया । सह ॥६.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 23

    पदार्थ -

    १. (ब्रहस्पतिः) = [मन्त्र २२ में द्रष्टव्य है] २. (सः अयं मणि:) = वह यह मणि (मा) = मुझे (गोभिः सह) = उत्तम गौवों के साथ, (अजा+अविभि:) = बकरियों व भेड़ों के साथ, (अन्नेन प्रजया सह) = अन्न व उत्तम सन्तान के साथ (आगमत्) = प्रास हो। २. यह मणि मुझे (व्रीहियवाभ्याम्) = चावल व जौ के साथ, (महसा) = तेजस्विता व (भूत्या सह) = ऐश्वर्य के साथ प्रास हो। इसी प्रकार यह मणि मुझे (मधो:) = शहद की तथा (घृतस्य) = घृत की (धारया) = धारा के साथ तथा (मणि:) = यह वीर्यमणि (कीलालेन सह) = [कीलालं अनं-नि० २.७] सुसंस्कृत अन्न के साथ मुझे प्राप्त हो।

    भावार्थ -

    वीर्यमणि के रक्षण के लिए आवश्यक है कि हमारा जीवन कृत्रिमता से दूर होकर स्वाभाविक हो। हमारे घर गौवों, बकरियों, भेड़ोंवाले व अन्न से युक्त हों। इन्हीं घरों में उत्तम सन्तान सम्भव होती है। इन घरों में चावल व जौ भोग्यपदार्थ हों, तभी तेजस्विता व ऐश्वर्य का विकास होगा। इन घरों में मधु, घृत व सुसंस्कृत अन्न की कमी न हो। [मांस आदि भोजन व अन्य उत्तेजक पेय द्रव्य वीर्यरक्षण के अनुकूल नहीं है]।

     

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top