अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 26
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
अ॒घवि॑षा नि॒पत॑न्ती॒ तमो॒ निप॑तिता ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒घऽवि॑षा । नि॒ऽपत॑न्ती । तम॑: । निऽप॑तिता ॥७.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
अघविषा निपतन्ती तमो निपतिता ॥
स्वर रहित पद पाठअघऽविषा । निऽपतन्ती । तम: । निऽपतिता ॥७.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 26
विषय - ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ -
ब्रह्मघ्न द्वारा (निपतन्ती) नीचे गिरती हुई वह ब्रह्मगवी (विषा) विना प्रतीकार के विष से पूर्ण होती है। (निपतिता) नीचे गिरी हुई वह साक्षात् (तमः) अन्धकार, मृत्यु के समान हो जाती है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें