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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 73
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुर्युष्णिक् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    सूर्य॑ एनं दि॒वः प्र णु॑दतां॒ न्योषतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑: । ए॒न॒म् । दि॒व: । प्र । नु॒द॒ता॒म् । नि । ओ॒ष॒तु॒ ॥११.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्य एनं दिवः प्र णुदतां न्योषतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्य: । एनम् । दिव: । प्र । नुदताम् । नि । ओषतु ॥११.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 73

    भावार्थ -
    (एनं) इसको (क्रव्यात् अग्निः) क्रव्य, कच्चा मांस खाने वाला श्मशान-अग्नि (पृथिव्याः नुदताम्) पृथिवी से निकाल बाहर करे, और (उत् ओषतु) जला डाले और (वायुः) वायु (महतः वरिम्णः) इस बड़े भारी (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से भी परे करे। (सूर्यः) सूर्य (एनं) उसको (दिवः) द्यौलोक से भी (प्र नुदताम्) परे निकाल दे और (नि ओषतु) नीचे नीचे जलावे, उसे संतप्त करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिर्देवते च पूर्वोक्ते। ४७, ४९, ५१-५३, ५७-५९, ६१ प्राजापत्यानुष्टुभः, ४८ आर्षी अनुष्टुप्, ५० साम्नी बृहती, ५४, ५५ प्राजापत्या उष्णिक्, ५६ आसुरी गायत्री, ६० गायत्री। पञ्चदशर्चं षष्टं पर्यायसूक्तम्॥

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