अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 30
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
पा॒प्माधि॑धी॒यमा॑ना॒ पारु॑ष्यमवधी॒यमा॑ना ॥
स्वर सहित पद पाठपा॒प्मा। अ॒धि॒ऽधी॒यमा॑ना । पारु॑ष्यम् । अ॒व॒ऽधीयमा॑ना ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
पाप्माधिधीयमाना पारुष्यमवधीयमाना ॥
स्वर रहित पद पाठपाप्मा। अधिऽधीयमाना । पारुष्यम् । अवऽधीयमाना ॥९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 30
विषय - ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ -
(अधिधीयमाना) ब्रह्मद्वेषी पुरुष द्वारा अधिकार में रखी हुई ब्रह्मगवी उसके लिये तो (पाप्मा) पाप के समान है, जो उसे भविष्यत् में कष्ट का कारण होगी। (अवधीयमाना) उससे तिरस्कार को प्राप्त होती हुई ब्रह्मगवी (पारुव्यम्) उसके ऊपर कठोर दण्ड के रूप में उसको आर्थिक, शारीरिक और वाचिक कठोर दण्ड का कारण होती है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
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