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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 15
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - गायत्री सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    सा ब्र॑ह्म॒ज्यं दे॑वपी॒युं ब्र॑ह्मग॒व्यादी॒यमा॑ना मृ॒त्योः पड्वी॑ष॒ आ द्य॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । ब्र॒ह्म॒ऽज्यम् । दे॒व॒ऽपी॒युम् । ब्र॒ह्म॒ऽग॒वी । आ॒ऽदी॒यमा॑ना । मृ॒त्यो: । पड्वी॑शे । आ । द्य॒ति॒ ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सा ब्रह्मज्यं देवपीयुं ब्रह्मगव्यादीयमाना मृत्योः पड्वीष आ द्यति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । ब्रह्मऽज्यम् । देवऽपीयुम् । ब्रह्मऽगवी । आऽदीयमाना । मृत्यो: । पड्वीशे । आ । द्यति ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 15

    भावार्थ -
    (सा ब्रह्मगवी) वह ब्रह्मगवी (आदीयमाना) पकड़ी जाकर (ब्रह्मज्यं) ब्राह्मण वेद और वेदज्ञों के विनाशक (देवपीयुं) देवों, विद्वान् पुरुषों के हिंसक पुरुषों को (मृत्योः) मौत के (पड्वीशे) पञ्जे में या फांसे में (आद्यति) फांस कर खण्ड खण्ड कर डालती है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥

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