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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 31
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - अश्व्यादयो देवताः छन्दः - अतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    होता॑ यक्ष॒न्नरा॒शꣳसं॒ न न॒ग्नहुं॒ पति॒ꣳ सुर॑या भेष॒जं मे॒षः सर॑स्वती भि॒षग्रथो॒ न च॒न्द्र्यश्विनो॑र्व॒पा इन्द्र॑स्य वी॒र्यं बद॑रैरुप॒वाका॑भिर्भेष॒जं तोक्म॑भिः॒ पयः॒ सोमः॑ परि॒स्रुता॑ घृ॒तं मधु॒ व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। न॒रा॒शꣳस॑म्। न। न॒ग्नहु॑म्। पतिम्। सुर॑या। भे॒ष॒जम्। मेषः॒। सर॑स्वती। भि॒षक्। रथः॑। न। च॒न्द्री। अश्विनोः॑। व॒पाः। इन्द्र॑स्य। वी॒र्य᳕म्। बद॑रैः। उ॒प॒वाका॑भि॒रित्यु॑प॒ऽवाका॑भिः। भे॒ष॒जम्। तोक्म॑भि॒रिति॒ तोक्म॑ऽभिः। पयः॑। सोमः॑। प॒रिस्रु॒तेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। घृ॒तम्। मधु॑। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षन्नराशँसंन्न नग्नहुम्पतिँ सुरया भेषजम्मेषः सरस्वती भिषग्रथो न चर्न्द्यश्विनोर्वपाऽइन्द्रस्य वीर्यम्बदरैरुपवाकाभिर्भेषजन्तोक्मभिः पयः सोमः परिस्रुता घृतम्मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। नराशꣳसम्। न। नग्नहुम्। पतिम्। सुरया। भेषजम्। मेषः। सरस्वती। भिषक्। रथः। न। चन्द्री। अश्विनोः। वपाः। इन्द्रस्य। वीर्यम्। बदरैः। उपवाकाभिरित्युपऽवाकाभिः। भेषजम्। तोक्मभिरिति तोक्मऽभिः। पयः। सोमः। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। घृतम्। मधु। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 31
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे (होतः) हवन करणाऱ्या माणसा, ज्याप्रमाणे (होता) एक दाता वा दान देणारा मनुष्य (नराशंसम्‌) लोकांतर्फे (वा याचकातर्फे) प्रशंसा केल्यानंतर (दान देतो) (न) त्याप्रमाणे तू (नग्नहुम्‌) नग्न (अशिष्ट वा) दुष्ट लोकांना करारागृहात टाकणाऱ्या (पतिम्‌) स्वामीला (वा दंडाधिपती राजाला) (दुष्टांना बंदिस्त करण्यास सांग) (जसे एक वैद्य) (सुरया) जलाशी (भेषजम्‌) औषधीचा (संयोग करतो) अथवा उपदेशक (इन्द्रस्य) दुर्जनांना मारणाऱ्या (वीयम्‌) शूरवीराच्या हृदयात श्रेष्ठ बळ (वा उत्साह) (यक्षत्‌) उत्पन्न करतो आणि (मेषः) ज्याप्रमाणे तो उपदेशक (सरस्वती) विद्यायुक्त वाणीद्वारे (भिषक) वैद्याशी (संयोग वा चर्चा करतो) (तद्वत तू देखील करीत जा) ज्याप्रमाणे एक (रथः) (न) रथाप्रमाणे (चन्द्री) प्रभूत मानेत सुवर्ण बाळगणारा श्रीमंत मनुष्य (अश्विनोः) आकाश आणि पृथ्वी मधे (वपाः) विविध क्रिया करतो (आपल्या संपत्तीच्या साहाय्याने वेगवेगळे वैज्ञानिक प्रयोग करतो) अथवा जसे कोणी (वैद्य) (बदरैः) बोरफळांशी (उपवाकाभिः) प्राप्त ज्ञान (वा विद्येद्वारे) (भेषजम्‌) अन्य उपयोगी औषधींचा संयोग करतो, त्याप्रमाणे जे लोक (तोक्मभिः) आपल्या मुलाबाळांसह (पयः) दुधाचे तसेच (परिस्रुता) (अनेक पदार्थापासून) योग्य रीतीने काढलेल्या रसाचे (सोमः) औषधीसह आणि (मधु) मधासह सेवन करतात, त्यांच्याजवळ राहून, हे याज्ञिक यजमान, तू देखील (आज्यस्य) घृताद्वारे (यज) हवन करीत जा. ॥31॥

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आणि वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहेत. जे लोक निर्लज्ज व दुष्ट लोकांना दंड देतात, स्तुती करण्यास योग्य जनांची स्तुती करतात आणि पाण्या बरोबर (उपयोगी पथ्यकर) औषधीचे सेवन करतात, ते शारिरीकशक्ती संपादन करून नीरोग राहतात आणि त्यांचे ऐश्वर्य वाढत जाते ॥31॥

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