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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 10
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒च्चा ते॑ जा॒तमन्ध॑सो दि॒वि षद्भूम्या द॑दे । उ॒ग्रं शर्म॒ महि॒ श्रव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒च्चा । ते॒ । जा॒तम् । अन्ध॑सः । दि॒वि । सत् । भूमिः॑ । आ । द॒दे॒ । उ॒ग्रम् । शर्म॑ । महि॑ । श्रवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उच्चा ते जातमन्धसो दिवि षद्भूम्या ददे । उग्रं शर्म महि श्रव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उच्चा । ते । जातम् । अन्धसः । दिवि । सत् । भूमिः । आ । ददे । उग्रम् । शर्म । महि । श्रवः ॥ ९.६१.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 10
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते अन्धसः) हे कर्मयोगिन् ! भवदुत्पादितपदार्थानाम् (उच्चा जातम्) उच्चसमूहं (भूमिः आददे) समस्ताः पृथिवीस्था जना गृह्णन्ति (उग्रं शर्म) यो ह्यत्यन्तसुखस्वरूपोऽस्ति तथा (महि श्रवः) भवतो महायशः (दिविषत्) द्युलोकेऽपि व्याप्तम् ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ते अन्धसः) हे कर्मयोगिन् ! तुम्हारे पैदा किये हुए पदार्थों के (उच्चा जातम्) उच्च समूह को (भूमिः आददे) सम्पूर्ण पृथिवी भर के लोग ग्रहण करते हैं (उग्रम् शर्म) जो कि अत्यन्त सुखस्वरूप हैं तथा (महि श्रवः) आपका महत् यश (दिविषत्) द्युलोक में भी व्याप्त है ॥१०॥

    भावार्थ

    कर्म्मयोगी पुरुष के उत्पन्न किये हुए कलाकौशल से सम्पूर्ण लोग लाभ उठाते हैं ॥१०॥

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    विषय

    उग्रं शर्म, महि श्रवः

    पदार्थ

    [१] (अन्धसः) = इस आध्यायनीय सोम के द्वारा (ते) = तेरा (उच्चा जातम्) = अत्यन्त उत्कृष्ट विकास हुआ है। इस उत्कृष्ट विकास का स्वरूप यह है कि (दिवि सद्) = द्युलोक में होता हुआ तू (भूमि आददे) = इस भूमि का ग्रहण करता है । द्युलोक 'मस्तिष्क' है। मस्तिष्क में निवास का भाव है 'ज्ञान में विचरण करना'। भूमि 'शरीर' है। इसके ग्रहण का भाव है 'शरीर को दृढ़ बनाना' । एवं यह सोम का रक्षण करनेवाला पुरुष ज्ञान में विचरण करता हुआ शरीर की दृढ़तावाला होता है। [२] (उग्रं शर्म) = यह तेजस्विता से युक्त आनन्द को प्राप्त करता है और (महि श्रवः) = [मह पूजायाम्] पूजा की भावना से युक्त ज्ञान को प्राप्त करता है। संक्षेप में यह सोमी पुरुष 'तेजस्वी, सानन्द, पूजा की वृत्तिवाला ज्ञानी' होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण के द्वारा हमारा उत्कृष्ट विकास होता है। उत्कृष्ट ज्ञान व दृढ़ शरीर का हमारे में मेल होता है। हमें तेजस्विता से युक्त आनन्द व पूजावृत्ति से युक्त ज्ञान प्राप्त होता है ।

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    विषय

    राजा के प्रताप का सर्वपालन का महत्व

    भावार्थ

    जिस प्रकार (दिवि सत् अन्धसः जातम्) आकाश में विद्यमान अन्न के जलमय सूक्ष्म रूप को (भूमिः) पृथिवी, (उग्रं शर्म) प्रबल शान्तिदायक (महि श्रवः) बड़े भारी अन्न सम्पदा के रूप में (आ ददे) प्राप्त करती है उसी प्रकार हे (सोम) वीर्यवन्! हे ऐश्वर्यवन् ! हे सञ्चालक ! (अन्धसः ते दिवि उच्चा जातम्) प्राणधारक तेरे राजसभा आदि वा तेजो रूप में विद्यमान सर्वोपरि प्रकट हुए रूप को (भूमिः) यह भूमि (उग्रं शर्म) प्रबल शरण और (श्रवः) यश के स्वरूप में (आ ददे) प्राप्त करती है। यह राजा का प्रताप है कि भूमि पर शान्ति सुख और अन्न भोग सब को मिलता है। नहीं तो बलवान् निर्बलों को खा जायं और त्राहि २ हो जाय। इत्येकोनविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, high is your renown, great your peace and pleasure, born and abiding in heaven, and the gift of your energy and vitality, the earth receives as the seed and food of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    कर्मयोगी पुरुषाने उत्पन्न केलेल्या कलाकौशल्याचा संपूर्ण लोक लाभ घेतात. ॥१०॥

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