ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 24
त्वोता॑स॒स्तवाव॑सा॒ स्याम॑ व॒न्वन्त॑ आ॒मुर॑: । सोम॑ व्र॒तेषु॑ जागृहि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वाऽऊ॑तासः । तव॑ । अव॑सा । स्याम॑ । व॒न्वन्तः॑ । आ॒ऽमुरः॑ । सोम॑ । व्र॒तेषु॑ । जा॒गृ॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वोतासस्तवावसा स्याम वन्वन्त आमुर: । सोम व्रतेषु जागृहि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वाऽऊतासः । तव । अवसा । स्याम । वन्वन्तः । आऽमुरः । सोम । व्रतेषु । जागृहि ॥ ९.६१.२४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 24
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(त्वोतासः तव अवसा) हे प्रभो ! तव रक्षया रक्षिताः सन्तो वयं (वन्वन्तः) त्वत्सेवायां तत्परा भवन्तः (आमुरः स्याम) तव विरोधिनां विनाशका भवेम। (सोम) हे सौम्यस्वभाव ! त्वं (व्रतेषु जागृहि) स्वकीयेषु नियमेषु जागृतो भव ॥२४॥
हिन्दी (2)
पदार्थ
(त्वोतासः तव अवसा) हे प्रभो ! तुम्हारी रक्षा से सुरक्षित होकर हम (वन्वन्तः) आपकी सेवा में तत्पर होते हुए (आमुरः स्याम) आपके विरोधियों के विनाशक हो जाएँ (सोम) हे सौम्यचित्तवाले। आप (व्रतेषु जागृहि) अपने नियमों में सदैव जागृत हैं ॥२४॥
भावार्थ
जो परमात्मा अपने नियमों में सदैव जागृत है अर्थात् जिसके नियम सदैव अटल हैं, उन नियमों के अनुयायी होकर हम ईश्वरनियमविरोधियों का दलन करें ॥२४॥
विषय
वीरों के कर्त्तव्य, उनके उत्साह योग्य कार्य।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन्! शासक ! (त्वा-उतासः) तुझ से सुरक्षित रह कर (तव अवसा) तेरे ही रक्षा-बल से हम (आमुरः) अति मोह करने वाले भावों को वा चारों ओर से मार करने वाले शत्रुओं को (वन्वन्तः) विनाश करते हुए (स्याम) रहें। (व्रतेषु) हमारे उत्तम कामों में तू (जागृहि) जाग, सचेत होकर रह।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Safe under your power and protection, serving and celebrating you in adoration, let us be destroyers of negativities, jealousies and enmities. O Soma, ever awake as you are, keep us awake in the observance of divine law and discipline of holiness.
मराठी (1)
भावार्थ
जो परमात्मा आपल्या नियमात सदैव जागृत असतो अर्थात् ज्याचे नियम सदैव अटळ आहेत. त्या नियमांचे अनुयायी बनून आम्ही ईश्वरविरोधी असणाऱ्यांचे दलन करावे. ॥२४॥
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