ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 28
पव॑स्वेन्दो॒ वृषा॑ सु॒तः कृ॒धी नो॑ य॒शसो॒ जने॑ । विश्वा॒ अप॒ द्विषो॑ जहि ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑स्व । इ॒न्दो॒ इति॑ । वृषा॑ । सु॒तः । कृ॒धि । नः॒ । य॒शसः॑ । जने॑ । विश्वाः॑ । अप॑ । द्विषः॑ । ज॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्वेन्दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने । विश्वा अप द्विषो जहि ॥
स्वर रहित पद पाठपवस्व । इन्दो इति । वृषा । सुतः । कृधि । नः । यशसः । जने । विश्वाः । अप । द्विषः । जहि ॥ ९.६१.२८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 28
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे प्रभो ! भवान् (वृषा) सर्वकामनापूरकोऽस्ति (सुतः पवस्व) त्वं सेवितानां सेवकानां रक्षां कुरु (नः यशसः कृधि जने) तथा मनुष्येषु मां यशस्विनं कुरु (विश्वा अपद्विषः जहि) समस्तनिषिद्धकर्मतत्परान् शत्रून् घातय ॥२८॥
हिन्दी (2)
पदार्थ
(इन्दो) हे स्वामिन् ! आप (वृषा) सब कामनाओं के प्रापण करने में समर्थ हैं (सुतः पवस्व) आप सेवन किये गये अपने सेवकों की रक्षा कीजिये (नः यशसः कृधि जने) और मनुष्यों में मुझको यशस्वी बनाइये (विश्वा अपद्विषः जहि) सम्पूर्ण बुरे कामों में तत्पर शत्रुओं को मारिये ॥२८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा से यशस्वी बनने की प्रार्थना की गई है ॥२८॥
विषय
उसके कर्त्तव्य, शत्रुनाश, प्रजा की मान-रक्षा।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! (सुतः) अभिषिक्त होकर तू (पवस्व) पवित्र हो। तू (जने नः यशसः कृधि) मनुष्यों के बीच हमें यशस्वी बना और (विश्वाः द्विषः अप जहि) सब शत्रुओं को मार भगा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, lord of purity and generosity, light and splendour, served and realised through yajnic life, protect and purify us, help us join the community of honour and excellence, ward off and eliminate all malignity, jealousy and enmity from our life.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात यशस्वी बनण्यासाठी परमेश्वराला प्रार्थना केलेली आहे. ॥२८॥
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