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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 11
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ना विश्वा॑न्य॒र्य आ द्यु॒म्नानि॒ मानु॑षाणाम् । सिषा॑सन्तो वनामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ना । विश्वा॑नि । अ॒र्यः । आ । द्यु॒म्नानि॑ । मानु॑षाणाम् । सिसा॑सन्तः । व॒ना॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एना विश्वान्यर्य आ द्युम्नानि मानुषाणाम् । सिषासन्तो वनामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एना । विश्वानि । अर्यः । आ । द्युम्नानि । मानुषाणाम् । सिसासन्तः । वनामहे ॥ ९.६१.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 11
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अर्यः) प्रजास्वामी (एना) स्वक्रियाभिः (मानुषाणाम्) मनुष्याणां (विश्वा द्युम्नानि) सम्पूर्णसम्पत्तीः (आ) आहरति ‘सञ्चयं करोतीति यावत्’। (सिषासन्तः) एतादृशस्य प्रभोर्भक्तौ तत्परा भवन्तो वयं (वनामहे) तस्य प्रार्थनां कुर्मः ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अर्यः) प्रजाओं का स्वामी (एना) अपनी क्रियाओं से (मानुषाणाम्) मनुष्यों की (विश्वा द्युम्नानि) सम्पूर्ण सम्पत्तियों का (आ) आहरण अर्थात् संचय करता है (सिषासन्तः) ऐसे स्वामी की भक्ति में तत्पर रहते हुए हम (वनामहे) उसकी प्रार्थना करते हैं ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में स्वामिभक्ति का वर्णन किया गया है। तात्पर्य्य यह है कि स्वामिभक्ति से पुरुष उच्च पदवी को प्राप्त होता है ॥११॥

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    विषय

    संविभाग पूर्वक ऐश्वर्य का सेवन

    पदार्थ

    [१] (एना) = इस सोम के द्वारा हम (अर्ये) = उस स्वामी प्रभु में स्थित होते हुए (मानुषाणाम्) = मनुष्यों के (विश्वानि) = सब (द्युम्नानि) = ऐश्वर्यों को [walth] (सिषासन्तः) = सब में विभाग की कामना करते हुए (आ वनामहे) = सर्वथा सेवित करते हैं । [२] सोमी पुरुष मनुष्यों के सब अभ्युदयों को प्राप्त करता है। इन अभ्युदयों को प्राप्त करके वह गर्ववाला नहीं हो जाता । ब्रह्मनिष्ठ बना रहता है और इन अभ्युदयों को प्रभु का ही मानना है। प्रभु के इन धनों को वह सब के साथ संविभक्त करके ही भोगता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हम [क] ऐश्वर्यों को प्राप्त करते हैं, [ख] इन ऐश्वर्यों को प्रभु का ही मानते हैं, [ग] संविभाग पूर्वक इनका सेवन करते हैं ।

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    विषय

    ऐश्वर्य का राज्य में समान विभाग।

    भावार्थ

    (अर्यः) अपने स्वामी के ही हम (एना विश्वानि मानुषाणां द्युम्नानि) इन समस्त मनुष्यों के धनों को (सिषासन्तः) विभक्त करते हुए (वनामहे) भोग करें। अर्थात् सब राष्ट्रवासी ऐश्वर्य भोगने में समान रूप से रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma is the lord of humanity and the earth. By virtue of him and of him, we ask and pray for all food, energy, honour and excellence for humanity, serving him and sharing all the benefits together.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात स्वामिभक्तीचे वर्णन केलेले आहे. स्वामी भक्तीने पुरुष उच्च पद प्राप्त करू शकतो. ॥११॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    এনা বিশ্বান্যর্য দ্যুম্নানি মানুষাণাম্। সিষাসন্তো বনামহে।।৯৯।।

    (ঋগ্বেদ ৯।৬১।১১)

    পদার্থঃ হে জগদীশ্বর! (অর্যঃ) সকলের স্বামী তুমি (এনা) এই (বিশ্বানি) সকল (দ্যুম্নানি) ধনরাশি (আ) আমাদের প্রদান করো। এই ধনরাশি আমরা (মানুষাণাম্) সৎপাত্র মনুষ্যদের (সিষাসন্তঃ) দান করার অভিলাষী হয়েই (বনামহে) তা লাভ করতে চাই।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ যে ধন সম্পদ দ্বারা অপরের হিত সাধন হয় না, সেই ধন ধন নয়; বরং তা সঞ্চিত অপযশ। কারণ বেদ বলেছে, “অপরকে না দিয়ে যে স্বার্থপর ব্যক্তি কেবল নিজেই ধন, অন্ন আদি ভোগ করে; সে পাপের ভাগী হয়"।।৯৯।।

     

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