ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 19
यस्ते॒ मदो॒ वरे॑ण्य॒स्तेना॑ पव॒स्वान्ध॑सा । दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा ॥
स्वर सहित पद पाठयः । ते॒ । मदः॑ । वरे॑ण्यः । तेन॑ । प॒व॒स्व॒ । अन्ध॑सा । दे॒व॒ऽअ॒वीः । अ॒घ॒शं॒स॒ऽहा ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्ते मदो वरेण्यस्तेना पवस्वान्धसा । देवावीरघशंसहा ॥
स्वर रहित पद पाठयः । ते । मदः । वरेण्यः । तेन । पवस्व । अन्धसा । देवऽअवीः । अघशंसऽहा ॥ ९.६१.१९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 19
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे स्वामिन् ! त्वं (देवावीः अघशंसहा) सदाचारिणां रक्षकोऽसि तथा दुष्टानां घातकोऽसि (यः) यत् (ते) तव (वरेण्यः रसः) भजनीयं सुखमस्ति (तेन अन्धसा) तेन तृप्तिकारकेण सुखेनास्मान् (पवस्व) पवित्रय ॥१९॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे स्वामिन् ! आप (देवावीः अघशंसहा) सदाचारियों के रक्षक तथा दुष्टों को मारनेवाले हैं (यः) जो (ते) तुम्हारा (वरेण्यः रस) भजनीय सुख है, (तेन अन्धसा) उस तृप्तिकारक सुख से हम लोगों को (पवस्व) पवित्र करिये ॥१९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा से आनन्दोपलब्धि की प्रार्थना की गई है ॥
विषय
देवावी: अघशंसहा
पदार्थ
[१] हे सोम ! (यः ते) = जो तेरा रस (मदः) = उल्लास का जनक है, (वरेण्यः) = वरने के योग्य है, (तेन) = उस (अन्धसा) = आध्यायनीय, अत्यन्त ध्यान देने योग्य रस से तू हमें (पवस्व) = प्राप्त हो । [२] यह तेरा रस (देवावी:) = देववृत्तिवाले पुरुषों से जाने योग्य होता है [वी गतौ] तथा (अघशंसहा) =[अघशंसै: हन्यते] बुराई का शंसन करनेवालों से नष्ट किया जाता है । देववृत्ति के पुरुष इस सोम के रस का रक्षण करते हैं। अघशंसों में, राक्षसी वृत्तिवालों में इसके रक्षण का भाव नहीं होता, वे इसे भोग-विलास में विनष्ट कर बैठते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम का रस उल्लास का जनक व वरणीय है। देव इसका रक्षण करते हैं। दैत्य, विनाश ।
विषय
राजा के अनेक कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! सबके सञ्चालक ! तू (देवा-वीः) उत्तम करप्रद प्रजा की रक्षा करने वाला (अघ-शंसहा) दूसरे के ऊपर पाप, हत्यादि करने की धमकी देने वाले को दण्ड देने हारा है। (यः ते) जो तेरा (मदः) सब को तृप्त, सन्तुष्ट और हर्षित करने वाला (वरेण्यः) सर्वश्रेष्ठ और सब को शुभ, उत्तम मार्ग में ले जाने हारा सामर्थ्य है तू (तेन) उस (अन्धसा) अन्न के समान पुष्टिकारक बल से (पवस्व) हमें प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The soma ecstasy that’s yours, that is the highest love of our choice. Flow on, radiate, and sanctify us beyond satiation with light divine for the soul, protector and saviour as you are of the holy and destroyer of sin and evil for the good.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमात्म्याला आनंदाची उपलब्धी व्हावी अशी प्रार्थना केलेली आहे. ॥१९॥
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