ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 22
स प॑वस्व॒ य आवि॒थेन्द्रं॑ वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे । व॒व्रि॒वांसं॑ म॒हीर॒पः ॥
स्वर सहित पद पाठसः । प॒व॒स्व॒ । यः । आवि॑थ । इन्द्र॑म् । वृ॒त्राय॑ । हन्त॑वे । व॒व्रि॒ऽवांस॑म् । म॒हीः । अ॒पः ॥
स्वर रहित मन्त्र
स पवस्व य आविथेन्द्रं वृत्राय हन्तवे । वव्रिवांसं महीरपः ॥
स्वर रहित पद पाठसः । पवस्व । यः । आविथ । इन्द्रम् । वृत्राय । हन्तवे । वव्रिऽवांसम् । महीः । अपः ॥ ९.६१.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 22
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यः) येन भवता (वृत्राय हन्तवे) दुष्टाचारिप्रतिप्रक्षिहननाय (महीः अपः वव्रिवांसम्) सर्वास्ववस्थासु अप्रतिहताः (इन्द्रम् आविथ) शक्तयः सुरक्षिताः (सः) एवंभूतो भवान् (पवस्व) मम रक्षां करोतु ॥२२॥
हिन्दी (2)
पदार्थ
(यः) जो आप (वृत्राय हन्तवे) दुष्टाचारी प्रतिपक्षी के हनन करने के लिये (महीः अपः वव्रिवांसम्) सब अवस्था में अप्रतिहत (इन्द्रम् आविथः) शक्तियों को सुरक्षित रखते हैं (सः) एवंभूत आप (पवस्व) मेरी रक्षा करें ॥२२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में सर्वशक्तिसम्पन्न परमात्मा से रक्षा की प्रार्थना की गई है ॥२२॥
विषय
राजा के अनेक कर्त्तव्य।
भावार्थ
(यः) जो तू (अपः वव्रिवांस) जलों को रोक धरने वाले मेघ को सूर्य के समान (वृत्राय हन्तवे) शत्रु को नाश करने के लिये (इन्द्रम्) बड़े ऐश्वर्ययुक्त राष्ट्र और शत्रुहन्ता तेजस्वी सैन्य को (आविथ) रखता है (सः) वह तू (पवस्व) अभिषिक्त हो और प्रजा पर सुख की वर्षा कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord of the joy of existence, for constant conversion, elimination and destruction of negativity you protect and promote the creative, structural and developmental forces of nature in great evolutionary dynamics on way to positive growth and progress.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात सर्वशक्तिमान परमेश्वराला रक्षणासाठी प्रार्थना केलेली आहे. ॥२२॥
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