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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 20
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    जघ्नि॑र्वृ॒त्रम॑मि॒त्रियं॒ सस्नि॒र्वाजं॑ दि॒वेदि॑वे । गो॒षा उ॑ अश्व॒सा अ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जघ्निः॑ । वृ॒त्रम् । अ॒मि॒त्रिय॑म् । सस्निः॑ । वाज॑म् । दि॒वेऽदि॑वे । गो॒ऽसाः । ऊँ॒ इति॑ । अ॒श्व॒ऽसाः । अ॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जघ्निर्वृत्रममित्रियं सस्निर्वाजं दिवेदिवे । गोषा उ अश्वसा असि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जघ्निः । वृत्रम् । अमित्रियम् । सस्निः । वाजम् । दिवेऽदिवे । गोऽसाः । ऊँ इति । अश्वऽसाः । असि ॥ ९.६१.२०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 20
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अमित्रियम् वृत्रम् जघ्निः) भवान् यो भवदाज्ञाप्रतिकूलस्तं पापिनं हन्ति तथा (वाजम् दिवे दिवे सस्निः) प्रतिदिनं सङ्ग्रामाय सैनिकविभागे तत्परोऽस्ति (गोषाः उ अश्वसाः असि) गवाश्वादिहितकृज्जीवानां वर्धकोऽस्ति ॥२०॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अमित्रियम् वृत्रम् जघ्निः) आप, जो आप की आज्ञा के प्रतिकूल है, उस पापी के हन्ता हैं। तथा (वाजम् दिवेदिवे सस्निः) प्रतिदिन संग्राम के लिये सैनिक विभाग में तत्पर रहते हैं (गोपाः उ अश्वसाः असि) गो अश्व आदि हितकारक जीवों के बढ़ानेवाले हैं ॥२०॥

    भावार्थ

    परमात्मा का वज्र दुष्टों के दमन के लिये सदैव उद्यत रहता है। इस मन्त्र में परमात्मा की दण्डशक्ति का वर्णन किया गया है ॥२०॥

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    विषय

    गोषाः अश्वसाः

    पदार्थ

    [१] यह सोम (अमित्रियम्) = हमारे अमित्र [शत्रु] पक्ष में होनेवाले (वृत्रम्) = वासनारूप ज्ञान-नाशक शत्रु को (जघ्निः) = मारनेवाला है । सोमरक्षण वासना को विनष्ट करता है। [२] वासना को विनष्ट करके यह (दिवे दिवे) = प्रतिदिन (वाजम्) = शक्ति को (सस्त्रिः) = शुद्ध करनेवाला है । [३] (गोषाः असि) = हे सोम तू हमें उत्कृष्ट ज्ञानेन्द्रियों को देनेवाला है ! (उ) = और (अश्वसाः असि) = उत्कृष्ट कर्मेन्द्रियों को प्राप्त करानेवाला है। सुरक्षित सोम कर्मेन्द्रियों को सशक्त बनाता है, ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञानग्रहण समर्थ करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से [क] वृत्र [वासना] का विनाश होता है, [ख] वह शक्ति को शुद्ध करता है, [ग] ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को सशक्त बनाता है ।

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    विषय

    राजा के अनेक कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे उत्तम शासक राजन् ! तू (अमित्रियं) शत्रु के (वृत्रं) बढ़ते बल को (जघ्निः) नाश करने वाला, (वाजं) ऐश्वर्य को (दिवे दिवे सस्त्रिः) दिन प्रतिदिन शुद्ध करने वाला और (गो-साः उ) भूमि गौ आदि के देने वाला और (अश्व-साः असि) अश्वों का देने वाला स्वामी है। इत्येकविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, power and peace of divinity, destroyer of the evil and darkness of negative forces, constant catalytic force of nature in creative evolution day in and day out, you are the giver of earthly life and dynamic motion for onward progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    दुष्टांचे दमन करण्यासाठी परमेश्वराचे वज्र सदैव उद्यत असते. या मंत्रात परमेश्वराच्या दंडशक्तीचे वर्णन केलेले आहे. ॥२०॥

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