ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 26
म॒हो नो॑ रा॒य आ भ॑र॒ पव॑मान ज॒ही मृध॑: । रास्वे॑न्दो वी॒रव॒द्यश॑: ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हः । नः॒ । रा॒यः । आ । भ॒र॒ । पव॑मान । ज॒हि । मृधः॑ । रास्व॑ । इ॒न्दो॒ इति॑ । वी॒रऽव॑त् । यसः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
महो नो राय आ भर पवमान जही मृध: । रास्वेन्दो वीरवद्यश: ॥
स्वर रहित पद पाठमहः । नः । रायः । आ । भर । पवमान । जहि । मृधः । रास्व । इन्दो इति । वीरऽवत् । यसः ॥ ९.६१.२६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 26
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे ऐश्वर्यसम्पन्न ! भवान् (नः) अस्मान् (महः रायः आभर) पवित्रधनैः परिपूरयतु (पवमान) हे जगत्त्रातः ! (मृधः जहि) हिंसकान्नाशयतु (वीरवत् यशः रास्व) वीरसहितं यशः प्रकटयतु ॥२६॥
हिन्दी (2)
पदार्थ
(इन्दो) हे ऐश्वर्यसम्पन्न ! भवान् (नः) हमको (महः रायः आभर) पवित्र धन से परिपूर्ण करिये। (पवमान) हे सर्वरक्षक ! (मृधः जहि) हिंसकों को नष्ट करिये (वीरवत् यशः रास्व) वीरों के सहित यश को प्रकट करिये ॥२६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में राजधर्म का उपदेश है। जो पुरुष राजधर्मपालन करते हैं, वे वीर पुरुषों को उत्पन्न करके प्रजा को सर्वथा सुरक्षित करते हैं ॥२६॥
विषय
उसके कर्त्तव्य, शत्रुनाश, प्रजा की मान-रक्षा।
भावार्थ
हे (इन्दो) शत्रु के प्रति द्रुत गति से जाने वाले ! अभिषेक से आर्द्र ! तू (नः) हमें (महः रायः आ भर) बहुत से ऐश्वर्य प्राप्त करा। हे (पवमान) राष्ट्र के कण्टकशोधन करने हारे ! तू (मृधः जहि) हिंसकों का विनाश कर। तू (वीरवत् यशः रास्व) वीरों से युक्त यश, पुत्रों से युक्त अन्न और प्राणों से युक्त बल वीर्य हमें प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord Supreme of beauty, splendour and grace, pure and purifying, ever awake, bring us wealth of the highest order, eliminate the destructive adversaries and bless us with honour, excellence and fame, and continue the human family with noble and brave generations.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात राजधर्माचा उपदेश केलेला आहे. जे पुरुष राजधर्माचे पालन करतात ते वीर पुरुषांना उत्पन्न करून प्रजेला सर्वस्वी सुरक्षित करतात. ॥२६॥
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