ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 17
पव॑मानस्य ते॒ रसो॒ मदो॑ राजन्नदुच्छु॒नः । वि वार॒मव्य॑मर्षति ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानस्य । ते॒ । रसः॑ । मदः॑ । रा॒ज॒न् । अ॒दु॒च्छु॒नः । वि । वार॑म् । अव्य॑म् । अ॒र्ष॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानस्य ते रसो मदो राजन्नदुच्छुनः । वि वारमव्यमर्षति ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानस्य । ते । रसः । मदः । राजन् । अदुच्छुनः । वि । वारम् । अव्यम् । अर्षति ॥ ९.६१.१७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 17
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे कर्मकुशल ! (पवमानस्य ते) सर्वसुखदातुर्भवतः (रसः) उत्पादितं सुखम् अथ च (मदः) आनन्दः (राजन्) हे स्वामिन् ! (अदुच्छुनः) यो हि विघ्नविधातृभिः रहितोऽस्ति सः (वारम् अव्ययम्) यो भवतः दृढभक्तोऽस्ति तं (वि) विशेषरूपेण (अर्षति) गच्छति ॥१७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे कर्मदक्ष ! (पवमानस्य ते) सबको सुख देनेवाले आपको (रसः) पैदा किया हुआ सुख और (मदः) आह्लाद (राजन्) हे स्वामिन् ! (अदुच्छुनः) जो विघ्नकारियों से रहित है, वह (वारम् अव्यम्) जो आपका दृढ़ भक्त है, उसकी ओर (वि) विशेषरूप से (अर्षति) जाता है ॥१७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में ईश्वर की भक्ति का उपदेश किया गया है। ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव को समझकर जो पुरुष ईश्वरपरायण होता है, उसको सब प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं ॥१७॥
विषय
अ-दुच्छुनः
पदार्थ
[१] हे सोम ! (पवमानस्य) = जीवन को पवित्र करनेवाले (ते) = तेरा (रसः) = रस [सार] (मदः) = उल्लास को देनेवाला है [मदकर:] । हे (राजन्) = शरीर को दीप्त करनेवाले सोम ! तेरा रस (अदुच्छुनः) = सब दुःखों को दूर करनेवाला है [शुनं सुखं]। रोगकृमि संहार के द्वारा यह जीवन को सुखी करनेवाला है । [२] यह सोम का रस (वारम्) = वासनाओं का निवारण करनेवाले (अव्यम्) = अपना रक्षण करनेवालों में उत्तम पुरुष को ही (वि अर्षति) = विशेषरूप से प्राप्त होता है । सोमरक्षण के लिये वासनाओं से ऊपर उठना आवश्यक ही है।
भावार्थ
भावार्थ- वासनाओं से ऊपर उठकर हम सोम का रक्षण करें। सुरक्षित सोम [क] आनन्द को देनेवाला व [ख] सब दुःखों को दूर करनेवाला है ।
विषय
राजा का दयामय कर्त्तव्य
भावार्थ
(पवमानस्य) प्रजा के प्रति दया, स्नेह आदि से दान करते हुए (ते रसः) तेरा बल और हर्ष, (अदुच्छुनः) प्रजा को दुःखी न करने वाला तेरा (मदः) सर्वानन्दकारी हर्ष, (अव्यं) अक्षय वा परम रक्षक के योग्य तेरे (वारम्) शत्रुनिवारक रूप को (वि अर्षति) विविध प्रकार से प्राप्त करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, beauty, grace and joy of life, refulgent power, as you flow, pure and purifying, the pleasure you release, the ecstasy you inspire, and the peace you emanate free from negativities, radiates to the mind and soul of the loved celebrant.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात ईश्वराच्या भक्तीचा उपदेश केलेला आहे. ईश्वराचे गुण, कर्म, स्वभाव समजून जो पुरुष ईश्वर परायण होतो त्याला सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥१७॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal