ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 8
समिन्द्रे॑णो॒त वा॒युना॑ सु॒त ए॑ति प॒वित्र॒ आ । सं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । इन्द्रे॑ण । उ॒त । वा॒युना॑ । सु॒तः । ए॒ति॒ । प॒वित्रे॑ । आ । सम् । सूर्य॑स्य । र॒श्मिऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समिन्द्रेणोत वायुना सुत एति पवित्र आ । सं सूर्यस्य रश्मिभि: ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । इन्द्रेण । उत । वायुना । सुतः । एति । पवित्रे । आ । सम् । सूर्यस्य । रश्मिऽभिः ॥ ९.६१.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुतः) सुसंस्कृतः कर्मयोगी (सूर्यस्य रश्मिभिः सम्) तैजसपदार्थाश्रयेण (इन्द्रेण उत वायुना) विद्युत् अन्यैः सम्मिल्य (पवित्रे आ समेति) महापवित्रकार्यसिद्धिं करोति ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुतः) सुसंस्कृत कर्मयोगी (सूर्यस्य रश्मिभिः सम्) तैजस पदार्थों के आश्रय से (इन्द्रेण उत वायुना) विद्युत् और से मिलकर (पवित्रे आ समेति) बड़े-बड़े पवित्र कार्यों को सिद्ध करता है ॥८॥
भावार्थ
कर्म्मयोगी सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों की सिद्धि कर लेता है। अर्थात् उससे कोई काम भी अशक्य नहीं। कर्म्मयोगी के सामर्थ्य में समग्र काम हैं। इस बात का वर्णन इस मन्त्र में किया गया है ॥८॥
विषय
सोमरक्षण के तीन साधन
पदार्थ
[१] (इन्द्रेण) = एक जितेन्द्रिय पुरुष से (उत) = और (वायुना) = गतिशील कर्मों में लगे हुए पुरुष से (सुतः) = उत्पन्न किया गया यह सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में (सं आ एति) = सम्यक् समन्तात् प्राप्त होता है । सोम को शरीर में व्याप्त करने के लिये तीन बातें आवश्यक हैं— [क] जितेन्द्रियता [इन्द्रेण], [ख] गतिशीलता [वायुना], पवित्रता [ पवित्रे] । [२] सुरक्षित सोम (सूर्यस्य रश्मिभिः) = सूर्य की रश्मियों से (सम्) = संगत होता है । यह ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है । ज्ञानाग्नि को दीप्त करके हमें सूर्यसम दीप्तिवाला करता है 'ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिः ' ।
भावार्थ
भावार्थ - जितेन्द्रियता, क्रियाशीलता व पवित्रता के द्वारा सोम का रक्षण करते हुए हम सूर्यसम ज्ञान - ज्योति को प्राप्त करें ।
विषय
उसके अनेक कर्त्तव्य।
भावार्थ
(पवित्रे सुतः) पवित्र राज्यपद पर अभिषिक्त हुआ, युवराज, (इन्द्रेण वायुना, सूर्यस्य रश्मिभिः सम् सम् आ एति) अग्नि या सूर्यवत् तेजस्वी, वायु के समान बलवान् और सूर्य की किरणों के समान जगत् के प्रकाश विद्वानों से संगत हो जाता है। इसी प्रकार (२) पवित्र परब्रह्म के स्वरूप में निमग्न होकर आत्मा भी विद्युत वायु, किरणों से संयुक्तवत् तेजस्वी बलवान्, ज्ञान से प्रकाशित हो जाता है।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, spirit of peace, plenty and energy of the universe, you flow with the wind and cosmic dynamics and, with the rays of the sun, you shine as the very light of life which, realised and internalised, abides vibrant in the pure heart and soul.
मराठी (1)
भावार्थ
कर्मयोगी सूक्ष्माहून सूक्ष्म पदार्थांची सिद्धी करतो. अर्थात त्याच्याकडून कोणतेही काम अशक्य नाही. कर्मयोग्याच्या सामर्थ्यात संपूर्ण काम असते. ॥८॥
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