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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स न॑: पुना॒न आ भ॑र र॒यिं वी॒रव॑ती॒मिष॑म् । ईशा॑नः सोम वि॒श्वत॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । पु॒ना॒नः । आ । भ॒र॒ । र॒यिम् । वी॒रऽव॑तीम् । इष॑म् । ईशा॑नः । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स न: पुनान आ भर रयिं वीरवतीमिषम् । ईशानः सोम विश्वत: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । पुनानः । आ । भर । रयिम् । वीरऽवतीम् । इषम् । ईशानः । सोम । विश्वतः ॥ ९.६१.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे बुद्धवर ! (सः) स त्वं परमात्मा (विश्वतः ईशानः) सर्वतः स्वाधिकारं स्थापयन् (नः पुनानः) अस्मान् पवित्रयन् (वीरवतीम्) महावीरयुताभिः (इषम् रयिम्) अन्नधनादिसम्पत्तिभिः (आ भर) आत्मजनस्थानानि परिपूरय ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे विद्वन् ! (सः) वह आप (विश्वतः ईशानः) चारों ओर से अपना अधिकार जमाते हुए (नः पुनानः) हम लोगों को पवित्र करते हुए (वीरवतीम्) बड़े-बड़े वीरों से युक्त (इषम् रयिम्) अन्न-धनादि सम्पत्ति से (आ भर) अपने जनस्थानों को परिपूर्ण करिये ॥६॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग अपने विद्याबल से अपने देश को ऐश्वर्यों से परिपूर्ण करते हैं, इसलिये विद्वानों का सत्कार करना परम कर्तव्य है ॥६॥

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    विषय

    'विश्वतः ईशान' सोम

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (नः) = हमें (पुनानः) = पवित्र करता हुआ (रयिम्) = ज्ञानैश्वर्य को (आभर) = प्राप्त करा । हे सोम ! तू (वीरवतीम्) = वीरतावाली (इषम्) = प्रेरणा को प्राप्त करा । सुरक्षित सोम [क] हमें पवित्र करता है। [ख] ज्ञानैश्वर्य को हमारे लिये प्राप्त कराता है। [ग] हमें वीर बनाता है, [घ] प्रभु - प्रेरणा को सुनने के योग्य करता है । [२] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! तू (विश्वतः ईशानः) = शरीर, मन व बुद्धि सभी के दृष्टिकोण से तू ही ईश है। तू ही हमारे शरीर को सशक्त बनाता है, तू ही मन को निर्मल बनाता है, बुद्धि को तू ही तीव्र करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमें पवित्र करता हुआ 'रयि, वीरता व प्रेरणा' को प्राप्त कराता है। यह सोम ही 'विश्वतः ईशान' है ।

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    विषय

    शासक और प्रभु का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (सोम) शासक ! सब को नियम में चलाने हारे ! तू (विश्वत्तः ईशानः) सब प्रकार से सब जगत् का स्वामी, शासक है। (सः) वह तू (पुनानः) सुखों की वर्षा करता हुआ, (नः) हमें भी (वीरवतीम् इषम्) वीरों से युक्त अन्न, वृष्टि एवं (रयिम्) ऐश्वर्य भा (आ भर) प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord ruler and benefactor of the entire world, pure and purifier of all, bring us food and energy for body, mind and soul, versatile wealth and power abounding in brave and heroic progeny for future generations.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वान लोक आपल्या विद्याबलाने आपल्या देशाला ऐश्वर्याने परिपूर्ण करतात. त्यासाठी विद्वानांचा सत्कार करणे परम कर्तव्य आहे. ॥६॥

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