ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 18
पव॑मान॒ रस॒स्तव॒ दक्षो॒ वि रा॑जति द्यु॒मान् । ज्योति॒र्विश्वं॒ स्व॑र्दृ॒शे ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मान । रसः॑ । तव॑ । दक्षः॑ । वि । रा॒ज॒ति॒ । द्यु॒ऽमान् । ज्योतिः॑ । विश्व॑म् । स्वः॑ । दृ॒शे ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान रसस्तव दक्षो वि राजति द्युमान् । ज्योतिर्विश्वं स्वर्दृशे ॥
स्वर रहित पद पाठपवमान । रसः । तव । दक्षः । वि । राजति । द्युऽमान् । ज्योतिः । विश्वम् । स्वः । दृशे ॥ ९.६१.१८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 18
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे जनरक्षक ! (तव) भवतः (रसः) रक्षाजनितसुखं (द्युमान्) सुन्दरम् (दक्षः) अप्रयासलभ्यं (विराजति) विराजितमस्ति। अथ च (स्वः) सर्वान् (दृशे) पदार्थान् द्रष्टुम् त्वं (विश्वम् ज्योतिः) समस्तजगद्व्यापिनीः सूक्ष्मशक्तीः उत्पादयसि ॥१८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) हे प्रजारक्षक ! (तव) तुम्हारा (रसः) रक्षाजनित सुख (द्युमान्) सुन्दर (दक्षः) अनायास लभ्य (विराजति) विराजित है और (स्वः) सब (दृशे) पदार्थों के देखने के लिये आप (विश्वम् ज्योतिः) सर्वव्यापिनी सूक्ष्मशक्तियों को पैदा करते हैं ॥१८॥
भावार्थ
परमात्मा की कृपा से मनुष्य में दिव्य शक्तियें उत्पन्न होती हैं, जिससे मनुष्य देवभाव को धारण करता है ॥१८॥
विषय
दक्षः-घुमान्
पदार्थ
[१] हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम ! (तव रसः) = तेरा सारा (दक्षः) = हमारी शक्तियों के विकास का कारण हो [growth] । यह (द्युमान्) = ज्योतिर्मय होता हुआ विराजति विशेषरूप से दीप्त होता है । [२] यह सोम उस (विश्वं ज्योतिः) = व्यापक ज्ञान के प्रकाश को करता है, जो कि अन्ततः (स्वर्दृशे) = हमें उस स्वयं देदीप्यमान ज्योति प्रभु के दर्शन के लिये समर्थ बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम शक्तियों के विकास व ज्ञान ज्योति का साधन बनता है । अन्ततः हमें प्रभु दर्शन के योग्य बनाता है।
विषय
उसका सर्वोत्तम तेज।
भावार्थ
हे (पवमान) जगत् वा राष्ट्र को पवित्र करने हारे ! (तव घुमान् दक्षः) तेरा यह तेजोमय (दक्षः) ज्ञान है (तव रसः) तेरा यह बल ही (विराजति) विशेष रूप से चमकता है, और तेरी ही यह (विश्वं ज्योतिः) समस्त ज्योति है जो (स्व:-दृशे) सत्य सुख को दर्शन कराने के लिये है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O vibrant bliss of the world, the purity, pleasure and ecstasy of yours, versatile and refulgent, radiates over space and time as universal light of divinity for humanity to have a vision of the heaven of bliss.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या कृपेने माणसात दिव्यशक्ती उत्पन्न होतात. ज्यामुळे माणूस देवभाव धारण करतो. ॥१८॥
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