ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 13
उपो॒ षु जा॒तम॒प्तुरं॒ गोभि॑र्भ॒ङ्गं परि॑ष्कृतम् । इन्दुं॑ दे॒वा अ॑यासिषुः ॥
स्वर सहित पद पाठउपो॒ इति॑ । सु । जा॒तम् । अ॒प्ऽतुर॑म् । गोभिः॑ । भ॒ङ्गम् । परि॑ऽकृतम् । इन्दु॑म् । दे॒वाः । अ॒या॒सि॒षुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उपो षु जातमप्तुरं गोभिर्भङ्गं परिष्कृतम् । इन्दुं देवा अयासिषुः ॥
स्वर रहित पद पाठउपो इति । सु । जातम् । अप्ऽतुरम् । गोभिः । भङ्गम् । परिऽकृतम् । इन्दुम् । देवाः । अयासिषुः ॥ ९.६१.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुजातम्) सुसंस्कारयुक्तः (अप्तुरम्) अनेकविधकर्मणां प्रेरकः (गोभिः परिष्कृतम्) शुद्धेन्द्रियवान् (भङ्गम्) शत्रुभञ्जकः यः (इन्दुम्) परमप्रकाशवान् कर्मयोग्यस्ति तस्य (देवाः) स्वाभ्युदयेच्छुका जनाः (अयासिषुः) अनुसरणं कुर्वन्ति ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुजातम्) सुन्दर संस्कारयुक्त (अप्तुरम्) अनेक कर्मों का प्रेरक (गोभिः परिष्कृतम्) शुद्ध इन्द्रियोंवाला (भङ्गम्) शत्रुओं का भञ्जक जो (इन्दुम्) परम प्रकाशवाला कर्मयोगी है, उसका (देवाः) अपनी अभ्युन्नति चाहनेवाले लोग (अयासिषुः) अनुसरण करते हैं ॥१३॥
भावार्थ
अभ्युदयाभिलाषी जनों को चाहिये कि वे उक्तगुणवाले कर्मयोगी का आश्रयण करें ॥१३॥
विषय
'असुर' सोम
पदार्थ
[१] (इन्दुम्) = सोम को (देवाः) = देववृत्तिवाले पुरुष (उ) = निश्चय से (उप अयासिषुः) = समीपता से प्राप्त होते हैं । उस सोम को जो कि (सुजातम्) = उत्तम विकास का साधन है [ शोभनं जातं यस्मात् ], (अप्तुरम्) = जो कर्मों को त्वरा के साथ करानेवाला है। जिससे शरीर में स्फूर्ति उत्पन्न होती है । [२] (भगम्) = जो शत्रुओं का विदारण करनेवाला है, सोमरक्षण से काम-क्रोध आदि शत्रु भाग जाते हैं । यह सोम (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों से (परिष्कृतम्) = अलंकृत होता है । सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और हम इन ज्ञान की वाणियों से अपने मस्तिष्क को सुभूषित करनेवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- देववृत्ति के बनके हम सोम का रक्षण करें। इससे हमारी शक्तियों का विकास होगा, स्फूर्ति मिलेगी, काम-क्रोध आदि का विनाश होगा, ज्ञान से हम दीप्त हो उठेंगे।
विषय
सब कोई उसकी शरण हों।
भावार्थ
(जातम्) उत्तम गुणों से अलंकृत, (अप्तुरम्) प्रजाओं के सञ्चालक, (भगं) शत्रुओं के नाशक, (गोभिः परिष्कृतम्) वाणियों, उत्तम गुण-वचनों से अलंकृत वा सुशिक्षित, (इन्दुं) अभिषिक्त वा दयालु, ऐश्वर्यवान् स्नेही पुरुष को (देवाः) उत्तम सुख-ऐश्वर्यादि के अभिलाषी और वार्त्तादि व्यवहारों में कुशल जन (उपो सु अयासिषुः) सुखपूर्वक उसकी शरणार्थं प्राप्त होते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of beauty, grace and glory, divinely created, nobly bom, zealous, destroyer of negativity, beatified and celebrated in songs of divine voice, the noblest powers of nature and humanity adore, share and enjoy.
मराठी (1)
भावार्थ
अभ्युदय इच्छिणाऱ्यांनी वरील गुणांच्या कर्मयोग्याचे अनुसरण करावे. ॥१३॥
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