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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अर्षा॑ णः सोम॒ शं गवे॑ धु॒क्षस्व॑ पि॒प्युषी॒मिष॑म् । वर्धा॑ समु॒द्रमु॒क्थ्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर्ष॑ । नः॒ । सो॒म॒ । शम् । गवे॑ । धु॒क्षस्व॑ । पि॒प्युषी॑म् । इष॑म् । वर्ध॑ । स॒मु॒द्रम् । उ॒क्थ्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्षा णः सोम शं गवे धुक्षस्व पिप्युषीमिषम् । वर्धा समुद्रमुक्थ्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्ष । नः । सोम । शम् । गवे । धुक्षस्व । पिप्युषीम् । इषम् । वर्ध । समुद्रम् । उक्थ्यम् ॥ ९.६१.१५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 15
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे कर्मयोगिन् ! त्वं (नः) अस्माकं (गवे) वाण्यै (शम् अर्ष) सुखं वर्धय। (पिप्युषीम् इषम् धुक्षस्व) अथ च तृप्तये अन्नादिपदार्थानुत्पादय (समुद्रम् उक्थ्यम् वर्ध) समुद्र इवाचलैश्वर्यान् वर्धय ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे कर्मयोगिन् ! आप (नः) हमारी (गवे) वाणी के लिये (शम् अर्ष) सुख को बढ़ाइये (पिप्युषीम् क्षुधस्व) और तृप्ति करने में पर्याप्त अन्नादि पदार्थों को उत्पन्न करिये (समुद्रम् उक्थ्यम् वर्ध) समुद्र के समान अचल ऐश्वर्य को बढ़ाइये ॥१५॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यों ! यदि आप ऐश्वर्य को बढ़ाना चाहते हैं, तो कर्मयोगियों से प्रार्थना करके उद्योगी बनिये ॥१५॥

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    विषय

    'शं गवे'

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (नः अर्ष) = हमें प्राप्त हो। हमें प्राप्त होकर (गवे शम्) = हमारी इन्द्रियों के लिये शान्ति का देनेवाला हो। तू हमारे अन्दर (पिप्युषीम्) = हमारा सब प्रकार से आप्यायन करनेवाली (इषम्) = प्रेरणा को (धुक्षस्व) = प्रपूरित कर तेरे रक्षण से हम प्रभु की उस प्रेरणा को सुननेवाले बनें, जो कि सब प्रकार से हमारा वर्धन करती है। [२] हे सोम ! तू हमारे अन्दर (उक्थ्यम्) = अत्यन्त प्रशंसनीय (समुद्रम्) = ज्ञान के समुद्र को वर्धा बढ़ानेवाला हो। सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और इस प्रकार ज्ञान की वृद्धि होती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ-सोमरक्षण के तीन लाभ हैं - [क] सब इन्द्रियाँ अविकृत व शान्त होती हैं, [ख] प्रभु की प्रेरणा सुनाई पड़ती है, [ग] ज्ञान की वृद्धि होती है ।

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    विषय

    प्रजा में ऐश्वर्य के साथ २ शान्ति स्थापन करे।

    भावार्थ

    हे (सोम) शासक ! तू (नः गवे शम् अर्ष) हमारी गौ, वाणी, इन्द्रिय, पशु जन एवं भूमि के लिये शान्ति प्रदान कर। तू (नः) हमें (पिप्युषीम् इषम्) सदा बढ़ाने वाली अन्न-सम्पद् (धुक्षस्व) प्रदान कर, (उक्थ्यम् समुद्रम्) उत्तम प्रशंसा योग्य समुद्रवत् ज्ञान, दया, बल और गुण रत्नों के सागरवत् पुरुष को (वर्ध) बढ़ा। इति विंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, peaceable mling powers of the world, rise, move forward and create conditions of peace and progress for the earth, work for nature, animal wealth and environment, advance human culture, create nourishing food and productive energy for comfort and common good and, thus, exalt the grace and glory of human life, rolling like the infinite ocean.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जर तुम्ही ऐश्वर्य वाढवू इच्छिता तर कर्मयोग्याची प्रार्थना करून उद्योगी बना. ॥१५॥

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