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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॑ णो॒ अश्व॑मश्व॒विद्गोम॑दिन्दो॒ हिर॑ण्यवत् । क्षरा॑ सह॒स्रिणी॒रिष॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । नः॒ । अश्व॑म् । अ॒श्व॒ऽवित् । गोऽम॑त् । इ॒न्दो॒ इति॑ । हिर॑ण्यऽवत् । क्षरा॑ । स॒ह॒स्रिणीः । इषः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि णो अश्वमश्वविद्गोमदिन्दो हिरण्यवत् । क्षरा सहस्रिणीरिष: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । नः । अश्वम् । अश्वऽवित् । गोऽमत् । इन्दो इति । हिरण्यऽवत् । क्षरा । सहस्रिणीः । इषः ॥ ९.६१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे कर्मयोगिन् ! (अश्ववित्) अश्वादिभिर्युतो भवान् (नः) अस्मभ्यं (परि) सर्वतः स्वकर्मद्वारेण (अश्वमत् गोमत् हिरण्यवत्) घोटकगोहिरण्यादियुतान् (सहस्रिणीः इषः) बहुविधैश्वर्यान् (क्षर) उत्पादयतु ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे कर्मयोगिन् ! (अश्ववित्) अश्वादिकों से युक्त आप (नः) हमारे लिये (परि) सब ओर से अपने कर्मयोग द्वारा (अश्वमत् गोमत् हिरण्यवत्) अश्व गो हिरण्यादि युक्त (सहस्रिणीः) अनेक प्रकार के ऐश्वर्यों को (क्षर) उत्पन्न करिये ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में कर्म्मयोगियों के द्वारा अनन्त प्रकार के ऐश्वर्यों की उपलब्धि का वर्णन किया गया है ॥३॥

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    विषय

    'गोमत् हिरण्यवत्' अश्व

    पदार्थ

    [१] हे (अश्ववित्) = उत्तम इन्द्रियों के प्राप्त करानेवाले (इन्दो) = सोम ! तू (नः) = हमारे लिये (गोमत्) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाली, (हिरण्यवत्) = [हिरण्यं = वीर्यम्] शक्ति - सम्पन्न (अश्वम्) = इन्द्रियाश्वों को (परिक्षर) = प्राप्त करा । सोमरक्षण से हमें वे उत्तम इन्द्रियाँ प्राप्त हों, जो कि ज्ञान व शक्ति से युक्त हों । ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान का प्राप्त करानेवाली हों, तो कर्मेन्द्रियाँ सशक्त हों। [२] हे सोम ! इस प्रकार हमारी इन्द्रियों को ठीक बनाकर (सहस्रिणीः इषः) = शतशः ज्ञानों को देनेवाली प्रेरणाओं को प्राप्त करा । सोमरक्षण से शुद्ध हृदय में हमें प्रभु की प्रेरणायें सुन पड़ें। ये प्रेरणायें हमारे लिये ज्ञान के प्रकाश को देनेवाली हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण हमें 'ज्ञान व शक्ति' से युक्त इन्द्रियों को प्राप्त करायें। तथा हम अन्तःस्थित प्रभु की प्रेरणाओं को सुननेवाले बनें ।

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    विषय

    अश्ववित् से अश्वों की प्राप्ति।

    भावार्थ

    हे (अश्वविद्) अश्वों के विज्ञान को जानने वाले और हे (इन्दो) वेग से जाने में कुशल विद्वन् ! तू (नः) हमें (अश्वम् परि क्षर) अश्व, बल दे। और तू (गोमत् हिरण्यवत्) पशु सुवर्णादि से युक्त धन प्राप्त करा। तू (सहस्रणीः इषः नः परि क्षर) सहस्रों अन्नसम्पदों सत्-इच्छाओं और सेनाओं को दे और सञ्चालित कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And for us, let abundant streams of food, energy and wealth of a thousandfold riches and variety flow abounding in horses, transport and progress, lands, cows and beauties of culture and literature, gold and golden graces. O creator, ruler and controller of peace and joy, you know the values and dynamics of evolution and progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात कर्मयोग्याद्वारे अनंत प्रकारच्या ऐश्वर्याच्या उपलब्धीचे वर्णन केले गेलेले आहे. ॥३॥

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