ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 12
स न॒ इन्द्रा॑य॒ यज्य॑वे॒ वरु॑णाय म॒रुद्भ्य॑: । व॒रि॒वो॒वित्परि॑ स्रव ॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । इन्द्रा॑य । यज्य॑वे । वरु॑णाय । म॒रुत्ऽभ्यः॑ । व॒रि॒वः॒ऽवित् । परि॑ । स्र॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स न इन्द्राय यज्यवे वरुणाय मरुद्भ्य: । वरिवोवित्परि स्रव ॥
स्वर रहित पद पाठसः । नः । इन्द्राय । यज्यवे । वरुणाय । मरुत्ऽभ्यः । वरिवःऽवित् । परि । स्रव ॥ ९.६१.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 12
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सः) स कर्मयोगी (वरिवोवित्) समस्तधनप्रापको भवान् (नः) अस्माकं (यज्यवे) प्रशंसनीयानां (इन्द्राय वरुणाय मरुद्भ्यः) तैजसजलीयवायवीयपदार्थानां संसिद्धये (परिस्रव) उद्यतो भवतु ॥१२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सः) वह कर्मयोगी (वरिवोवित्) सम्पूर्ण धनों का प्रापयिता आप (नः) हमारे (यज्यवे) प्रशंसनीय (इन्द्राय वरुणाय मरुद्भ्यः) तैजस जलीय तथा वायवीय पदार्थों की सिद्धि के लिये (परिस्रव) उद्यत होवें ॥१२॥
भावार्थ
अग्नि तथा जलादि सब पदार्थ कर्मयोगी पुरुषों के द्वारा सब प्रकार के सुखो को उत्पन्न करते हैं ॥१२॥
विषय
'वरिवोवित्' सोम
पदार्थ
[१] हे सोम ! (सः) = वह तू (नः) = हमारे लिये (वरिवोवित्) = सब धनों का प्राप्त करानेवाला होकर (परिस्स्रव) = शरीर में चारों ओर प्रवाहित हो । [२] तू (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये प्राप्त हो । (यज्यवे) = यज्ञशील पुरुष के लिये प्राप्त हो । (वरुणाय) = द्वेष का निवारण करनेवाले व व्रतों के बन्धन में अपने को बाँधनेवाले के लिये प्राप्त हो । (मरुद्भ्यः) = प्राणसाधनों के लिये प्राप्त हो । वस्तुतः सोमरक्षण के चार साधन हैं— [क] जितेन्द्रियता, [ख] यज्ञशीलता, [ग] निर्देषता व व्रतबन्धन, [घ] प्राणायाम ।
भावार्थ
भावार्थ- हम 'जितेन्द्रियता, यज्ञशीलता, निर्देषता, व्रतबन्धन व प्राणायाम' के द्वारा सोम का रक्षण करते हुए सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करें।
विषय
इन्द्र पद के योग्य पुरुष।
भावार्थ
(सः) वह तू (नः) हमारे (इन्द्राय) ऐश्वर्ययुक्त राज पद के लिये (यज्यवे) हमें एक संगति में मिलाने वाला और (वरुणाय) हम में से सर्वश्रेष्ठ, सर्व दुःखों के वारण करने वाला होने के लिये (मरुद्भ्यः) और वीर व्यवहारवान् पुरुषों के लिये (वरिवः वित्) समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कराने वाला होकर (परि स्रव) हमें प्राप्त हो और हमें सुख प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, lord of peace and purity, power and piety, creator, controller and commander of the entire wealth of life, flow on by the dynamics of nature and bless us for the benefit of power and glory, yajna and unity among the yajakas, judgement and right values and the vibrant forces of law and order.
मराठी (1)
भावार्थ
कर्मयोगी पुरुष अग्नी व जल इत्यादी पदार्थांद्वारे सर्व प्रकारचे सुख प्राप्त करतात. ॥१२॥
बंगाली (1)
পদার্থ
স ন ইন্দ্রায় যজ্যবে বরুণায় মরুদ্ভ্যঃ। বরিবোবিৎ পরিস্রব।।৯২।।
(ঋগ্বেদ ৯।৬১।১২)
পদার্থঃ হে পবমান সোম অর্থাৎ সর্বোৎপাদক, সকল ঐশ্বর্য্যের অধিপতি, রসময়, পবিত্রতাদায়ক পরমাত্মা! (সঃ) সুপ্রসিদ্ধ তুমি (নঃ) আমাদের (যজ্যবে) দেহ-রূপ যজ্ঞের সঞ্চালক (ইন্দ্রায়) জীবাত্মার জন্য, (বরুণায়) শ্রেষ্ঠ সংকল্পকে বরণকারী মনের জন্য এবং (মরুদ্ভ্যঃ) প্রাণের জন্য (বরিবোবিৎ) তাদের বলরূপ ঐশ্বর্যকে প্রদানকারী হয়ে (পরিস্রব) হৃদয়ে সঞ্চার করো।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ জগতব্যাপী প্রসিদ্ধ পরমেশ্বর কৃপা করে আমাদের আত্মা, মন, প্রাণ, ইন্দ্রিয় আদিকে দেহরূপ যজ্ঞ পরিচালক জীবাত্মাকে উৎকৃষ্ট সংকল্পের অধিকারী করো। আমাদের মনে ও প্রাণে বলের সঞ্চার করো।।৯২।।
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